भोपाल। अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ ने जब विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) की शुरुआत की थी, तब समिति के हर सदस्य ने यही सोचा था कि बाल श्रम पर लगाम लगेगी, लेकिन हर वर्ष बाल श्रम के आंकड़ों में बढ़ोत्तरी हो रही है. 12 जून काे मनाए जाने वाले बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) की शुरुआत साल 2002 में हुई थी. इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम न कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए जागरूक करना है. विश्व भर में आज लगभग 16 करोड़ बाल मजदूर हैं, जो मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश में 10 लाख बाल मजदूर
बाल श्रम भारत के लिए कोई नया नहीं है. साल 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक 5 से 14 साल की उम्र के 1.1 करोड़ बाल श्रम भारत में मजदूरी कर रहे हैं. सबसे ज्यादा बाल मजदूर उत्तर प्रदेश में हैं. अकेले उत्तर प्रदेश में ही लगभग 19 लाख बाल मजदूर(Child labour) हैं. वहीं मध्य प्रदेश में लगभग 10 लाख बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. यही हाल प्रदेश से सटे अन्य राज्यों बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र का है.
बच्चों से कराया जा रहा गैरकानूनी काम
देश ही नहीं प्रदेश में छोटे-छोटे बच्चों को बाल मजदूरी में धकेल दिया जाता है और उनसे कमाई करायी जाती है. इस कारण कई बार बच्चे जरायम की दुनिया का रास्ता भी अपना लेते हैं. बच्चों को जबरन श्रम में धकेल कर बच्चों से, मादक पदार्थों की तस्करी और वेश्यावृत्ति जैसी अवैध गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है. इसी वजह से लोगों को बाल श्रम की समस्या के बारे में जागरूक करने और उनकी मदद करने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है.
यूनिसेफ ने जाहिर की चिंता
यूनिसेफ ने वर्ल्ड चाइल्ड लेबर-डे से पहले दस जून को एक आर्टिकल पब्लिश किया है. आर्टिकल के मुताबिक, कोरोना काल ने बाल श्रम को बढ़ावा दिया है. हाल ही में चार वर्षों में 84 लाख बाल मजदूर बढ़े हैं. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (International Labour Organization) ने यह आंकड़े जारी किये हैं. आईएलओ के मुताबिक साल 2000 से 2016 तक यह 9.40 करोड़ बाल मजदूर(Child labour) थे.
बाल श्रम के मुख्य कारण
- बढ़ती जनसंख्या
- गरीबी
- खाद्य असुरक्षा
- अशिक्षा
- बेरोजगारी
- अनाथ
- सस्ता श्रम
कोरोना काल में बढ़ा बाल श्रमिक
मध्य प्रदेश में लॉकडाउन के कारण जो आर्थिक मंदी आई, उससे बाल श्रम को बढ़ावा मिला है. अनलॉक में बाल श्रम (Child labour) की कई तस्वीरें सामने आई हैं. जिसमें साफ देखा जा सकता है कि खेलने-कूदने की उम्र में और पढ़ने-लिखने के समय में किस तरह से मासूम खेतो में काम कर रहे हैं, भट्टे पर ईंट बना रहे हैं, रेत ढो रहे हैं यही नहीं फुटपाथ पर जूते चप्पल भी बेच कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. कोरोना काल में कई परिवारों के बच्चों ने अपने माता-पिताओं को खोया है. ऐसे में उनका मजदूरी करना तय है, अगर संबंधी उनका साथ नहीं देते हैं.
आर्थिक तंगी के चलते बाल मजदूरी
बाल मजदूरी करने वाले मासूम बच्चों की मानें तो लॉकडाउन के कारण उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई. इसी के चलते वह अब अपने पिता के साथ में मजदूरी करके परिवार की आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए बाल मजदूरी करने को विवश है. पैसों की तंगी को दूर करने के लिए रेत ढोने का काम कर रहे हैं, जिससे उन्हें 200 से 250 रुपये ही मिलते हैं. वहीं कुछ बच्चे ऐसे भी है, जो लॉकडाउन के पहले तक स्कूल जाते थे, लेकिन अब परिवार के लिए कमाई करने लगे हैं.
बाल मजदूरी को ऐसे मिल रहा बढ़ावा
लॉकडाउन के बाद सीमित काम पर ज्यादा मजदूर हो गए हैं. इसी के चलते मजदूरी सस्ती हो गई है. सस्ती मजदूरी में भी बाल मजदूर और सस्ते में काम करते हैं. बाल मजदूरी को सस्ता मजदूर के रूप में देख कर उसे बढ़ावा मिल रहा है. अशिक्षा और परिवार कि आर्थिक तंगी भी बाल मजदूरी का कारण बनती है.
क्या कर रहा है प्रदेश का श्रम विभाग?
कहने को तो मध्य प्रदेश में श्रम विभाग अपना काम कर रहा है, लेकिन धरातल पर स्थिति काम वाली नजर नहीं आती है. फाइलों में ही बाल श्रम पर रोकने की बात होती है. आए दिन प्रदेश के हिस्सों से बाल श्रम की तस्वीरें आती रहती हैं. यह नहीं जिला बाल श्रम विभाग के अधिकारी भी सिर्फ हीलाहवाली ही करते हैं. प्रदेश के 52 जिलों में ईंट के भट्टे, होटलों, कंपनियों और अन्य संस्थानों में बच्चों से मजदूरी करायी जा रही है. यह मजदूरी अधिकारियों की नाक के नीचे हो रहा है. प्रदेश के रायसेन, धार, विदिशा, भोपाल, इंदौर, शहडोल, झाबुआ और भी अन्य जिलों में बच्चों से मजदूरी करायी जा रही है.
शिक्षा के मंदिर में भी मजदूरी कर रहे बच्चे
गजब बात तो यह है कि बच्चों को मजदूरी कराने से स्कूलों में भी नहीं रोका जा रहा है. प्राथिमिकी विद्यालयों में बच्चों से ही स्कूल का काम कराया जाता है. यह न्याय संगत नहीं है. जो बच्चे आगे चलकर देश का भविष्य लिखने वाले होते हैं, उनसे स्कूलों की रंगाई, सफाई, पुताई कराना किसी भी हद तक ठीक नहीं है. प्रदेश भर में कई ऐसे स्कूल हैं, जहां बच्चों से साफ-सफाई का काम कराया जाता है. आए दिन इस तरह की खबरे आती रहती हैं.
12 साल में 12 'मन' का बोझ
यही नहीं हद तो तब हो जाती है, जब बच्चों से ईंट भट्टों पर काम कराया जाता है. प्रदेश के कई जिलों में बच्चों से ईंट-भट्टों पर काम कराया जाता है. ऐसे में देश के नौनिहालों का बचपन झुलस रहा है. बच्चे फावड़े लिए नजर आते हैं. गरीब माता पिता की मजबूरी बच्चों के बचपन को मजदूरी की आग में झोंक रही है. इन बच्चों को घर पर पैसा लाकर देना है. 12 साल की उम्र में बच्चे 12 मन का बोझ लेकर चल रहे हैं.
ऐसे बना बाल श्रम को लेकर कानून
भारत में बाल श्रम को लेकर 1979 में सरकार ने बाल मजदूरी को खत्म करने के उपाय के रूप में गुरुपाद स्वामी समिति का गठन किया. इसके बाद बाल श्रम से जुड़ी सभी समस्याओं के अध्ययन के बाद गुरुपाद स्वामी समिति ने सिफारिश प्रस्तुत की. 1986 में समिति के सिफारिश के आधार पर बाल मजदूरी प्रतिबंध विनियमन अधिनियम अस्तित्व में आया. इसमें विशेष खतरनाक व्यवसाय व प्रक्रिया के बच्चों को रोजगार एवं अन्य वर्ग के लिए कार्य की शर्तों का निर्धारण किया गया.
बाल श्रम कराने पर यह मिलती है सजा
बालश्रम कानून का उल्लंघन करने पर दोषी को 20 हजार रुपये का जुर्माना या एक साल की सजा अथवा दोनों हो सकते हैं. अगर कोई यह अपराध बार-बार करता है तो उसे तीन साल की भी सजा हो सकती है.