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लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ने से कम होंगे बाल विवाह के मामले, स्वयंसेवी संगठनों ने पहल का किया स्वागत

केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की सही उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है. इसके लिए गठित की गई टास्क फोर्स के साथ एक बहस भी शुरू हो गई है. समाजसेवक इसे जहां एक सकारात्मक कदम बता रहे हैं, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इसकी कोई खास आवश्यकता नहीं है.

Opinion of voluntary organizations on the government's idea of ​​increasing the age of marriage of girls
लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के सरकार के विचार पर स्वयंसेवी संगठनों की राय
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Published : Sep 10, 2020, 12:19 AM IST

भोपाल। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लड़कियों के लिए शादी की उम्र को बढ़ाकर 21 साल किए जाने को लेकर गठित की गई टास्क फोर्स के साथ एक बहस भी शुरू हो गई है. लड़कियों के लिए विवाह की उम्र बढ़ाए जाने को लेकर महिलाओं के लिए काम कर रही स्वयंसेवी संगठनों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. वैसे लैंगिक समानता के लिए सरकार का महत्वपूर्ण कदम मान रही है. स्वयंसेवी संगठनों के मुताबिक लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाए जाने से मध्यप्रदेश में बाल विवाह के मामलों में कमी आएगी.

स्वयंसेवी संगठनों ने पहल का किया स्वागत

मध्य प्रदेश में महिलाओं के हक के लिए काम करने वाली समाज सेविका आशा पाठक कहती हैं कि यदि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाई जाए तो इसका सबसे बड़ा फायदा प्रदेश में बाल विवाह रोकने में मिलेगा. देश में लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल है. प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों के अलावा बघेलखंडी इलाकों में बाल विवाह के कई मामले सामने आते हैं.

परिजन 17 साल पूरे होते ही लड़कियों का विवाह करा देते हैं और दस्तावेजों के अभाव में ऐसे लोगों पर कार्रवाई भी नहीं हो पाती. नेशनल हेल्थ लाइन सर्वे के आंकड़ों को देखें तो प्रदेश के 8 जिलों में सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले सामने आते हैं, इनमें आदिवासी जिला झाबुआ टॉप पर है.

समाज सेविका प्रार्थना मिश्रा के मुताबिक मातृ मृत्यु भी लड़कियों की कम उम्र में शादी होने की एक अहम वजह है. कम उम्र में शादी होने से लड़कियां अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक नहीं होती. यही वजह है कि मध्य प्रदेश अभी भी मातृ मृत्यु दर के मामले में बिहार और झारखंड जैसे राज्यों से पीछे हैं. हालांकि पिछले सालों में स्थिति में थोड़ा सुधार आया है.

केंद्र सरकार की पिछली सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे के मुताबिक प्रदेश में मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख पर 188 हो गई है. वे कहती हैं कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ने से जहां इस मामले में सुधार आएगा. वहीं घरेलू हिंसा के मामले भी कम होंगे.

कानून के जानकार लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाई जाने के पक्ष में नहीं हैं. राजधानी के वरिष्ठ वकील अजय गुप्ता के मुताबिक हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत लड़की की शादी के लिए न्यूनतम आयु 18 साल और लड़के के लिए 21 साल निर्धारित है. यह विवाह की न्यूनतम आयु होती है, जो बच्चे पढ़ते हैं, वह पढ़ाई के बाद ही विवाह करते हैं. इस उम्र में युवक-युवती इतने समझदार हो जाते हैं कि वह अपना अच्छा बुरा सोच सकते हैं.

बाल विवाह रोकने के लिए विवाह की आयु बढ़ाने से बेहतर होगा कि समाज में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं. वैसे भी जागरूकता बढ़ने से ग्रामीण इलाकों में भी अब बाल विवाह की घटनाएं कम हुई हैं. उनके मुताबिक लड़कियों की विवाह की उम्र बढ़ाई जाने से इससे फायदे के स्थान पर समाज में प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा जरूर होंगी.

1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम ने लड़कियों और लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 16 और 18 साल निर्धारित की थी. शारदा एक्ट के नाम से चर्चित इस कानून में साल 1978 में संशोधन कर लड़कियों और लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल कर दी गई थी.

भोपाल। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लड़कियों के लिए शादी की उम्र को बढ़ाकर 21 साल किए जाने को लेकर गठित की गई टास्क फोर्स के साथ एक बहस भी शुरू हो गई है. लड़कियों के लिए विवाह की उम्र बढ़ाए जाने को लेकर महिलाओं के लिए काम कर रही स्वयंसेवी संगठनों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. वैसे लैंगिक समानता के लिए सरकार का महत्वपूर्ण कदम मान रही है. स्वयंसेवी संगठनों के मुताबिक लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाए जाने से मध्यप्रदेश में बाल विवाह के मामलों में कमी आएगी.

स्वयंसेवी संगठनों ने पहल का किया स्वागत

मध्य प्रदेश में महिलाओं के हक के लिए काम करने वाली समाज सेविका आशा पाठक कहती हैं कि यदि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाई जाए तो इसका सबसे बड़ा फायदा प्रदेश में बाल विवाह रोकने में मिलेगा. देश में लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल है. प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों के अलावा बघेलखंडी इलाकों में बाल विवाह के कई मामले सामने आते हैं.

परिजन 17 साल पूरे होते ही लड़कियों का विवाह करा देते हैं और दस्तावेजों के अभाव में ऐसे लोगों पर कार्रवाई भी नहीं हो पाती. नेशनल हेल्थ लाइन सर्वे के आंकड़ों को देखें तो प्रदेश के 8 जिलों में सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले सामने आते हैं, इनमें आदिवासी जिला झाबुआ टॉप पर है.

समाज सेविका प्रार्थना मिश्रा के मुताबिक मातृ मृत्यु भी लड़कियों की कम उम्र में शादी होने की एक अहम वजह है. कम उम्र में शादी होने से लड़कियां अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक नहीं होती. यही वजह है कि मध्य प्रदेश अभी भी मातृ मृत्यु दर के मामले में बिहार और झारखंड जैसे राज्यों से पीछे हैं. हालांकि पिछले सालों में स्थिति में थोड़ा सुधार आया है.

केंद्र सरकार की पिछली सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे के मुताबिक प्रदेश में मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख पर 188 हो गई है. वे कहती हैं कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ने से जहां इस मामले में सुधार आएगा. वहीं घरेलू हिंसा के मामले भी कम होंगे.

कानून के जानकार लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाई जाने के पक्ष में नहीं हैं. राजधानी के वरिष्ठ वकील अजय गुप्ता के मुताबिक हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत लड़की की शादी के लिए न्यूनतम आयु 18 साल और लड़के के लिए 21 साल निर्धारित है. यह विवाह की न्यूनतम आयु होती है, जो बच्चे पढ़ते हैं, वह पढ़ाई के बाद ही विवाह करते हैं. इस उम्र में युवक-युवती इतने समझदार हो जाते हैं कि वह अपना अच्छा बुरा सोच सकते हैं.

बाल विवाह रोकने के लिए विवाह की आयु बढ़ाने से बेहतर होगा कि समाज में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं. वैसे भी जागरूकता बढ़ने से ग्रामीण इलाकों में भी अब बाल विवाह की घटनाएं कम हुई हैं. उनके मुताबिक लड़कियों की विवाह की उम्र बढ़ाई जाने से इससे फायदे के स्थान पर समाज में प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा जरूर होंगी.

1929 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम ने लड़कियों और लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 16 और 18 साल निर्धारित की थी. शारदा एक्ट के नाम से चर्चित इस कानून में साल 1978 में संशोधन कर लड़कियों और लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल कर दी गई थी.

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