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भोपाल के जंगलों में 10 वर्षों के बाद दो शावकों का हुआ जन्म

कलियासोत डैम के पास घने जंगलों में एक बार फिर से बाघों का कुनबा बढ़ने लगा है. बाघिन 123 ने दो शावकों को जन्म दिया है. यह शावक लगभग 2 महीने के होने जा रहे हैं, जिन दो शावकों का जन्म हुआ है, उनमें से एक बाघ और एक बाघिन है.

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Published : Jul 1, 2020, 6:46 AM IST

भोपाल। राजधानी के कलियासोत डैम के पास स्थित घने जंगलों में एक बार फिर से बाघों का कुनबा बढ़ने लगा है. वैसे तो कलियासोत और केरवा डैम से लगे घने जंगलों में बाघों का बसेरा वर्षों से बना हुआ है. ये बाघ कभी-कभी शहरी क्षेत्र के पास भी नजर आ जाते हैं, हालांकि इस समय बाघों का ज्यादातर समय जंगल के अंदर ही बीत रहा है, इन्हीं जंगल में बाघिन- 123 ने दो शावकों को जन्म दिया है. यह शावक लगभग 2 महीने के होने जा रहे हैं, जिन दो शावकों का जन्म हुआ है, उनमें से एक बाघ और एक बाघिन है. दोनों ही पूरी तरह से स्वस्थ हैं और जंगल में अपनी मां के साथ अठखेलियां कर रहे हैं

यह 10 वर्षों के बाद हुआ है, जब दो शावकों का जन्म राजधानी के जंगलों में हुआ है. इससे पहले वर्ष 2011 में केरवा के जंगलों में ही दो शावकों का जन्म हुआ था. वन विभाग के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि लंबे समय बाद एक बार फिर से बाघों का कुनबा बढ़ा है. बाघिन 123 अपने दोनों शावकों के साथ इस समय मैंडोरा के जंगलों में स्थित सॉसर में पानी पीते हुए वन विभाग के कैमरे में कैद हुई है. यहां पर वन्यजीवों की निगरानी के लिए कई जगह ट्रैक कैमरे लगाए गए हैं, इन्हीं ट्रैप कैमरों में यह कुनबा कैद हुआ है. यह तस्वीरें कैद होने के बाद ही दोनों शावकों के जन्म का वन विभाग को पता चला है.

अब वन विभाग की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गई है, यही वजह है कि, अब वन विभाग के अधिकारियों ने इस मामले का संज्ञान लेने के बाद बाघिन और उसके दोनों शावकों पर विशेष निगरानी रखने के लिए कहा है, ताकि इन शावकों को सुरक्षित रखा जा सके. इन घने जंगलों में कई बाघों का भी बसेरा बना हुआ है और वो कभी भी इन छोटे शावकों को पर हमला कर सकते हैं. इसलिए अब वन विभाग के द्वारा भी पूरी एहतियात बरती जा रही है, ताकि इस नए कुनबे को किसी भी प्रकार का नुकसान ना हो. हालांकि वन विभाग की ओर से इन दोनों शावकों का अभी तक नामकरण नहीं किया गया है, वन विभाग के द्वारा अब बाघिन की लोकेशन वाले क्षेत्र पर विशेष निगरानी शुरू कर दी गई है. भोपाल और उसके आसपास के जंगलों में 18 से ज्यादा बाघों का मूवमेंट रहता है, यह बाघ केरवा, मैंडोरा, कलियासोत, चंदनपुरा, कठोतिया के जंगलों में ज्यादातर रहते हैं. इन क्षेत्रों में घूमते हुए यह बाग बाघिन रातापानी सेंचुरी और अब्दुल्लागंज की तरफ भी चले जाते हैं.

भोपाल। राजधानी के कलियासोत डैम के पास स्थित घने जंगलों में एक बार फिर से बाघों का कुनबा बढ़ने लगा है. वैसे तो कलियासोत और केरवा डैम से लगे घने जंगलों में बाघों का बसेरा वर्षों से बना हुआ है. ये बाघ कभी-कभी शहरी क्षेत्र के पास भी नजर आ जाते हैं, हालांकि इस समय बाघों का ज्यादातर समय जंगल के अंदर ही बीत रहा है, इन्हीं जंगल में बाघिन- 123 ने दो शावकों को जन्म दिया है. यह शावक लगभग 2 महीने के होने जा रहे हैं, जिन दो शावकों का जन्म हुआ है, उनमें से एक बाघ और एक बाघिन है. दोनों ही पूरी तरह से स्वस्थ हैं और जंगल में अपनी मां के साथ अठखेलियां कर रहे हैं

यह 10 वर्षों के बाद हुआ है, जब दो शावकों का जन्म राजधानी के जंगलों में हुआ है. इससे पहले वर्ष 2011 में केरवा के जंगलों में ही दो शावकों का जन्म हुआ था. वन विभाग के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि लंबे समय बाद एक बार फिर से बाघों का कुनबा बढ़ा है. बाघिन 123 अपने दोनों शावकों के साथ इस समय मैंडोरा के जंगलों में स्थित सॉसर में पानी पीते हुए वन विभाग के कैमरे में कैद हुई है. यहां पर वन्यजीवों की निगरानी के लिए कई जगह ट्रैक कैमरे लगाए गए हैं, इन्हीं ट्रैप कैमरों में यह कुनबा कैद हुआ है. यह तस्वीरें कैद होने के बाद ही दोनों शावकों के जन्म का वन विभाग को पता चला है.

अब वन विभाग की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गई है, यही वजह है कि, अब वन विभाग के अधिकारियों ने इस मामले का संज्ञान लेने के बाद बाघिन और उसके दोनों शावकों पर विशेष निगरानी रखने के लिए कहा है, ताकि इन शावकों को सुरक्षित रखा जा सके. इन घने जंगलों में कई बाघों का भी बसेरा बना हुआ है और वो कभी भी इन छोटे शावकों को पर हमला कर सकते हैं. इसलिए अब वन विभाग के द्वारा भी पूरी एहतियात बरती जा रही है, ताकि इस नए कुनबे को किसी भी प्रकार का नुकसान ना हो. हालांकि वन विभाग की ओर से इन दोनों शावकों का अभी तक नामकरण नहीं किया गया है, वन विभाग के द्वारा अब बाघिन की लोकेशन वाले क्षेत्र पर विशेष निगरानी शुरू कर दी गई है. भोपाल और उसके आसपास के जंगलों में 18 से ज्यादा बाघों का मूवमेंट रहता है, यह बाघ केरवा, मैंडोरा, कलियासोत, चंदनपुरा, कठोतिया के जंगलों में ज्यादातर रहते हैं. इन क्षेत्रों में घूमते हुए यह बाग बाघिन रातापानी सेंचुरी और अब्दुल्लागंज की तरफ भी चले जाते हैं.

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