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बुरहानपुर से भी प्रभु श्री राम का क्या है खास कनेक्शन, जानिए श्री राम झरोखा मंदिर का इतिहास - श्री राम झरोखा मंदिर इतिहास

Lord Ram connection Burhanpur : बुरहानपुर से भी भगवान श्री राम का खास कनेक्शन है. वनवास के दौरान भगवान श्री राम बुरहानपुर आए थे. वह यहां ताप्ती नदी के किनारे रुके थे. अब यहां झरोखा नामक मंदिर है.

Lord Shri Ram special connection with Burhanpur
बुरहानपुर से भी प्रभु श्री राम का खास कनेक्शन
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 16, 2024, 1:05 PM IST

बुरहानपुर से भी प्रभु श्री राम का खास कनेक्शन

बुरहानपुर। 22 जनवरी को अयोध्या धाम में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इसका उत्साह पूरे देश में है. बुरहानपुर से भी भगवान श्री राम का खास जुड़ाव है. दरअसल, वनवास के दौरान भगवान श्रीराम बुरहानुपर आए थे. वह ताप्ती नदी के तट पर आए थे. इसलिए श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा को लेकर बुरहानपुर में खासा उत्साह है. उत्सव की तैयारियां वृहद स्तर पर चल रही हैं. जिस जगह भगवान श्री राम के पग पड़े थे, वह स्थान श्री राम झरोखा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है. यहां हर दिन सैकड़ो भक्त दर्शन, पूजन के लिए आते हैं.

ताप्ती तट पर रात्रि विश्राम : वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ताप्ती तट के किनारे जानकी और लक्ष्मण जी के साथ झरोखा मंदिर आए थे. यहां पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया था. यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब आए थे, तब बुरहानपुर ब्रह्मपुर के नाम से जाना जाता था. साथ ही ताप्ती, उतावली नदी के संगम स्थल पर पिता दशरथ का श्राद्ध भी किया था. अब इस घाट को रामघाट के नाम से जाना जाता है. उस वक्त भगवान श्री राम ने ताप्ती नदी के तट पर रेत से शिवलिंग भी बनाया था. बाद में यहां देवी अहिल्या होल्कर ने मंदिर का निर्माण कराया. गुफा में भी ठहरे : भगवान श्रीराम वनवास के दौरान ग्राम ठाठर-खामला क्षेत्र के सीता गुफा भी पहुंचे थे. उस समय भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण के साथ सीता गुफा में ठहरे थे. यह स्थान जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर है बलड़ी गांव क्षेत्र में है. यह आज भी एक मनोरम स्थल है. सघन वन में कलकल बहता झरना हर किसी को आकर्षित करता है. मान्यता है कि वनवास के दौरान मां सीता को स्नान के लिए सरोवर नहीं मिला तो प्रभु श्री राम ने नेपानगर स्थित बीड़ गांव में अपने बाण से एक कुंड बना दिया. इसके बाद से इसे सीता नहानी के नाम से जाना जाता है. जहां सालभर अविरल धारा बहती रहती है.

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पुजारी ने क्या बताया : मंदिर के पुजारी महंत नर्मदानंद गिरी महाराज ने बताया कि यह क्षेत्र उस समय दंडकारण्य वन का हिस्सा था. यह भी मान्यता है कि वनवास के दौरान इस जगह पर भगवान श्रीराम ने दूषण और खर नाम के राक्षसों का वध किया था. उस वक्त इन राक्षसों के आतंक था. भगवान श्रीराम को ऋषि, मुनियों ने राक्षसों के अत्याचारों के बारे में बताया था. इसके बाद भगवान श्रीराम ने राक्षसों का वध कर अत्याचार को समाप्त किया था. यहां से प्रभु श्री राम पंचवटी के लिए रवाना हुए थे.

बुरहानपुर से भी प्रभु श्री राम का खास कनेक्शन

बुरहानपुर। 22 जनवरी को अयोध्या धाम में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इसका उत्साह पूरे देश में है. बुरहानपुर से भी भगवान श्री राम का खास जुड़ाव है. दरअसल, वनवास के दौरान भगवान श्रीराम बुरहानुपर आए थे. वह ताप्ती नदी के तट पर आए थे. इसलिए श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा को लेकर बुरहानपुर में खासा उत्साह है. उत्सव की तैयारियां वृहद स्तर पर चल रही हैं. जिस जगह भगवान श्री राम के पग पड़े थे, वह स्थान श्री राम झरोखा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. यह मंदिर करीब 500 साल पुराना है. यहां हर दिन सैकड़ो भक्त दर्शन, पूजन के लिए आते हैं.

ताप्ती तट पर रात्रि विश्राम : वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ताप्ती तट के किनारे जानकी और लक्ष्मण जी के साथ झरोखा मंदिर आए थे. यहां पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया था. यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब आए थे, तब बुरहानपुर ब्रह्मपुर के नाम से जाना जाता था. साथ ही ताप्ती, उतावली नदी के संगम स्थल पर पिता दशरथ का श्राद्ध भी किया था. अब इस घाट को रामघाट के नाम से जाना जाता है. उस वक्त भगवान श्री राम ने ताप्ती नदी के तट पर रेत से शिवलिंग भी बनाया था. बाद में यहां देवी अहिल्या होल्कर ने मंदिर का निर्माण कराया. गुफा में भी ठहरे : भगवान श्रीराम वनवास के दौरान ग्राम ठाठर-खामला क्षेत्र के सीता गुफा भी पहुंचे थे. उस समय भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण के साथ सीता गुफा में ठहरे थे. यह स्थान जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर है बलड़ी गांव क्षेत्र में है. यह आज भी एक मनोरम स्थल है. सघन वन में कलकल बहता झरना हर किसी को आकर्षित करता है. मान्यता है कि वनवास के दौरान मां सीता को स्नान के लिए सरोवर नहीं मिला तो प्रभु श्री राम ने नेपानगर स्थित बीड़ गांव में अपने बाण से एक कुंड बना दिया. इसके बाद से इसे सीता नहानी के नाम से जाना जाता है. जहां सालभर अविरल धारा बहती रहती है.

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पुजारी ने क्या बताया : मंदिर के पुजारी महंत नर्मदानंद गिरी महाराज ने बताया कि यह क्षेत्र उस समय दंडकारण्य वन का हिस्सा था. यह भी मान्यता है कि वनवास के दौरान इस जगह पर भगवान श्रीराम ने दूषण और खर नाम के राक्षसों का वध किया था. उस वक्त इन राक्षसों के आतंक था. भगवान श्रीराम को ऋषि, मुनियों ने राक्षसों के अत्याचारों के बारे में बताया था. इसके बाद भगवान श्रीराम ने राक्षसों का वध कर अत्याचार को समाप्त किया था. यहां से प्रभु श्री राम पंचवटी के लिए रवाना हुए थे.

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