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अजब एमपी में गजब तमाशा, भूसा भरी बिल्डिंग में संवारा जा रहा है नौनिहालों का भविष्य - प्राइवेट बिल्डिंग

छतरपुर के टिकरा गांव में नैनिहालों को भूसा वाली बिल्डिंग में पढ़ाया जा रहा है. सरकारी स्कूल का जो भवन था वह जर्जर हो चुका है. पहली क्लास से पांचवीं तक पढ़ने वाले स्टूडेंट कहते हैं कि उन्हें भूसा वाले भवन में दिक्कत होती है

भूसे वाली बिल्डिंग में पढ़ने वाले छात्र
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Published : Mar 31, 2019, 3:28 PM IST

छतरपुर। ये तस्वीरें चिढ़ाती हैं हमारी शिक्षा व्यवस्था को, तमाचा हैं हमारे सिस्टम पर और पोल खोलती हैं सरकार के उन झूठे दावों की जिन्हें वो हर मंच पर करने से बाज नहीं आते. मध्य प्रदेश में नौनिहालों के भविष्य के साथ मजाक किया जा रहा है. एमपी में शिक्षा व्यवस्था की हकीकत की पोल खोलती तस्वीरें छतरपुर के टिकरा गांव से आई हैं.

टिकरा गांव में नैनिहालों को भूसा वाली बिल्डिंग में पढ़ाया जा रहा है

गांव के बच्चों को स्कूल भवन की जगह उस जगह शिक्षा दी रही है, जहां भूसा भरा हुआ है. गांव में जो स्कूल भवन हैं, वह जर्जर हो चुका है. पहली क्लास से पांचवीं तक पढ़ने वाले स्टूडेंट कहते हैं कि उन्हें भूसा वाले भवन में दिक्कत होती है. सेहत को नुकसान तो हो ही रहा है पढ़ाई में भी मन नहीं लगता.

बच्चों को पढ़ाने वाले परशुराम अहिरवार बताते हैं कि पिछले नौ महीनों से किराये के भवन में स्कूल लग रहा है. वरिष्ठ अधिकारियों ने प्राइवेट बिल्डिंग का किराया 500 रूपये देने की बात कही थी, नौ माह बीत जाने के बाद शिक्षा विभाग की तरफ से एक भी पैसा नहीं दिया गया. ऐसे में बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक ही किराए का पैसा चुका रहे हैं.

एक तरफ शिक्षा सुधार के लाख दावे किये जा रहे हैं तो दूसरी तरफ देश के भविष्य को भूसे वाले कमरे में ज्ञान दिया जा रहा है. सवाल उठता है कि ऐसे हालातों पर कैसे पढ़ेगा इंडिया और कैसे बढ़ेगा इंडिया.

छतरपुर। ये तस्वीरें चिढ़ाती हैं हमारी शिक्षा व्यवस्था को, तमाचा हैं हमारे सिस्टम पर और पोल खोलती हैं सरकार के उन झूठे दावों की जिन्हें वो हर मंच पर करने से बाज नहीं आते. मध्य प्रदेश में नौनिहालों के भविष्य के साथ मजाक किया जा रहा है. एमपी में शिक्षा व्यवस्था की हकीकत की पोल खोलती तस्वीरें छतरपुर के टिकरा गांव से आई हैं.

टिकरा गांव में नैनिहालों को भूसा वाली बिल्डिंग में पढ़ाया जा रहा है

गांव के बच्चों को स्कूल भवन की जगह उस जगह शिक्षा दी रही है, जहां भूसा भरा हुआ है. गांव में जो स्कूल भवन हैं, वह जर्जर हो चुका है. पहली क्लास से पांचवीं तक पढ़ने वाले स्टूडेंट कहते हैं कि उन्हें भूसा वाले भवन में दिक्कत होती है. सेहत को नुकसान तो हो ही रहा है पढ़ाई में भी मन नहीं लगता.

बच्चों को पढ़ाने वाले परशुराम अहिरवार बताते हैं कि पिछले नौ महीनों से किराये के भवन में स्कूल लग रहा है. वरिष्ठ अधिकारियों ने प्राइवेट बिल्डिंग का किराया 500 रूपये देने की बात कही थी, नौ माह बीत जाने के बाद शिक्षा विभाग की तरफ से एक भी पैसा नहीं दिया गया. ऐसे में बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक ही किराए का पैसा चुका रहे हैं.

एक तरफ शिक्षा सुधार के लाख दावे किये जा रहे हैं तो दूसरी तरफ देश के भविष्य को भूसे वाले कमरे में ज्ञान दिया जा रहा है. सवाल उठता है कि ऐसे हालातों पर कैसे पढ़ेगा इंडिया और कैसे बढ़ेगा इंडिया.

Intro:छतरपुर ! भले ही शिक्षा को लेकर प्रदेश सरकार बड़े बड़े दावे और वादे करती हो लेकिन वर्तमान शिक्षा को लेकर ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे आज भी जूझ रहे हैं छतरपुर जिले से महज 17 किलोमीटर दूर टिकरा गांव में बच्चे एक भूसे वाली बिल्डिंग में पढ़ने को मजबूर हैं!

जी हां अपने एकदम ठीक सुना तस्वीरों में आप जिन मासूम बच्चों को जिन कमरों में बैठकर पढ़ते हुए देख रहे हैं उन दोनों कमरों के बीच में भूसा रखा हुआ होता है हम बात कर रहे हैं टिकरा गांव के शासकीय प्राइमरी स्कूल की जहां कक्षा 1 से लेकर पांचवी तक के बच्चे एक प्राइवेट बिल्डिंग में पढ़ने को मजबूर हैं ऐसा नहीं है कि इस स्कूल के लिए सरकारी भवन नहीं था भवन तो था लेकिन वह वर्तमान में अनफिट है जिस कारण उस भवन में आज स्कूल नहीं लग रहा है आपको बता दें कि बरसात के दिनों में स्कूल के लिए जो शासकीय भवन मुहैया करा गया था अधिक बरसात होने के कारण उसकी छतों से पानी टपकने लगता था और स्कूल के अंदर बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते थे इसी वजह से इस भवन को अनफिट का सर्टिफिकेट देते हुए बंद तो कर दिया गया लेकिन अब स्कूल दो कमरों के एक प्राइवेट भवन में लगने लगा है!


Body: वैसे तो प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन प्रायमरी स्कूल टिकर की तस्वीरें कुछ अलग ही कहानी बताती हैं टिकरा प्राइमरी स्कूल दो कमरों की प्राइवेट बिल्डिंग में लगता है इस स्कूल में लगभग 70 से 75 बच्चे हैं इन कमरों में कक्षा 1 से लेकर पांचवी तक की कक्षाएं संचालित होती हैं वर्तमान में इन सभी बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ाया जा रहा है!

स्कूल के प्रचार परशुराम अहिरवार ने बताया कि बिल्डिंग अनफिट होने के कारण हम इस स्कूल को एक प्राइवेट बिल्डिंग में लगा रहे हैं लगभग 9 महीने पहले हम यहां पर शिफ्ट हो गए थे ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने हर माह ₹500 किराया देने की बात कही थी आज 9 महीने बीतने को है शिक्षा विभाग की तरफ से किराए के नाम पर ₹1 भी नहीं दिया गया है ऐसे में हम सभी शिक्षक मिलकर ही इस स्कूल का किराया देते हैं!

बाइट_प्राचार्य परशुराम_ टिकरा

बाइट_छात्रा
बाइट_छात्र


Conclusion:क्योंकि स्कूल कक्षा 1 से लेकर 5 मई तक का है स्कूल में पढ़ने वाले लगभग सभी छात्र 4 साल से लेकर 10 साल की है ज्यादातर बच्चे यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि उनके लिए क्या बेहतर है और उन्हें कहां बैठकर पढ़ना चाहिए ऐसे में शिक्षा विभाग को ना सिर्फ इस स्कूल की तरफ ध्यान देना चाहिए बल्कि जिम्मेदारी के साथ उन्हें एक बेहतर भवन मुहैया कराना चाहिए ताकि बच्चे सुरक्षित और बेहतर तरीके से शिक्षा ग्रहण कर सकें!
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