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सुप्रीम कोर्ट के फैसला के खिलाफ आदिवासियों ने किया प्रदर्शन, निकाली रैली

बुरहानपुर जिले में वन अधिकार कानून और पांचवीं अनुसूची को सुप्रीम कोर्ट के खत्म करने के फैसले के खिलाफ आदिवासी रैली निकालकर प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं आदिवासियों ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर प्रस्तावित भारतीय वन कानून के संशोधन को वापस लेने की मांग की है.

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Published : Oct 15, 2019, 11:21 AM IST

Updated : Oct 15, 2019, 1:38 PM IST

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में आदिवासी कर रहे प्रदर्शन

बुरहानपुर। जिले में वनभूमियों पर काबिज आदिवासियों को बेदखल करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दो हजार से अधिकर आदिवासियों ने रैली निकालकर प्रदर्शन किया है. रैली शनवारा स्थित सावित्री बाई फुले सब्जी मंडी परिसर से लेकर कलेक्ट्रेट तक निकाली गई है. जिसके बाद कलेक्टर राजेश कौल को ज्ञापन सौंपा है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में आदिवासी कर रहे प्रदर्शन

आदिवासियों ने ज्ञापन में लिखा है कि सरकार की चुप्पी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लाखों आदिवासियों को मातृभूमि से विस्थापित होना पड़ेगा. साथ ही समाज का विघटन, विपन्नता, गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसे दंश भी झेलने पड़ेंगे. ज्ञापन के जरिए मांग की है कि प्रस्तावित भारतीय वन कानून का संशोधन सरकार वापस ले और वनों के संरक्षण, संवर्धन, प्रबंधन का अधिकार वन आश्रित समुदाय को दिया जाए और साथ ही वनों को उनकी आजीविका के साधन के रूप में मान्यता दी जाए.

आदिवासी नेता नाहर सिंह ने बताया कि वन अधिकार कानून और पांचवीं अनुसूची को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म करने का निर्णय लिया है. जिससे देशभर में लाखों आदिवासी बेघर हो जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट में इसकी अंतिम सुनवाई चल रही है, जबकि जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों का हक है.

बुरहानपुर। जिले में वनभूमियों पर काबिज आदिवासियों को बेदखल करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दो हजार से अधिकर आदिवासियों ने रैली निकालकर प्रदर्शन किया है. रैली शनवारा स्थित सावित्री बाई फुले सब्जी मंडी परिसर से लेकर कलेक्ट्रेट तक निकाली गई है. जिसके बाद कलेक्टर राजेश कौल को ज्ञापन सौंपा है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में आदिवासी कर रहे प्रदर्शन

आदिवासियों ने ज्ञापन में लिखा है कि सरकार की चुप्पी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लाखों आदिवासियों को मातृभूमि से विस्थापित होना पड़ेगा. साथ ही समाज का विघटन, विपन्नता, गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसे दंश भी झेलने पड़ेंगे. ज्ञापन के जरिए मांग की है कि प्रस्तावित भारतीय वन कानून का संशोधन सरकार वापस ले और वनों के संरक्षण, संवर्धन, प्रबंधन का अधिकार वन आश्रित समुदाय को दिया जाए और साथ ही वनों को उनकी आजीविका के साधन के रूप में मान्यता दी जाए.

आदिवासी नेता नाहर सिंह ने बताया कि वन अधिकार कानून और पांचवीं अनुसूची को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म करने का निर्णय लिया है. जिससे देशभर में लाखों आदिवासी बेघर हो जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट में इसकी अंतिम सुनवाई चल रही है, जबकि जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों का हक है.

Intro:बुरहानपुर। वनभूमियों पर काबिज आदिवासियों को बेदखल करने के सुप्रीम कोर्ट के फरमान के खिलाफ आदिवासी एकता संगठन के बैनर तले दो हजार से ज्यादा आदिवासियों ने शनवारा स्थित सावित्री बाई फुले सब्जी मंडी परिसर से लेकर कलेक्ट्रेट तक रैली निकाली, आदिवासियों ने कलेक्ट्रेट परिसर में कई घंटो तक सभा और प्रदर्शन किया, जिसके बाद कलेक्टर राजेश कौल को ज्ञापन सौंपा।


Body: ज्ञापन में लिखा है कि सरकार की चुप्पी और कोर्ट के फैसले से लाखों आदिवासियों को न सिर्फ मातृभूमि से विस्थापित होना पड़ेगा, बल्कि इससे समाज का विघटन, विपन्नता तथा गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसे दंश भी भुगतने होंगे, ज्ञापन के माध्यम से उनकी मांग की कि प्रस्तावित भारतीय वन कानून का संशोधन सरकार वापस ले और वनों के संरक्षण, संवर्धन, प्रबंधन का अधिकार वन आश्रित समुदाय को दिया जाए, वनों को उनकी आजीविका के साधन के रूप में मान्यता दी जाए।


Conclusion:आदिवासी नेता नाहर सिंह ने बताया कि वन अधिकार कानून और पांचवी अनुसूची को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म करने का निर्णय लिया है, जिससे देशभर में लाखों आदिवासी बेघर हो जाएंगे, सुप्रीम कोर्ट में इसकी अंतिम दौर की सुनवाई चल रही है, जबकि जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों का हक है।

वही आदिवासी नेता गजानंद ब्राह्मणे ने कहा कि आदिवासियों के साथ हुए अन्याय को सुधारने के लिए 2006 में वन अधिकार कानून बनाया गया था, जिसके मुताबिक वन भूमि पट्टे के आवेदनों का सत्यापन ग्राम सभा को किया जाना था, यहां से प्रस्तावित खंड स्तरीय समिति को भेजा जाना था, और वहां से पट्टे आवंटित किए जाने थे, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी बुरहानपुर जिले में यह समिति ही गठित नहीं हो पाई, जिसके चलते जो सत्यापन ग्रामसभा को किया जाना चाहिए वह वन विभाग का अमला कर रहा है, यह प्रक्रिया गैर संवैधानिक की।

बाईट 01:- नाहर सिंह, आदिवासी नेता।
बाईट 02:- गजाजन ब्राह्मणे, आदिवासी नेता।
Last Updated : Oct 15, 2019, 1:38 PM IST
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