भोपाल। चुनावी शतरंज पर सभी दल अपने-अपने मोहरे सेट कर रहे हैं, मध्यप्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस ही मुख्य मुकाबले में है. भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट वाराणसी चर्चा में है, लेकिन मध्यप्रदेश की भोपाल सीट देश की सबसे हाई प्रोफाइल होने वाली है क्योंकि यहां से इस बार कांग्रेस ने राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले 10 साल तक एमपी के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाया है, ऐसे में बीजेपी भी दिग्गी राजा के सामने दमदार प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है.
चर्चा है कि बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भोपाल से चुनाव लड़ सकते हैं, वह तैयार भी हैं, लेकिन पार्टी की ओर से अब तक आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. यदि कैलाश भोपाल से चुनाव लड़ते हैं तो ये सीट निश्चित रूप से हाई प्रोफाइल हो जायेगी. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर पहले ही दिग्विजय सिंह को भोपाल से चुनाव लड़ने की चुनौता दे चुके थे, इसके बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एलान कर दिया कि दिग्विजय सिंह ही भोपाल से चुनाव लड़ेंगे, तब भोपाल सांसद आलोक संजर ने कहा था कि कांग्रेस की सूची में दिग्विजय सिंह का नाम ही नहीं होगा, लेकिन उसके अगले दिन कांग्रेस ने भोपाल से दिग्विजय सिंह को आधिकारिक उम्मीदवार घोषित कर दिया.
हालांकि, दिग्विजय सिंह राजगढ़ से दूर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन पार्टी के फैसले के आगे उन्हें मजबूर होना पड़ा. राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि दिग्विजय सिंह को बलि का बकरा बनाया गया है क्योंकि कमलनाथ के एलान के बाद से ही ये चर्चा चली कि यदि दिग्विजय सिंह भोपाल से प्रत्याशी होंगे तो क्या नकुलनाथ विदिशा से चुनाव लड़ेंगे. हालांकि कांग्रेस ने छिंदवाड़ा से अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है, लेकिन लगभग तय माना जा रहा है कि नकुलनाथ ही छिंदवाड़ा से प्रत्याशी बनकर अपने पिता की जागीर संभालेंगे. यदि दिग्विजय सिंह राजगढ़ से चुनाव लड़ते तो ये सीट कांग्रेस की लगभग पक्की रहती. भले ही दिग्विजय को भोपाल भेज दिया गया है, लेकिन पार्टी ये चाहेगी कि दिग्विजय सिंह भोपाल के साथ-साथ राजगढ़ के उम्मीदवार की भी मदद करें.
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो टिकट बंटवारे में सबसे अधिक दिग्विजय सिंह की चांदी रही क्योंकि वह अपने बेटे जयवर्धन सिंह को राघौगढ़ से, भतीजे प्रियव्रत सिंह को खिलचीपुर से और भाई लक्ष्मण सिंह को चाचौड़ा से टिकट दिलाने में सफल रहे, जबकि अन्य समर्थकों को भी टिकट दिलाने में कामयाब रहे. चुनाव संपन्न हो गया, 15 साल का वनवास खत्म कर पार्टी सत्तासीन भी हो गयी, कमलनाथ को सीएम बनाने में दिग्विजय सिंह ने खूब बैटिंग की क्योंकि जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने थे, तब कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह के पक्ष में 10 जनपथ से बैटिंग की थी, ऐसा करके उन्होंने इसका हिसाब भी चुकता कर दिया.
इस बीच ऐसा क्या हो गया कि दिग्विजय सिंह खुद की मर्जी से अपनी सीट का चयन नहीं कर पाये, कहीं इसके पीछे दिग्विजय को ठिकाने लगाने की कोशिश तो नहीं है, अब दिग्विजय सिंह के सामने मरने-मारने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता. यदि दिग्विजय सिंह इस अग्निपरीक्षा को पार कर लेते हैं तो सियासत में उनकी मिसाल दी जायेगी वरना उनकी सियासी विरासत पर ग्रहण लग जायेगा. जब तक बीजेपी का प्रत्याशी घोषित नहीं होता, तब तक कोई कयास लगाना बेमानी होगा, यदि कैलाश को प्रत्याशी बनाती है तो मुकाबला बहुत कांटे का होगा क्योंकि दोनों ही सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं, दोनों के पास जमीनी कार्यकर्ता भी हैं, लेकिन दोनों में एक समानता रहेगी कि दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र से दूर भोपाल के मैदान में आमने-सामने होंगे.
वहीं भोपाल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के चुनाव लड़ने की भी चर्चा है, यदि बीजेपी शिवराज को प्रत्याशी बनाती है तो 10-15 सालों तक प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले दोनों पूर्व मुख्यमंत्री आमने-सामने होंगे और यदि दिग्विजय सिंह और कैलाश विजयवर्गीय आमने-सामने हुए तो जैसे रजवाड़ों के बीच युद्ध के लिए मैदान तय होता था, ठीक वैसे ही दोनों महारथी अपनी-अपनी सेना के साथ भोपाल के मैदान की ओर कूच करेंगे. हालांकि दिग्विजय सिंह सियासी जाल बिछाना शुरु कर दिये हैं, भोपाल की कई विधानसभा सीटों पर इनकी जमीनी पकड़ भी है, ऐसे में बीजेपी भी बहुत सोच-समझकर प्रत्याशी उतारेगी.