भोपाल। लोकसभा चुनाव संपन्न होते ही एग्जिट पोल्स ने पूरे देश को भगवामय कर दिया, ज्यादातर एग्जिट पोल्स ने एनडीए की सरकार बनने का अनुमान जताया है. मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से ज्यादातर पर बीजेपी की जीत का दावा किया गया है, लेकिन प्रदेश की कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां अब भी कांग्रेस की दावेदार सबसे मजबूत मानी जा रही है. राजनीतिक जानकारों ने भी ईटीवी भारत से बातचीत में यहां के सियासी समीकरणों की स्थितियां बताई हैं.
मध्यप्रदेश की कुछ लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जो कांग्रेस का मबबूत गढ़ मानी जाती हैं, जबकि इस बार कई सीटों पर कांग्रेस की स्थिति बीजेपी की अपेक्षा मजबूत नजर आ रही है. महाकौशल अंचल की छिंदवाड़ा और चंबल अंचल की गुना लोकसभा सीट सूबे में कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ मानी जाती है. यहां पिछले दो दशकों से बीजेपी को जीत मयस्सर नहीं हुई है. इसके अलावा ग्वालियर, मुरैना और रतलाम लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस बीजेपी की अपेक्षा काफी मजबूत नजर आ रही है.
छिंदवाड़ा में पिता की विरासत बरकरार रख सकते हैं नकुलनाथ
छिंदवाड़ा लोकसभा सीट कांग्रेस का अभेद्य गढ़ माना जाता है. सूबे के मुखिया कमलनाथ इस सीट से आठ बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच चुके हैं. कमलनाथ के सीएम बनने के बाद यहां से उनके बेटे नकुलनाथ को कांग्रेस ने मौका दिया है. छिंदवाडा़ के वरिष्ठ पत्रकार आशीष मिश्रा कहते हैं कि इस बार भी छिंदवाड़ा में बीजेपी की अपेक्षा कांग्रेस का पलड़ा भारी नजर आता है. बीजेपी ने यहां पूर्व विधायक नत्थनशाह कवरेती को प्रत्याशी बनाकर आदिवासी कार्ड खेला था, लेकिन नकुलनाथ की अपेक्षा बीजेपी ने यहां प्रत्याशी की घोषणा देर से की थी, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस का मिला क्योंकि जब तक बीजेपी का प्रत्याशी घोषित हुआ, तब तक नकुलनाथ पूरे संसदीय क्षेत्र का दौरा कर चुके थे. नकुलनाथ के लिए सीएम कमलनाथ और उनका पूरा परिवार प्रचार में जुटा रहा, जबकि बीजेपी की तरफ से पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ही बीजेपी प्रत्याशी के लिए प्रचार किया. जिससे बीजेपी कांग्रेस से पिछड़ती नजर आई. यही वजह है इस बार भी यहां कांग्रेस ही जीत सकती है. एक बात और भी है कि आठ बार छिंदवाड़ा से सांसद रहे कमलनाथ अब सीएम बन चुके हैं, ऐसे में वोटरों का मनौवैज्ञानिक झुकाव भी कमलनाथ की विरासत को उनके वारिस को सौंपने की तरफ ज्यादा होगा.
गुना में बादशाहत बरकरार रख सकते हैं सिंधिया
गुना लोकसभा सीट सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है. 2014 की मोदी लहर में भी सिंधिया ने यहां जीत दर्ज की थी. सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य अब तक यहां से चुनाव नहीं हारा है. कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट से एक उपचुनाव सहित चार बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. इस बार बीजेपी ने सिंधिया के सामने डॉक्टर केपी यादव को मैदान में उतारा है, तमाम एग्जिट पोल के सर्वे ने गुना सीट पर इस बार कांटे की टक्कर बताई है, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार भी यहां जीत दर्ज कर सकते हैं क्योंकि यहां के लोगों से उन्होंने सतत संपर्क रखा है, जबकि सांसद रहते हुए विकास भी किया है, इसके अलावा पार्टी से ज्यादा खुद के चेहरे पर वोट मांगने की शैली सिंधिया के लिए मददगार साबित होती है. आदिवासी समुदाय पर पकड़ मजबूत है, जबकि इस बार तो बीजेपी के पूर्व मंत्री केएल अग्रवाल और बीएसपी प्रत्याशी का समर्थन भी उन्हें मिल गया है. सिंधिया समर्थक कांग्रेस सरकार के मंत्री और उनके परिवार ने भी यहां उनके लिए जबरदस्त प्रचार किया है.
ग्वालियर में इस बार कांग्रेस का पलड़ा भारी
ग्वालियर लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी के विवेक शेजवलकर का मुकाबला कांग्रेस के अशोक सिंह से है. अशोक सिंह ग्वालियर से चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, इससे पहले उन्हें तीन बार हार मिल चुकी है, लेकिन हार का अंतर हर बार बहुत कम रहा है. ग्वालियर के राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस बार अशोक सिंह बीजेपी पर भारी पड़ सकते हैं क्योंकि विवेक ग्रामीण क्षेत्रों में अशोक की अपेक्षा कमजोर नजर आए हैं, जबकि विधानसभा चुनाव में ग्वालियर की सभी सीटों पर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था. जिससे इस बार अशोक सिंह का पलड़ा विवेक की अपेक्षा भारी नजर आ रहा है. हालांकि जानकार इस सीट पर कांटे का मुकाबला होने की उम्मीद जता रहे हैं. करीब चार दशक पहले दोनों प्रतिद्वंदियों के पिता आमने-सामने थे, अब दोनों के बेटे एक दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं.
मुरैना में तोमर-रावत में दिख रही कांटे की टक्कर
चंबल अंचल की मुरैना लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत में कांटे की टक्कर दिख रही है. 2009 के लोकसभा चुनाव में तोमर ने रावत को हराया था. मुरैना के राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस बार यहां कांटे की ट्क्कर दिख रही है क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास रावत भले ही विधानसभा चुनाव हार गये थे, लेकिन पहले से ही उनकी दावेदारी तय थी. इसलिए समय से पहले ही उन्होंने क्षेत्र में प्रचार और जनसंपर्क शुरु कर दिया था, जबकि सिंधिया के करीबी होने का फायदा भी उन्हें मिला. इसके उलट बीजेपी ने प्रत्याशी की घोषणा में भी देर की और नरेंद्र सिंह तोमर का नाम फाइनल होने के बाद वे प्रचार में खुद ही ताकत दिखाते नजर आए हैं.
रतलाम में फिर जीत सकते हैं कांतिलाल भूरिया
मालवाचंल की रतलाम लोकसभा सीट भी कांग्रेस का मजबूत गढ़ मानी जाती है. यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि, 2014 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन उपचुनाव में एक बार फिर ये सीट उन्होंने बीजेपी से छीन ली थी. रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट के सियासी जानकार मानते हैं कि बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर और कांतिलाल भूरिया में कांटे की टक्कर दिख रही है, लेकिन फिर भी यहां कांतिलाल का पलड़ा भारी नजर आ रहा है क्योंकि कांग्रेस ने पहले ही प्रत्याशी की घोषणा कर दी थी. जबकि बीजेपी इस मामले में कांग्रेस से पिछड़ गई और उसे तैयारियों के लिए उतना वक्त नहीं मिला, जितना कांग्रेस के पास था, जबकि कांतिलाल भूरिया का एक मजबूत संगठन भी इस क्षेत्र में हैं, जिससे कांग्रेस यहां चुनाव जीत सकती है.