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MP की इन सीटों पर मुरझा सकता है कमल, मजबूत होगी पंजे की पकड़?

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Published : May 21, 2019, 7:45 PM IST

मध्यप्रदेश में कांग्रेस 5 या उससे अधिक सीटें जीत सकती है, ईटीवी भारत की जमीनी पड़ताल में कांग्रेस को ज्यादा फायदा होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन बीजेपी के लिए भी 2014 जैसा करिश्मा करना आसान नहीं है. इसके पीछे एक वजह ये भी रही कि कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी प्रत्याशियों के चयन में बहुत देर की, जिसके चलते बीजेपी उम्मीदवारों को तैयारी के लिए मुकम्मल वक्त नहीं मिल पाया.

कांग्रेस के प्रत्याशी

भोपाल। लोकसभा चुनाव संपन्न होते ही एग्जिट पोल्स ने पूरे देश को भगवामय कर दिया, ज्यादातर एग्जिट पोल्स ने एनडीए की सरकार बनने का अनुमान जताया है. मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से ज्यादातर पर बीजेपी की जीत का दावा किया गया है, लेकिन प्रदेश की कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां अब भी कांग्रेस की दावेदार सबसे मजबूत मानी जा रही है. राजनीतिक जानकारों ने भी ईटीवी भारत से बातचीत में यहां के सियासी समीकरणों की स्थितियां बताई हैं.

मध्यप्रदेश की कुछ लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जो कांग्रेस का मबबूत गढ़ मानी जाती हैं, जबकि इस बार कई सीटों पर कांग्रेस की स्थिति बीजेपी की अपेक्षा मजबूत नजर आ रही है. महाकौशल अंचल की छिंदवाड़ा और चंबल अंचल की गुना लोकसभा सीट सूबे में कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ मानी जाती है. यहां पिछले दो दशकों से बीजेपी को जीत मयस्सर नहीं हुई है. इसके अलावा ग्वालियर, मुरैना और रतलाम लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस बीजेपी की अपेक्षा काफी मजबूत नजर आ रही है.

छिंदवाड़ा में पिता की विरासत बरकरार रख सकते हैं नकुलनाथ
छिंदवाड़ा लोकसभा सीट कांग्रेस का अभेद्य गढ़ माना जाता है. सूबे के मुखिया कमलनाथ इस सीट से आठ बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच चुके हैं. कमलनाथ के सीएम बनने के बाद यहां से उनके बेटे नकुलनाथ को कांग्रेस ने मौका दिया है. छिंदवाडा़ के वरिष्ठ पत्रकार आशीष मिश्रा कहते हैं कि इस बार भी छिंदवाड़ा में बीजेपी की अपेक्षा कांग्रेस का पलड़ा भारी नजर आता है. बीजेपी ने यहां पूर्व विधायक नत्थनशाह कवरेती को प्रत्याशी बनाकर आदिवासी कार्ड खेला था, लेकिन नकुलनाथ की अपेक्षा बीजेपी ने यहां प्रत्याशी की घोषणा देर से की थी, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस का मिला क्योंकि जब तक बीजेपी का प्रत्याशी घोषित हुआ, तब तक नकुलनाथ पूरे संसदीय क्षेत्र का दौरा कर चुके थे. नकुलनाथ के लिए सीएम कमलनाथ और उनका पूरा परिवार प्रचार में जुटा रहा, जबकि बीजेपी की तरफ से पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ही बीजेपी प्रत्याशी के लिए प्रचार किया. जिससे बीजेपी कांग्रेस से पिछड़ती नजर आई. यही वजह है इस बार भी यहां कांग्रेस ही जीत सकती है. एक बात और भी है कि आठ बार छिंदवाड़ा से सांसद रहे कमलनाथ अब सीएम बन चुके हैं, ऐसे में वोटरों का मनौवैज्ञानिक झुकाव भी कमलनाथ की विरासत को उनके वारिस को सौंपने की तरफ ज्यादा होगा.

गुना में बादशाहत बरकरार रख सकते हैं सिंधिया
गुना लोकसभा सीट सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है. 2014 की मोदी लहर में भी सिंधिया ने यहां जीत दर्ज की थी. सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य अब तक यहां से चुनाव नहीं हारा है. कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट से एक उपचुनाव सहित चार बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. इस बार बीजेपी ने सिंधिया के सामने डॉक्टर केपी यादव को मैदान में उतारा है, तमाम एग्जिट पोल के सर्वे ने गुना सीट पर इस बार कांटे की टक्कर बताई है, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार भी यहां जीत दर्ज कर सकते हैं क्योंकि यहां के लोगों से उन्होंने सतत संपर्क रखा है, जबकि सांसद रहते हुए विकास भी किया है, इसके अलावा पार्टी से ज्यादा खुद के चेहरे पर वोट मांगने की शैली सिंधिया के लिए मददगार साबित होती है. आदिवासी समुदाय पर पकड़ मजबूत है, जबकि इस बार तो बीजेपी के पूर्व मंत्री केएल अग्रवाल और बीएसपी प्रत्याशी का समर्थन भी उन्हें मिल गया है. सिंधिया समर्थक कांग्रेस सरकार के मंत्री और उनके परिवार ने भी यहां उनके लिए जबरदस्त प्रचार किया है.


ग्वालियर में इस बार कांग्रेस का पलड़ा भारी
ग्वालियर लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी के विवेक शेजवलकर का मुकाबला कांग्रेस के अशोक सिंह से है. अशोक सिंह ग्वालियर से चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, इससे पहले उन्हें तीन बार हार मिल चुकी है, लेकिन हार का अंतर हर बार बहुत कम रहा है. ग्वालियर के राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस बार अशोक सिंह बीजेपी पर भारी पड़ सकते हैं क्योंकि विवेक ग्रामीण क्षेत्रों में अशोक की अपेक्षा कमजोर नजर आए हैं, जबकि विधानसभा चुनाव में ग्वालियर की सभी सीटों पर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था. जिससे इस बार अशोक सिंह का पलड़ा विवेक की अपेक्षा भारी नजर आ रहा है. हालांकि जानकार इस सीट पर कांटे का मुकाबला होने की उम्मीद जता रहे हैं. करीब चार दशक पहले दोनों प्रतिद्वंदियों के पिता आमने-सामने थे, अब दोनों के बेटे एक दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं.

मुरैना में तोमर-रावत में दिख रही कांटे की टक्कर
चंबल अंचल की मुरैना लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत में कांटे की टक्कर दिख रही है. 2009 के लोकसभा चुनाव में तोमर ने रावत को हराया था. मुरैना के राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार यहां कांटे की ट्क्कर दिख रही है क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत भले ही विधानसभा चुनाव हार गये थे, लेकिन पहले से ही उनकी दावेदारी तय थी. इसलिए समय से पहले ही उन्होंने क्षेत्र में प्रचार और जनसंपर्क शुरु कर दिया था, जबकि सिंधिया के करीबी होने का फायदा भी उन्हें मिला. इसके उलट बीजेपी ने प्रत्याशी की घोषणा में भी देर की और नरेंद्र सिंह तोमर का नाम फाइनल होने के बाद वे प्रचार में खुद ही ताकत दिखाते नजर आए हैं.

रतलाम में फिर जीत सकते हैं कांतिलाल भूरिया
मालवाचंल की रतलाम लोकसभा सीट भी कांग्रेस का मजबूत गढ़ मानी जाती है. यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि, 2014 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन उपचुनाव में एक बार फिर ये सीट उन्होंने बीजेपी से छीन ली थी. रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट के सियासी जानकार मानते हैं कि बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर और कांतिलाल भूरिया में कांटे की टक्कर दिख रही है, लेकिन फिर भी यहां कांतिलाल का पलड़ा भारी नजर आ रहा है क्योंकि कांग्रेस ने पहले ही प्रत्याशी की घोषणा कर दी थी. जबकि बीजेपी इस मामले में कांग्रेस से पिछड़ गई और उसे तैयारियों के लिए उतना वक्त नहीं मिला, जितना कांग्रेस के पास था, जबकि कांतिलाल भूरिया का एक मजबूत संगठन भी इस क्षेत्र में हैं, जिससे कांग्रेस यहां चुनाव जीत सकती है.

भोपाल। लोकसभा चुनाव संपन्न होते ही एग्जिट पोल्स ने पूरे देश को भगवामय कर दिया, ज्यादातर एग्जिट पोल्स ने एनडीए की सरकार बनने का अनुमान जताया है. मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से ज्यादातर पर बीजेपी की जीत का दावा किया गया है, लेकिन प्रदेश की कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां अब भी कांग्रेस की दावेदार सबसे मजबूत मानी जा रही है. राजनीतिक जानकारों ने भी ईटीवी भारत से बातचीत में यहां के सियासी समीकरणों की स्थितियां बताई हैं.

मध्यप्रदेश की कुछ लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जो कांग्रेस का मबबूत गढ़ मानी जाती हैं, जबकि इस बार कई सीटों पर कांग्रेस की स्थिति बीजेपी की अपेक्षा मजबूत नजर आ रही है. महाकौशल अंचल की छिंदवाड़ा और चंबल अंचल की गुना लोकसभा सीट सूबे में कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ मानी जाती है. यहां पिछले दो दशकों से बीजेपी को जीत मयस्सर नहीं हुई है. इसके अलावा ग्वालियर, मुरैना और रतलाम लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस बीजेपी की अपेक्षा काफी मजबूत नजर आ रही है.

छिंदवाड़ा में पिता की विरासत बरकरार रख सकते हैं नकुलनाथ
छिंदवाड़ा लोकसभा सीट कांग्रेस का अभेद्य गढ़ माना जाता है. सूबे के मुखिया कमलनाथ इस सीट से आठ बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच चुके हैं. कमलनाथ के सीएम बनने के बाद यहां से उनके बेटे नकुलनाथ को कांग्रेस ने मौका दिया है. छिंदवाडा़ के वरिष्ठ पत्रकार आशीष मिश्रा कहते हैं कि इस बार भी छिंदवाड़ा में बीजेपी की अपेक्षा कांग्रेस का पलड़ा भारी नजर आता है. बीजेपी ने यहां पूर्व विधायक नत्थनशाह कवरेती को प्रत्याशी बनाकर आदिवासी कार्ड खेला था, लेकिन नकुलनाथ की अपेक्षा बीजेपी ने यहां प्रत्याशी की घोषणा देर से की थी, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस का मिला क्योंकि जब तक बीजेपी का प्रत्याशी घोषित हुआ, तब तक नकुलनाथ पूरे संसदीय क्षेत्र का दौरा कर चुके थे. नकुलनाथ के लिए सीएम कमलनाथ और उनका पूरा परिवार प्रचार में जुटा रहा, जबकि बीजेपी की तरफ से पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ही बीजेपी प्रत्याशी के लिए प्रचार किया. जिससे बीजेपी कांग्रेस से पिछड़ती नजर आई. यही वजह है इस बार भी यहां कांग्रेस ही जीत सकती है. एक बात और भी है कि आठ बार छिंदवाड़ा से सांसद रहे कमलनाथ अब सीएम बन चुके हैं, ऐसे में वोटरों का मनौवैज्ञानिक झुकाव भी कमलनाथ की विरासत को उनके वारिस को सौंपने की तरफ ज्यादा होगा.

गुना में बादशाहत बरकरार रख सकते हैं सिंधिया
गुना लोकसभा सीट सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है. 2014 की मोदी लहर में भी सिंधिया ने यहां जीत दर्ज की थी. सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य अब तक यहां से चुनाव नहीं हारा है. कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट से एक उपचुनाव सहित चार बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. इस बार बीजेपी ने सिंधिया के सामने डॉक्टर केपी यादव को मैदान में उतारा है, तमाम एग्जिट पोल के सर्वे ने गुना सीट पर इस बार कांटे की टक्कर बताई है, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार भी यहां जीत दर्ज कर सकते हैं क्योंकि यहां के लोगों से उन्होंने सतत संपर्क रखा है, जबकि सांसद रहते हुए विकास भी किया है, इसके अलावा पार्टी से ज्यादा खुद के चेहरे पर वोट मांगने की शैली सिंधिया के लिए मददगार साबित होती है. आदिवासी समुदाय पर पकड़ मजबूत है, जबकि इस बार तो बीजेपी के पूर्व मंत्री केएल अग्रवाल और बीएसपी प्रत्याशी का समर्थन भी उन्हें मिल गया है. सिंधिया समर्थक कांग्रेस सरकार के मंत्री और उनके परिवार ने भी यहां उनके लिए जबरदस्त प्रचार किया है.


ग्वालियर में इस बार कांग्रेस का पलड़ा भारी
ग्वालियर लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी के विवेक शेजवलकर का मुकाबला कांग्रेस के अशोक सिंह से है. अशोक सिंह ग्वालियर से चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, इससे पहले उन्हें तीन बार हार मिल चुकी है, लेकिन हार का अंतर हर बार बहुत कम रहा है. ग्वालियर के राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस बार अशोक सिंह बीजेपी पर भारी पड़ सकते हैं क्योंकि विवेक ग्रामीण क्षेत्रों में अशोक की अपेक्षा कमजोर नजर आए हैं, जबकि विधानसभा चुनाव में ग्वालियर की सभी सीटों पर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था. जिससे इस बार अशोक सिंह का पलड़ा विवेक की अपेक्षा भारी नजर आ रहा है. हालांकि जानकार इस सीट पर कांटे का मुकाबला होने की उम्मीद जता रहे हैं. करीब चार दशक पहले दोनों प्रतिद्वंदियों के पिता आमने-सामने थे, अब दोनों के बेटे एक दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं.

मुरैना में तोमर-रावत में दिख रही कांटे की टक्कर
चंबल अंचल की मुरैना लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत में कांटे की टक्कर दिख रही है. 2009 के लोकसभा चुनाव में तोमर ने रावत को हराया था. मुरैना के राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार यहां कांटे की ट्क्कर दिख रही है क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत भले ही विधानसभा चुनाव हार गये थे, लेकिन पहले से ही उनकी दावेदारी तय थी. इसलिए समय से पहले ही उन्होंने क्षेत्र में प्रचार और जनसंपर्क शुरु कर दिया था, जबकि सिंधिया के करीबी होने का फायदा भी उन्हें मिला. इसके उलट बीजेपी ने प्रत्याशी की घोषणा में भी देर की और नरेंद्र सिंह तोमर का नाम फाइनल होने के बाद वे प्रचार में खुद ही ताकत दिखाते नजर आए हैं.

रतलाम में फिर जीत सकते हैं कांतिलाल भूरिया
मालवाचंल की रतलाम लोकसभा सीट भी कांग्रेस का मजबूत गढ़ मानी जाती है. यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि, 2014 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन उपचुनाव में एक बार फिर ये सीट उन्होंने बीजेपी से छीन ली थी. रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट के सियासी जानकार मानते हैं कि बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर और कांतिलाल भूरिया में कांटे की टक्कर दिख रही है, लेकिन फिर भी यहां कांतिलाल का पलड़ा भारी नजर आ रहा है क्योंकि कांग्रेस ने पहले ही प्रत्याशी की घोषणा कर दी थी. जबकि बीजेपी इस मामले में कांग्रेस से पिछड़ गई और उसे तैयारियों के लिए उतना वक्त नहीं मिला, जितना कांग्रेस के पास था, जबकि कांतिलाल भूरिया का एक मजबूत संगठन भी इस क्षेत्र में हैं, जिससे कांग्रेस यहां चुनाव जीत सकती है.

Intro:गुना लोकसभा चुनाव की मतदान प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है और देश के तमाम टीवी चैनल्स और सर्वे रिपोर्ट एवं एजेंसियां एनडीए को बहुमत के करीब बता रहे हैं एग्जिट पोल मध्य प्रदेश में भी काफी हद तक भाजपा के पक्ष को मजबूत मान रहा है और साल 2014 की तुलना में कांग्रेस को ज्यादा फायदा होता नजर नहीं आ रहा है एग्जिट पोल के बाद गुना शिवपुरी संसदीय सीट पर भी हार जीत को लेकर बहस छिड़ गई है सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट होने से सभी की नजरें इस सीट पर टिकी हुई है जहां से खुद सिंधिया परिवार के मुखिया यानि ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव मैदान में थे इस बार भाजपा ने जातिगत कार्ड खेलकर के पी यादव को मैदान में उतारा था जिन्होंने सियासी मायनों में सिंधिया को बेहद कड़ी टक्कर दी है


Body:कास्ट फैक्टर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर गुना सीट पर चुनाव लड़ रही भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कड़ी चुनौती तो दी लेकिन इसके बाद भी सिंधिया जीत की रेखा को छूते नजर आ रहे हैं सिंधिया की जीत का सबसे बड़ा कारण उनका अपने संसदीय क्षेत्र में सतत जनसंपर्क रखा है इसके अलावा क्षेत्र में उनके पास गिनाने के लिए विकास कार्यों की एक लंबी फेहरिस्त भी थी गुना सीट पर काफी हद तक मोदी लहर भी देखने को मिली और काफी हद तक युवा मतदाताओं का रुझान बीजेपी के पक्ष में नजर आया हालांकि इसके बाद भी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है की ज्योतिरादित्य सिंधिया काफी हद तक चुनाव जीतने में कामयाब हो जाएंगे।


Conclusion:सिंधिया की जीत के मुख्य कारण

सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट।
क्षेत्र में लगातार भ्रमण और जनता से सतत संपर्क।
विकास कार्यों की लंबी फेहरिस्त।
कांग्रेस से ज्यादा खुद के चेहरे पर वोट मांगने की शैली।
राज्य सरकार के दो मंत्री तुलसी सिलावट और महेंद्र सिंह सिसोदिया की मेहनत।
आदिवासी समुदाय पर मजबूत पकड़।
शिवराज सरकार के पूर्व मंत्री केएल अग्रवाल का सिंधिया के साथ समर्थन।

कैसे मजबूत होती गई बीजेपी
मोदी लहर का जबरदस्त असर।
प्रत्याशी का एक जाति विशेष से होना।
कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने रघुवंशी वोट बैंक साधा।
प्रत्याशी का नया चेहरा और सौम्य व्यवहार।
शहरी क्षेत्रों में लगातार कांग्रेस का पिछड़ ना।
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