भोपाल। जहांगीराबाद और 10 नबंर बस स्टॉप पर मजदूरों का ठीहा बना हुआ है. इन दोनों ठीहों पर मजदूर अब पहले की संख्या में बहुत कम आ रहे हैं. जो आ भी रहे हैं, उनमें से सभी को काम नहीं मिल पा रहा है. कंस्ट्रक्शन काम के साथ-साथ होटल, रेस्टारेंट के अलावा रोज के कामों में लगने वाले मजदूरों की संख्या में लगातार कमी आ रही है. मजदूरों का कहना है कि हमें कोई काम नहीं मिल पा रहा है. पानी की भी व्यवस्था नहीं है.
कम रेट में काम नहीं
कोरोना महामारी के चक्कर में काम की स्थिति गड़बड़ बनी हुई है. लोग कम रेट में काम करने के लिए कहते हैं, लेकिन हर चीज महंगी हो गई है, तो मजदूरी कम रेट पर कैसे काम कर सकते है. मजदूरों का कहना है कि 400 रुपए रोज की मजदूरी का रेट है, लेकिन इस रेट में लोग काम नहीं देते हैं. भूखों मरने की नौबत आ गई है.
मजदूरों को नहीं मिल रहा काम, घर लौटने को मजबूर - लॉकडाउन
पिछले साल की तरह कोरोना इस साल भी मजदूरों के हाल बेहाल करने पर आमादा है. राजधानी भोपाल में नाइट कर्फ्यू के बाद अब दो दिन के लॉकडाउन के एलान के बाद से मजदूरों में डर फैल गया है. घंटों इंतजार के बाद भी काम न मिलने से परेशान मजदूर घर लौटने को विवश हो रहे है.
भोपाल। जहांगीराबाद और 10 नबंर बस स्टॉप पर मजदूरों का ठीहा बना हुआ है. इन दोनों ठीहों पर मजदूर अब पहले की संख्या में बहुत कम आ रहे हैं. जो आ भी रहे हैं, उनमें से सभी को काम नहीं मिल पा रहा है. कंस्ट्रक्शन काम के साथ-साथ होटल, रेस्टारेंट के अलावा रोज के कामों में लगने वाले मजदूरों की संख्या में लगातार कमी आ रही है. मजदूरों का कहना है कि हमें कोई काम नहीं मिल पा रहा है. पानी की भी व्यवस्था नहीं है.
कम रेट में काम नहीं
कोरोना महामारी के चक्कर में काम की स्थिति गड़बड़ बनी हुई है. लोग कम रेट में काम करने के लिए कहते हैं, लेकिन हर चीज महंगी हो गई है, तो मजदूरी कम रेट पर कैसे काम कर सकते है. मजदूरों का कहना है कि 400 रुपए रोज की मजदूरी का रेट है, लेकिन इस रेट में लोग काम नहीं देते हैं. भूखों मरने की नौबत आ गई है.