बुरहानपुर। जिस पार्टी का विधायक नेपानगर सीट से जीता, प्रदेश में उसी दल की सरकार बनी. कई दशकों से बुरहानपुर की नेपानगर सीट को लेकर यह मिथक चलता आ रहा है. यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि 1977 से चला आ रहा है. हांलाकि ये कोई सिद्द बात नहीं सिर्फ मान्यता है लेकिन चुनाव में इस अजब-गजब मिथ की चर्चा खूब होती है और नतीजे के दिन तक चलती है.
इस बार मिथक टूटेगा?
प्रदेश की सियासत में नेपानगर विधानसभा सीट काफी महत्वपूर्ण है. 2018 में यहां से विधायक रहीं सुमित्रा देवी कास्डेकर ने पद से इस्तीफा दिया और कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गईं. इसके बाद यह सीट खाली हो गई. यहां अब उपचुनाव को लेकर कांग्रेस बीजेपी अपने-अपने प्रत्याशियों के जीत के दावे कर रहे हैं. साथ ही प्रदेश में अपनी सरकार बनने का दावा भी कर रहे हैं. जबकि राजनीतिक जानकारों के अनुसार दोनों दलों के प्रत्याशियों को लेकर असंतोष और विरोध है, लिहाजा 'जिस दल का विधायक उसकी सरकार' का मिथक बना रहेगा या टूटेगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.
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पार्टियों के दावे का सच
नेपानगर विधानसभा सीट पर अब तक 10 बार आम चुनाव और पूर्व में एक बार उपचुनाव हुआ है. 2020 में एक बार फिर से यहां उपचुनाव होे रहा है. कुछ इस तरह का रहा है नेपानगर विधानसभा सीट का इतिहास:
- सन् 1977 में पहली बार हुए चुनाव में जनता पार्टी के टिकट से ब्रजमोहन मिश्र चुनाव जीते और सरकार भी जनता पार्टी की बनी. इस दौरान उन्हें वन मंत्री बनाया गया था.
- सन् 1980 के चुनाव में कांग्रेस के तनवंत सिंह की और जीते सरकार कांग्रेस की आई और फिर कीर स्वास्थ्य मंत्री बने. 1985 में कांग्रेस से तनवंत सिंह कीर फिर जीते सरकार भी कांग्रेस की रही और कीर नगरीय प्रशासन मंत्री बने.
- सन् 1990 में बीजेपी से बृज मोहन मिश्र विधायक बने इस बार सरकार भाजपा की और मिश्र विधानसभा अध्यक्ष बने. जिसके बाद 1993 के चुनाव में कांग्रेस से तनवंत सिंह कीर जीते सरकार कांग्रेस की आई और कीर फिर नगरीय प्रशासन मंत्री बने.
- सन् 1998 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट से रघुनाथ चौधरी जीते और सरकार कांग्रेस की बनी. फिर वर्ष 2003 में फिर भाजपा से अर्चना चिटनीस जीती सरकार भाजपा की बनी और उसमें अर्चना चिटनिस को पशुपालन मंत्री की जिम्मेदारी मिली.
- वर्ष 2008 में भाजपा से राजेंद्र दादू जीते और सरकार भाजपा की रही, वर्ष 2013 में भी भाजपा के राजेंद्र दादू के हाथों बाजी रही और सरकार भाजपा की कायम रही. राजेंद्र दादू की सड़क दुर्घटना में मौत हो जाने के चलते वर्ष 2016 में हुए उपचुनाव में उनकी बेटी मंजू दादू भाजपा के टिकट से विधायक चुनी गई और सरकार भाजपा की रही.
- वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट से सुमित्रा देवी विधायक बनी और प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी.
क्यों अहम है नेपानगर सीट
इस बार उपचुनाव में भी यह मिथक कायम रहेगा या नहीं देखने लायक होगा. मगर ये सीट काफी अहम है और यहां से अधिकांश विधायक राज्य सरकार में मंत्री बनते रहे हैं. इस सीट से आस पास के कई सीटों का समीकरण बनता बिगड़ता है लिहाजा पार्टियां काफी सोच समझकर और सारे समीकरण को देखकर ही उम्मीदवार पर दांव लगाती है. हांलाकि इस बार राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी-कांग्रेस दोनों दलों में प्रत्याशियों को लेकर गहरा असंतोष और विरोध है. ऐसे में यह कहना काफी मुश्किल है कि यह मिथक जारी रहेगा या टूटेगा.