बुरहानपुर। इस बार बुरहानपुर की बहनों ने रक्षाबंधन के त्यौहार को खास बना दिया है, क्योंकि बहने अपने हाथों से खुद भाई के लिए राखी सजा रही है. जो राखियां बहने बना रही है वो नए जमाने की फैंसी नहीं है, बल्कि पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल है. इसके लिए किसी तरह के प्लास्टिक का उपयोग नहीं किया है, बहनों ने केले के पौधें से निकलने वाले रेशे को आकर्षक स्वरूप दिया है. जब ये राखी भाई की कलाई पर बंधेंगी, तो एक सुखद भाव का अनुभव होगा.
इको फ्रेंडली राखियों से पर्यावरण संरक्षण का संदेश: भाईयों को राखी का ये खास उपहार देने के साथ ही बुरहानपुर की बहनों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मिसाल कायम की है. अब तक बहनों ने हजारों राखियों का निर्माण कर दिया है, इससे महिलाएं आत्मनिर्भर भी बन रही है. बाजार में ये राखियां उपलब्ध हैं, राखियों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, लोग इसमें रूचि ले रहे हैं. बहने भाईयों के लिए इको फ्रेंडली राखियां खरीद रही है, इससे समाज में पर्यावरण संरक्षण का संदेश फैल रहा है.
कलेक्टर के मार्गदर्शन में महिलाएं सीख रहीं गुर: दरअसल जिले में केला फसल की खेती बड़े स्तर पर की जाती है, हजारों हेक्टेअर में केला फसल लगाते हैं, फसल 12 महीने में तैयार होती है और फल काटने के बाद बच जाता है इसका तना. ये तना फल कटने के बाद भी बड़े काम का होता है, इससे रेशा निकलता है. रेशा भी रेशम की तरह मुलायम होता है, इसी रेशे का उपयोग बहने राखी बनाने के लिए कर रही है. खकनार के सखी सहेली सामुदायिक प्रशिक्षण केन्द्र में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने केले के रेशे से राखी बनाने की शुरूआत की है, अपने हाथों से इस रेशे से राखियों के साथ ही झूले, मोबाइल कवर, झूमर, पेन होल्डर, स्टैण्ड, गुडिया, गणेश जी की प्रतिमा सहित अन्य वस्तूएं बना रही है. कलेक्टर भव्या मित्तल के मार्गदर्शन में महिलाएं गुर सीख रही है, इसके लिए रायसेन निवासी प्रशिक्षिका अनिशा बी महिलाओं को कला सीखा रही है.
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महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का उद्देश्य: खकनार प्रशिक्षण केन्द्र में 60 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, प्रशिक्षार्थी मीना खरे, कान्ता यादव बताती है कि "ट्रेनिंग के माध्यम से हम बड़े ही आसानी से वस्तुएं बनाना सीख रहें है, जिन्हें तैयार कर हम विक्रय करते हुए आर्थिक लाभ भी कमाएंगे. आने वाले राखी के त्यौहार के लिए हमारे द्वारा राखियां बनाई जा रही है, जिला प्रशासन का उद्देश्य है कि मध्य प्रदेश डे- राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं आत्मनिर्भर बनें, उन्हें रोजगार के अवसर मिलें. वित्तीय प्रबंधन में सुदृढ़ता मिलें तथा आर्थिक रूप से सशक्त बनें."