बुरहानपुर। महामंडलेश्वर कम्प्यूटर बाबा की गाड़ी बुरहानपुर के निकट दुर्घटनाग्रस्त होकर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है. हादसे में उनके साथ कई संतों को भी गम्भीर चोटें आई हैं. वहीं घटनास्थल पर जुटी भीड़ ने बाबा एवं अन्य घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया है. इसके साथ ही पुलिस को भी सूचना दे दी है.
चुनावी प्रचार प्रसार के लिए खंडवा जा रहे थे बाबा
मिली जानकारी के मुताबिक, बाबा खंडवा उपचुनाव के लिए प्रचार प्रसार करने जा रहे थे, जहां कंप्यूटर बाबा कांग्रेस प्रत्याशी राज नारायण सिंह के पक्ष में प्रचार करते. कंप्यूटर बाबा का असली नाम नामदेव दास त्यागी (Naamdev Das tyagi) है, लेकिन वे कंप्यूटर बाबा के नाम से फेमस रहे हैं. वे मूल रूप से जबलपुर (Jabalpur) जिले के बरेला गांव के रहने वाले हैं. नामदेव दास उर्फ कंप्यूटर बाबा पहले शिक्षक थे. इस काम में उनका मन जमा नहीं. एक दिन वे परिवार को छोड़कर कहीं चले गए. कई सालों बाद जब लौटे तो साधु के वेश में थे. कंप्यूटर बाबा ने पूरे प्रदेश में धीरे-धीरे अपने अनुयायियों का संगठन बनाया. फिर कई राजनेताओं से नजदीकियां बढ़ाई. समय-समय पर राजनीतिक बयानबाजी से सुर्खियां बटोरी. ऐसा वक्त भी आया जब शिवराज सरकार में उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा मिल गया. लेकिन जैसे ही शिवराज सरकार की मध्य प्रदेश से विदाई हुई तो उन्होंने भी पाला बदल लिया, वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. कांग्रेस की सरकार बनते ही वे एक बार फिर राज्य मंत्री बन गए.
जमुडी हप्सी से हुई थी शुरुआत
कंप्यूटर बाबा की इन्दौर(Indore) में शुरुआत जमुडी हप्सी से हुई. यहां कंप्यूटर बाबा (Computer Baba) ने पंचमुखी हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया. इसके बाद तो कंप्यूटर बाबा यहां साधना करने लगे. धीरे धीरे लोग उनसे जुड़ते गए. नामदेव दास त्यागी की पहचान बनती गई. अंबिकापुरी स्थित एक रहवासी संघ ने कालका माता की पूजा के लिए कंप्यूटर बाबा को बतौर पुजारी नियुक्त किया. कालका मंदिर में उन्होंने बड़े बड़े अनुष्ठान किए. यहां शहर के बड़े बड़े उद्योगपति और राजनेता आने लगे. इनसे बाबा का उठना बैठना शुरु हुआ. 2005 में गोमटगिरी स्थित टेकरी पर बने कालका माता मंदिर (Kalka Mata Mandir)भी देखरेख करने लगे. जैन समाज के प्रमुख तीर्थ स्थल का मंदिर भी कालका माता मंदिर के ठीक पास ही टेकरी पर था. लेकिन दोनों मंदिरों में जाने का रास्ता एक ही था. जैन समाज के लोग मुख्य मार्ग पर एक गेट बनवा रहे थे, इसका कंप्यूटर बाबा ने विरोध किया. फिर धरना प्रदर्शन हुआ और फिर अनशन. ऐसे में राजवाड़ा में संतों का जमावड़ा लग गया. पूरे विरोध प्रदर्शन और आंदोलन का जिम्मा कंप्यूटर बाबा ने ही उठा रखा था. इस घटना से एकाएक कंप्यूटर बाबा प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गए. कंप्यूटर बाबा को मनाने के लिए कई राजनेताओं ने राजवाडा में दस्तक दी. बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय(Kailash vijaywargia) ने कंप्यूटर बाबा और सरकार के बीच मध्यस्थता करवाई. इस तरह कंप्यूटर बाबा का प्रदेश की राजनीति में दखल शुरु हुआ.
नामदेव से ऐसे बने कम्प्यूटर बाबा
हम पहले बता चुके हैं कि कंप्यूटर बाबा का नाम नामदेव दास त्यागी था. वे काफी तेज तर्रार थे और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का बखूबी इस्तेमाल कर लिया करते थे. इसलिए मुख्यमंत्री रहते हुए दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने नामदेव दास त्यागी का नाम महामंडलेश्वर कंप्यूटर बाबा रख दिया. तबसे नामदेव दास त्यागी प्रसिद्ध हो गए कंप्यूटर बाबा के नाम से. कंप्यूटर बाबा दिग्विजय सिंह के काफी करीब आ गए. जब दिग्विजय सिंह ने भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा तो उस समय कंप्यूटर बाबा ने वहां पर मोर्चा संभाला और कई तरह के अनुष्ठान भी किए. बाबा एक ओर दिग्विजय सिंह के नजदीक आ गए थे, तो दूसरी ओर बीजेपी के कैलाश विजयवर्गीय, रमेश मेंदोला सहित कई विधायकों और मंत्रियों से भी उनकी पटरी बैठने लगी.
राजनीतिक महत्वकांक्षा के चलते ध्वस्त हुआ साम्राज्य
कंप्यूटर बाबा बीजेपी और कांग्रेस दोनों में अपने पैर जमाए हुए थे. वे चालाकी से अपने काम निकाल रहे थे. इसी दौरान बाबा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा(Political Ambitions) जोर मारने लगी. उन्होंने बीजेपी के खिलाफ ग्वालियर, भिंड, मुरैना सहित अन्य विधानसभाओं में जमकर प्रचार प्रसार किया. लेकिन कांग्रेस यहां पर हार गई और जाहिर है बीजेपी के प्रत्याशी जीत गए. नतीजा ये हुआ कि बीजेपी ने सत्ता पर काबिज होते ही उनके बुरे दिन शुरु हो गए. नवंबर 2020 में कंप्यूटर बाबा के आश्रम पर अतिक्रमण के आरोप लगे. बाबा के इंदौर में तीन ठिकानों के साथ ही जबलपुर और दूसरी जगहों पर कानून का पंजा चलने लगा.
गोम्तगिरी टेकरी पर करोड़ों की सम्पति पर किया कब्जा
गोमट गिरी स्थित टेकरी पर कंप्यूटर बाबा ने अवैध रूप से कब्जा किया हुआ था. प्रशासन ने कब्जा हटाया तो कंप्यूटर बाबा (Computer Baba)ने विरोध किया. लेकिन प्रशासन ने उनकी एक नहीं सुनी. करीब 2 से ढाई एकड़ जमीन पर जो कंप्यूटर बाबा ने आश्रम और अन्य निर्माण कार्य किए थे. प्रशासन ने उन्हें ध्वस्त कर दिया. करीब 5 से 7 करोड रुपए की जमीन जिला प्रशासन ने उस समय कंप्यूटर बाबा से मुक्त करवाई थी.
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धीरे-धीरे कंप्यूटर बाबा की लाइफस्टाइल भी चेंज होती गई. गोमटगिरी में उनका आश्रम फाइव स्टार होटल जैसा बन गया. बाबा के कमरे में एसी लगा हुआ था. बाब महंगी और लग्जरी गाड़ियों में घूमने लगे. महंगे से महंगे इलेक्ट्रॉनिक आइटम उनके पास आ गए. राजनीतिक मसलों में उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई. राजनीति का चस्का उनके लिए घातक साबित हुआ. राजनीतिक द्वेष के चलते उनका पूरा साम्राज्य चौपट हो गया. आज कंप्यूटर बाबा इंदौर से पलायन कर गए हैं . कंप्यूटर बाबा कभी चित्रकूट में कुछ दिन बिताते नजर आते हैं तो कुछ दिन वाराणसी या प्रयागराज में नजर आते हैं.