भोपाल। मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर होने वाला उपचुनाव बेहद खास माना जा रहा है, क्योंकि ये उपचुनाव आने वाले सरकार के साथ ही कई बड़े नेताओं का भविष्य भी तय करेगा. यही वजह है कि उपचुनाव जीतने के लिए राजनीति पार्टियां ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं, लेकिन किसी भी चुनाव में प्रत्याशियों के हार जीत का फैसला मतदाताओं के हाथ में ही होता है, खासकर युवा मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है. क्योंकि इस बार करीब 40 लाख युवा मतदाता वोट करने वाले हैं. इसमें एक लाख 51 हजार से अधिक नए मतदाता शामिल हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक मध्यप्रदेश में 2020 में 18 से 19 आयु वर्ग के एक लाख 51 हजार से अधिक नए मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में जोड़े गए हैं, जो पहली बार अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे.
ऐसे में कहा जा सकता है कि, मध्यप्रदेश के उपचुनाव में युवा मतदाता भाग्य विधाता की भूमिका निभा सकता है. यही वजह है कि, युवा मतदाताओं की उपचुनाव में अहम भूमिका को देखते हुए उन्हें लुभाने के लिए पार्टियां जुटी हुई हैं.
शिवराज का भांजे-भांजियों पर दांव
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को प्रदेश के बच्चों का मामा कहलाना पसंद करते हैं. इसे वो हर मंच से बड़े जोर शोर से कहते भी हैं. उन्होंने चुनाव के ठीक पहले एक बड़ी सियासी चाल चली. शिवराज सरकार ने एमपी की सरकारी नौकरियां राज्य के बच्चों को ही देने का एलान किया. जरुरी कानूनी प्रावधान करने की भी बात कही. जवाब में कांग्रेस कमलनाथ ने युवा संवाद किया और राज्य में बढ़ती बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरा. राज्य की छवि देश में बिकाऊ होने की बात कही.
कांग्रेस का युवा प्लान
कांग्रेस ने युवा संवाद में 15 महीने के कार्यकाल की बात की और अपने फैसलों के जरिए कैसे वो युवाओं के लिए काम कर रहे थे, वो प्लान बताया. निवेश से राज्य के युवा फायदे में रहेंगे. उद्योगों के नियम सरल करने और 70 प्रतिशत स्थानीय रोजगार देने का प्रावधान बताया. एमपी को हार्टिकल्चर, कैपिटल और फूड प्रोसेसिंग हब बनाने का दावा किया.
मतादाता, जो करेंगे नाथ और महा'राज' के भाग्य का फैसला
मध्य प्रदेश में कुल 5 करोड़ 9 लाख मतदाता हैं. इनमें से 12.60 प्रतिशत मतदाता इस चुनाव में वोट डालेंगे. यानि करीब 64 लाख मतदाता अपना प्रतिनिधि चुनने वाले हैं. वैसे 12 फीसदी संख्या कम हैं, लेकिन ये देश के दस राज्यों में मतदाताओं की संख्या से कहीं ज्यादा है. ऐसे 10 राज्य हैं, जहां के कुल वोटर से भी ज्यादा मतदाता, मध्यप्रदेश उपचुनाव में वोट करेंगे. इनमें से अधिकांश पूर्वोत्तर भारत के हैं.
एमपी में युवा मतदाता बनाएगा और बिगाड़ेगा खेल
- मध्य प्रदेश में नए और युवा मतदाता जिनकी उम्र 21 से 29 साल है, वे निर्णायक होंगे.
- ऐसे मतदाता 27.38 प्रतिशत हैं, जबकी 30 से 39 की उम्र के 25.58 प्रतिशत वोटर हैं.
- एमपी में कुल 5.34 करोड़ वोटर हैं, जिनमें से 2.75 करोड़ से ज्यादा वोटर युवा हैं.
विधानसभा चुनाव के आधार पर एक नजर वोटर्स पर
18 से 19 वर्ष | 15,78,167 मतदाता |
20 से 29 वर्ष | 1,37,83,383 मतदाता |
30 से 39 वर्ष | 1,28,74,974 मतदाता |
40 से 49 वर्ष | 99,30,546 मतदाता |
50 से 59 वर्ष | 63,58,853 मतदाता |
60 से 69 वर्ष | 35,45,733 मतदाता |
70 से 79 वर्ष | 16,85,339 मतदाता |
80 से अधिक | 5,77,265 मतदाता |
40 वर्ष से कम उम्र के वोटर की संख्या | 56 फीसदी |
राज्य में शतक लगा चुके बुजुर्ग करेंगे मतदान
बुजुर्ग मतदाताओं के लिए इस बार पोस्टल बैलेट का इंतजाम किया गया है. साथ ही 100 की उम्र पार कर चुके बुजुर्ग भी उपचुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे.
जानिए किस सीटों पर कितने मतदाता होंगे 100 की उम्र पार.
- मेहगांव - 20 मतदाता
- गोहद - 15 मतदाता
- मेहगांव में 80-89 उम्र के 3,139 मतदाता, 90-99 उम्र के 350 मतदाता
- गोहद में 80-89 उम्र के 2,563 मतदाता, 90-99 उम्र के 355 मतदाता
इन विधानसभा सीटों पर युवा होंगे भाग्य विधाता
विधानसभा सीट | युवा मतदाता |
डबरा | 54 प्रतिशत |
भांडेर | 50 प्रतिशत |
जौरा | 61 प्रतिशत |
सुमावली | 61 प्रतिशत |
मुरैना | 56 प्रतिशत |
दिमनी | 60 प्रतिशत |
अम्बाह | 60 प्रतिशत |
ग्वालियर | 53 प्रतिशत |
ग्वालियर पूर्व | 50 प्रतिशत |
गोहद | 54 प्रतिशत |
मेहगांव | 50 प्रतिशत |
बहुमत का समीकरण
राहुल लोधी के इस्तीफे के बाद कुल 230 सीटों में काग्रेस के 87 विधायक रह गए हैं, तो वहीं बीजेपी के कुल 107 विधायक हैं. 4 निर्दलीय, 2 बसपा और 1 सपा का विधायक है. बाकी की 29 सीटें फिलहाल खाली हैं, जिनमें से 28 पर उपचुनाव हो रहे हैं. जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, उसमें से कुल 25 सीटें कांग्रेस विधायकों के इस्तीफा की वजह से खाली हुई हैं, जो पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं, तो वहीं दो सीटें कांग्रेस विधायकों और एक सीट बीजेपी विधायक के निधन से रिक्त हुई है. बीजेपी को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए मात्र नौ सीट जीतने की जरूरत है, जबकि कांग्रेस को 28 सीटों की जरूरत पड़ेगी.