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लोकसभा चुनावः 33 करोड़ की स्याही से लगेगा अमिट निशान, प्रति वोटर आयेगा इतना खर्च - 33 करोड़ की स्याही

चुनाव आयोग ने वोटर इंक की 26 लाख बोतल ऑर्डर किया है, जिससे करीब 90 करोड़ वोटरों की अंगुली पर अमिट निशान लगाया जा सकेगा. जिसकी कीमत करीब 33 करोड़ रुपये होगी. इसके अलावा हर मतदाता पर करीब 50 रुपये खर्च आयेगा.

प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Mar 26, 2019, 12:19 PM IST

Updated : Mar 26, 2019, 12:41 PM IST

भोपाल। 10 मार्च को चुनाव आयोग के एलान के साथ ही लोकतंत्र का महापर्व शुरू हो गया है, जो 23 मई को मतगणना के साथ संपन्न होगा. इस दौरान बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, एक-एक वोटर को बूथ तक पहुंचाने से लेकर उनकी सुरक्षा और निष्पक्ष मतदान कराने की जिम्मेदारी आयोग पर है. चुनाव संबंधी कुछ और भी पहलू हैं जिनका जिक्र कम ही होता है, लेकिन उसके बिना निष्पक्ष चुनाव संभव ही नहीं है.

प्रत्याशियों के खर्च पर नजर रखने के अलावा आयोग को अपने खर्च की भी चिंता रहती है क्योंकि यहां के वोटरों की संख्या कई देशों की आबादी से भी अधिक है. ऐसे में महंगाई की मार के चलते आयोग को भी जेब ढीली करनी पड़ती है. 1951 के चुनाव में प्रति मतदाता 0.6 रुपये आने वाला खर्च 2019 में 50 रुपये से ऊपर पहुंचने वाला है, जबकि 2009 में प्रति मतदाता करीब 15 रुपये आने वाला खर्च अचानक से 2014 में 46 रुपये से ऊपर पहुंच गया था. महंगाई में इतना उछाल किसी भी चुनाव में दर्ज नहीं किया गया.

चुनाव के दौरान वोटरों के नाखून पर लगाई जाने वाली नीली स्याही का भी खर्च करोड़ों में आता है. वोटर इंक बनाने व सप्लाई करने वाली हैदराबाद की रायडू लैब्स और मैसूर की मैसूर पेंट्स एंड वॉर्निश लिमिटेड. यही दोनों कंपनियां पूरे देश में वोटर इंक सप्लाइ करती हैं. दो दर्जन से अधिक देशों में इस इंक की सप्लाई होती है. वोटिंग में इस्तेमाल होने वाली इंक में सिल्वर नाइट्रेट होता है जो अल्ट्रावॉइलट लाइट पड़ने पर स्किन पर ऐसा निशान छोड़ता है जो मिटता नहीं है.

2009 के मुकाबले इस बार की कीमत करीब तीन गुना बढ़ी है. उस वक्त स्याही पर 12 करोड़ रुपये खर्च आया था, जबकि पिछली बार के मुकाबले इस बार वोटर इंक की 4.5 लाख बोतलें ज्यादा मंगाई गई हैं. एक बोतल में 10 मिलीलीटर स्याही होती है. जिससे करीब 350 वोटरों की अंगुली पर निशान लगाया जा सकता है. 2004 तक वोटिंग के दौरान सिर्फ एक डॉट लगाया जाता था, जिसे 2006 में चुनाव आयोग ने एक लंबी सीधी लाइन में तब्दील कर दिया. जिसके चलते स्याही की खपत बढ़ गयी. हर पोलिंग बूथ को दो बोतलें दी जाती हैं. सबसे अधिक यूपी में करीब 3 लाख बोतलें खर्च होती हैं, जबकि सबसे कम करीब 200 लक्षद्वीप में इस्तेमाल होती है.

चुनाव आयोग ने वोटर इंक की 26 लाख बोतल ऑर्डर किया है, जिससे करीब 90 करोड़ वोटरों की अंगुली पर अमिट निशान लगाया जा सकेगा. जिसकी कीमत करीब 33 करोड़ रुपये होगी. 10 मार्च को चुनाव आयोग ने सात चरणों में चुनाव कराने का एलान किया था, जोकि 11 अप्रैल से शुरू होकर 19 मई को पूरा होगा, लेकिन 23 मई को मतगणना के साथ ही चुनाव प्रक्रिया संपन्न होगी.

भोपाल। 10 मार्च को चुनाव आयोग के एलान के साथ ही लोकतंत्र का महापर्व शुरू हो गया है, जो 23 मई को मतगणना के साथ संपन्न होगा. इस दौरान बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, एक-एक वोटर को बूथ तक पहुंचाने से लेकर उनकी सुरक्षा और निष्पक्ष मतदान कराने की जिम्मेदारी आयोग पर है. चुनाव संबंधी कुछ और भी पहलू हैं जिनका जिक्र कम ही होता है, लेकिन उसके बिना निष्पक्ष चुनाव संभव ही नहीं है.

प्रत्याशियों के खर्च पर नजर रखने के अलावा आयोग को अपने खर्च की भी चिंता रहती है क्योंकि यहां के वोटरों की संख्या कई देशों की आबादी से भी अधिक है. ऐसे में महंगाई की मार के चलते आयोग को भी जेब ढीली करनी पड़ती है. 1951 के चुनाव में प्रति मतदाता 0.6 रुपये आने वाला खर्च 2019 में 50 रुपये से ऊपर पहुंचने वाला है, जबकि 2009 में प्रति मतदाता करीब 15 रुपये आने वाला खर्च अचानक से 2014 में 46 रुपये से ऊपर पहुंच गया था. महंगाई में इतना उछाल किसी भी चुनाव में दर्ज नहीं किया गया.

चुनाव के दौरान वोटरों के नाखून पर लगाई जाने वाली नीली स्याही का भी खर्च करोड़ों में आता है. वोटर इंक बनाने व सप्लाई करने वाली हैदराबाद की रायडू लैब्स और मैसूर की मैसूर पेंट्स एंड वॉर्निश लिमिटेड. यही दोनों कंपनियां पूरे देश में वोटर इंक सप्लाइ करती हैं. दो दर्जन से अधिक देशों में इस इंक की सप्लाई होती है. वोटिंग में इस्तेमाल होने वाली इंक में सिल्वर नाइट्रेट होता है जो अल्ट्रावॉइलट लाइट पड़ने पर स्किन पर ऐसा निशान छोड़ता है जो मिटता नहीं है.

2009 के मुकाबले इस बार की कीमत करीब तीन गुना बढ़ी है. उस वक्त स्याही पर 12 करोड़ रुपये खर्च आया था, जबकि पिछली बार के मुकाबले इस बार वोटर इंक की 4.5 लाख बोतलें ज्यादा मंगाई गई हैं. एक बोतल में 10 मिलीलीटर स्याही होती है. जिससे करीब 350 वोटरों की अंगुली पर निशान लगाया जा सकता है. 2004 तक वोटिंग के दौरान सिर्फ एक डॉट लगाया जाता था, जिसे 2006 में चुनाव आयोग ने एक लंबी सीधी लाइन में तब्दील कर दिया. जिसके चलते स्याही की खपत बढ़ गयी. हर पोलिंग बूथ को दो बोतलें दी जाती हैं. सबसे अधिक यूपी में करीब 3 लाख बोतलें खर्च होती हैं, जबकि सबसे कम करीब 200 लक्षद्वीप में इस्तेमाल होती है.

चुनाव आयोग ने वोटर इंक की 26 लाख बोतल ऑर्डर किया है, जिससे करीब 90 करोड़ वोटरों की अंगुली पर अमिट निशान लगाया जा सकेगा. जिसकी कीमत करीब 33 करोड़ रुपये होगी. 10 मार्च को चुनाव आयोग ने सात चरणों में चुनाव कराने का एलान किया था, जोकि 11 अप्रैल से शुरू होकर 19 मई को पूरा होगा, लेकिन 23 मई को मतगणना के साथ ही चुनाव प्रक्रिया संपन्न होगी.

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भोपाल। 10 मार्च को चुनाव आयोग के एलान के साथ ही लोकतंत्र का महापर्व शुरू हो गया है, जो 23 मई को मतगणना के साथ संपन्न होगा. इस दौरान बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, एक-एक वोटर को बूथ तक पहुंचाने से लेकर उनकी सुरक्षा और निष्पक्ष मतदान कराने की जिम्मेदारी आयोग पर है. चुनाव संबंधी कुछ और भी पहलू हैं जिनका जिक्र कम ही होता है, लेकिन उसके बिना निष्पक्ष चुनाव संभव ही नहीं है.



प्रत्याशियों के खर्च पर नजर रखने के अलावा आयोग को अपने खर्च की भी चिंता रहती है क्योंकि यहां के वोटरों की संख्या कई देशों की आबादी से भी अधिक है. ऐसे में महंगाई की मार के चलते आयोग को भी जेब ढीली करनी पड़ती है. 1951 के चुनाव में प्रति मतदाता 0.6 रुपये आने वाला खर्च 2019 में 50 रुपये से ऊपर पहुंचने वाला है, जबकि 2009 में प्रति मतदाता करीब 15 रुपये आने वाला खर्च अचानक से 2014 में 46 रुपये से ऊपर पहुंच गया था. महंगाई में इतना उछाल किसी भी चुनाव में दर्ज नहीं किया गया.



चुनाव के दौरान वोटरों के नाखून पर लगाई जाने वाली नीली स्याही का भी खर्च करोड़ों में आता है. वोटर इंक बनाने व सप्लाई करने वाली हैदराबाद की रायडू लैब्स और मैसूर की मैसूर पेंट्स एंड वॉर्निश लिमिटेड. यही दोनों कंपनियां पूरे देश में वोटर इंक सप्लाइ करती हैं. दो दर्जन से अधिक देशों में इस इंक की सप्लाई होती है. वोटिंग में इस्तेमाल होने वाली इंक में सिल्वर नाइट्रेट होता है जो अल्ट्रावॉइलट लाइट पड़ने पर स्किन पर ऐसा निशान छोड़ता है जो मिटता नहीं है.



2009 के मुकाबले इस बार की कीमत करीब तीन गुना बढ़ी है. उस वक्त स्याही पर 12 करोड़ रुपये खर्च आया था, जबकि पिछली बार के मुकाबले इस बार वोटर इंक की 4.5 लाख बोतलें ज्यादा मंगाई गई हैं. एक बोतल में 10 मिलीलीटर स्याही होती है. जिससे करीब 350 वोटरों की अंगुली पर निशान लगाया जा सकता है. 2004 तक वोटिंग के दौरान सिर्फ एक डॉट लगाया जाता था, जिसे 2006 में चुनाव आयोग ने एक लंबी सीधी लाइन में तब्दील कर दिया. जिसके चलते स्याही की खपत बढ़ गयी. हर पोलिंग बूथ को दो बोतलें दी जाती हैं. सबसे अधिक यूपी में करीब 3 लाख बोतलें खर्च होती हैं, जबकि सबसे कम करीब 200 लक्षद्वीप में इस्तेमाल होती है.



चुनाव आयोग ने वोटर इंक की 26 लाख बोतल ऑर्डर किया है, जिससे करीब 90 करोड़ वोटरों की अंगुली पर अमिट निशान लगाया जा सकेगा. जिसकी कीमत करीब 33 करोड़ रुपये होगी. 10 मार्च को चुनाव आयोग ने सात चरणों में चुनाव कराने का एलान किया था, जोकि 11 अप्रैल से शुरू होकर 19 मई को पूरा होगा, लेकिन 23 मई को मतगणना के साथ ही चुनाव प्रक्रिया संपन्न होगी.


Conclusion:
Last Updated : Mar 26, 2019, 12:41 PM IST
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