ETV Bharat / state

वारिसों की जंग में बर्बाद हुई नवाबों की विरासत, कभी खूबसूरती से भी ज्यादा खूबसूरत थीं ये इमारतें

नवाब खानदान के आपसी झगड़ों ने जहां एक तरफ भोपाल की शान समझी जाने वाली इमारतों को लोहे की सलाखों में कैद तो कर ही दिया है, साथ ही इन पर आधिप्तय जमाने और इनसे पैसा कमाने की जिद के चलते शुरू हुई कानूनी जंग ने इन्हें बेनूर भी कर दिया है.

author img

By

Published : Mar 21, 2019, 8:48 AM IST

डिजाइन इमेज

भोपाल। नवाबों के शहर भोपाल के कोहेफ़िज़ा में अपनी बदहाली पर आंसू बहाती इस इमारत को कभी शाही निवास कहा जाता था, लेकिन वक्त ने इसकी रौनकें छीन लीं. वो इमारत, जिसके इस्तकबाल में पूरा शहर सलामी देता था, अब अक्सर गुमनामी में रहती है. ऐसा नहीं है कि वारिसों के न होने की वजह से इस शाही इमारत को ये दिन देखने पड़ रहे हों, बल्कि वारिसों की जिद ने ही इसका हुस्न इससे छीन लिया.

स्टाफ फ्लैग हाउस, चिकलोद कोठी जैसी तमाम इमारतें नवाब खानदान के वारिसों की जिद का शिकार होकर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं. 17वीं शताब्दी में अस्तित्व में आई भोपाल रियासत की नींव रखने वाले औरंगजेब की सेना के अफ़गानी सिपहसालार, दोस्त मोहम्मद खान ने सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर और गिन्नौर को जीत कर रखी थी. दोस्त मोहम्मद खान के बाद उनके बेटे यार मोहम्मद खान भोपाल के पहले नवाब बने. तब से लेकर 19वीं सदी में नवाब हमीदुल्लाह खान के वक्त तक इस रियासत ने नवाबी शान की एक इबारत लिख डाली, लेकिन हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद के वारिसों ने इस रियासत की शान को तबाह करने में कोई कमी नहीं रखी.

वीडियो

देश में जम्हूरियत का झंडा बुलंद हुआ तो नवाबियत खुद-ब-खुद खत्म हो गई, लेकिन नवाबों की जो निशानियां थीं, उन्हें ज़िंदा रखने का काम उनके वारिस नहीं कर सके. जिन इमारतों पर नवाब के वारिसों को फक्र होना चाहिए था, वे इमारतें ही उनके बीच फ़साद की जड़ बन गईं. इन इमारतों पर अपना-अपना हक जताने की जिद में नवाब परिवार ने इन्हें कानूनी दांव-पेंच का अखाड़ा बना दिया.

नवाब खानदान के आपसी झगड़ों ने जहां एक तरफ भोपाल की शान समझी जाने वाली इन इमारतों को लोहे की सलाखों में कैद तो कर ही दिया है, साथ ही इन पर आधिप्तय जमाने और इनसे पैसा कमाने की जिद के चलते शुरू हुई कानूनी जंग ने इन्हें बेनूर भी कर दिया है. फिलहाल नवाब अली खां पटौदी और आयशा बेगम यानी शर्मीला टैगोर के साहिबजादे सैफ अली खान सहित कई वारिस नवाबी संपत्ति के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन, इस सारे विवाद में शत्रु संपत्ति एक्ट का पेंच फंसने के बाद अब इस विरासत का क्या होगा, कौन इस धरोहर को संजोएगा इसका कोई जवाब नहीं. खास बात ये कि नवाब खानदान भी इसे सहेजने की बजाय इससे पैसा बनाने की कोशिशों में ही लगा दिखता है.

भोपाल। नवाबों के शहर भोपाल के कोहेफ़िज़ा में अपनी बदहाली पर आंसू बहाती इस इमारत को कभी शाही निवास कहा जाता था, लेकिन वक्त ने इसकी रौनकें छीन लीं. वो इमारत, जिसके इस्तकबाल में पूरा शहर सलामी देता था, अब अक्सर गुमनामी में रहती है. ऐसा नहीं है कि वारिसों के न होने की वजह से इस शाही इमारत को ये दिन देखने पड़ रहे हों, बल्कि वारिसों की जिद ने ही इसका हुस्न इससे छीन लिया.

स्टाफ फ्लैग हाउस, चिकलोद कोठी जैसी तमाम इमारतें नवाब खानदान के वारिसों की जिद का शिकार होकर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं. 17वीं शताब्दी में अस्तित्व में आई भोपाल रियासत की नींव रखने वाले औरंगजेब की सेना के अफ़गानी सिपहसालार, दोस्त मोहम्मद खान ने सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर और गिन्नौर को जीत कर रखी थी. दोस्त मोहम्मद खान के बाद उनके बेटे यार मोहम्मद खान भोपाल के पहले नवाब बने. तब से लेकर 19वीं सदी में नवाब हमीदुल्लाह खान के वक्त तक इस रियासत ने नवाबी शान की एक इबारत लिख डाली, लेकिन हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद के वारिसों ने इस रियासत की शान को तबाह करने में कोई कमी नहीं रखी.

वीडियो

देश में जम्हूरियत का झंडा बुलंद हुआ तो नवाबियत खुद-ब-खुद खत्म हो गई, लेकिन नवाबों की जो निशानियां थीं, उन्हें ज़िंदा रखने का काम उनके वारिस नहीं कर सके. जिन इमारतों पर नवाब के वारिसों को फक्र होना चाहिए था, वे इमारतें ही उनके बीच फ़साद की जड़ बन गईं. इन इमारतों पर अपना-अपना हक जताने की जिद में नवाब परिवार ने इन्हें कानूनी दांव-पेंच का अखाड़ा बना दिया.

नवाब खानदान के आपसी झगड़ों ने जहां एक तरफ भोपाल की शान समझी जाने वाली इन इमारतों को लोहे की सलाखों में कैद तो कर ही दिया है, साथ ही इन पर आधिप्तय जमाने और इनसे पैसा कमाने की जिद के चलते शुरू हुई कानूनी जंग ने इन्हें बेनूर भी कर दिया है. फिलहाल नवाब अली खां पटौदी और आयशा बेगम यानी शर्मीला टैगोर के साहिबजादे सैफ अली खान सहित कई वारिस नवाबी संपत्ति के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन, इस सारे विवाद में शत्रु संपत्ति एक्ट का पेंच फंसने के बाद अब इस विरासत का क्या होगा, कौन इस धरोहर को संजोएगा इसका कोई जवाब नहीं. खास बात ये कि नवाब खानदान भी इसे सहेजने की बजाय इससे पैसा बनाने की कोशिशों में ही लगा दिखता है.

Intro:Body:

 

state top, capital city, district

वारिसों की जंग में बर्बाद हुई नवाबों की विरासत, कभी खूबसूरती से भी ज्यादा खूबसूरत थीं ये इमारतें



भोपाल। नवाबों के शहर भोपाल के कोहेफ़िज़ा में अपनी बदहाली पर आंसू बहाती इस इमारत को कभी शाही निवास कहा जाता था, लेकिन वक्त ने इसकी रौनकें छीन लीं. वो इमारत, जिसके इस्तकबाल में पूरा शहर सलामी देता था, अब अक्सर गुमनामी में रहती है. ऐसा नहीं है कि वारिसों के न होने की वजह से इस शाही इमारत को ये दिन देखने पड़ रहे हों, बल्कि वारिसों की जिद ने ही इसका हुस्न इससे छीन लिया.



स्टाफ फ्लैग हाउस, चिकलोद कोठी जैसी तमाम इमारतें नवाब खानदान के वारिसों की जिद का शिकार होकर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं. 17वीं शताब्दी में अस्तित्व में आई भोपाल रियासत की नींव रखने वाले औरंगजेब की सेना के अफ़गानी सिपहसालार, दोस्त मोहम्मद खान ने सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर और गिन्नौर को जीत कर रखी थी. दोस्त मोहम्मद खान के बाद उनके बेटे यार मोहम्मद खान भोपाल के पहले नवाब बने. तब से लेकर 19वीं सदी में नवाब हमीदुल्लाह खान के वक्त तक इस रियासत ने नवाबी शान की एक इबारत लिख डाली, लेकिन हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद के वारिसों ने इस रियासत की शान को तबाह करने में कोई कमी नहीं रखी.



देश में जम्हूरियत का झंडा बुलंद हुआ तो नवाबियत खुद-ब-खुद खत्म हो गई, लेकिन नवाबों की जो निशानियां थीं, उन्हें ज़िंदा रखने का काम उनके वारिस नहीं कर सके. जिन इमारतों पर नवाब के वारिसों को फक्र होना चाहिए था, वे इमारतें ही उनके बीच फ़साद की जड़ बन गईं. इन इमारतों पर अपना-अपना हक जताने की जिद में नवाब परिवार ने इन्हें कानूनी दांव-पेंच का अखाड़ा बना दिया.



नवाब खानदान के आपसी झगड़ों ने जहां एक तरफ भोपाल की शान समझी जाने वाली इन इमारतों को लोहे की सलाखों में कैद तो कर ही दिया है, साथ ही इन पर आधिप्तय जमाने और इनसे पैसा कमाने की जिद के चलते शुरू हुई कानूनी जंग ने इन्हें बेनूर भी कर दिया है. फिलहाल नवाब अली खां पटौदी और आयशा बेगम यानी शर्मीला टैगोर के साहिबजादे सैफ अली खान सहित कई वारिस नवाबी संपत्ति के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन, इस सारे विवाद में शत्रु संपत्ति एक्ट का पेंच फंसने के बाद अब इस विरासत का क्या होगा, कौन इस धरोहर को संजोएगा इसका कोई जवाब नहीं. खास बात ये कि नवाब खानदान भी इसे सहेजने की बजाय इससे पैसा बनाने की कोशिशों में ही लगा दिखता है.

---------------------------------------------------------

नवाब खानदान के आपसी झगड़ों ने जहां एक तरफ भोपाल की शान समझी जाने वाली  इमारतों को लोहे की सलाखों में कैद तो कर ही दिया है, साथ ही इन पर आधिप्तय जमाने और इनसे पैसा कमाने की जिद के चलते शुरू हुई कानूनी जंग ने इन्हें बेनूर भी कर दिया है.

----------------




Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.