भोपाल/हरदा। रक्षा का बंधन इनका भी है. हरदा जिले की ये चार बेटियां भी बहनें हैं किसी की. बहनें, जो रक्षा का वचन देती आए हैं अपने परिवार को, समाज को. मौका पड़े तो देश की रक्षा के लिए भी ये तैयार हैं . परिवार में मिली दुत्कार समाज में हुई बदसलूकी, बंदिशें, लाचारी क्या नहीं आया इनके हिस्से. लेकिन हर बंधन को पार कर गईं. कराटे के साथ आत्मरक्षा के गुर सीख चुकी ये लड़कियां अब रात से नहीं घबराती. भीड़ में बेखौफ जाती हैं. बहादुर बहनें छोटे भाइयों के साथ परिवार को जिन्होने दिया है रक्षा का वचन. (MP Ki Bahadur Betiyan) (harda sisters security gang) (bhopal sisters rakhi resolution)
![mp girls giving boys protection](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/sisterprotectionbravegirls_05082022173026_0508f_1659700826_160.jpeg)
ऐसी बहन जिसने भाई को दिया रक्षा का वचन : मेरा नाम खुशी राजपूत है. मां ने इस उम्मीद से रखा था ये नाम कि मेरी जिंदगी खुशहाल रहेगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 2010 में हुए एक हादसे में पहले मां की मौत हुई. फिर 2012 में पिता को लकवा लगा और वे भी चले गए. मैं अपने भाई को लेकर अपनी मौसी के पास आ गई. लेकिन मां जैसी नहीं थी मौसी. घर पर हम भाई -बहनों से नौकरों जैसा बर्ताव होता था. मैंने पढ़ाई नहीं छोड़ी. पढ़ाई के साथ स्पोर्ट्स में भी भाग लेना शुरू कर दिया. मौसी खेलों में भाग लेने से रोकती थी. मैंने उनको बताए बगैर प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू कर दिया. कम उम्र में जीवन में हुए हादसों ने मानसिक तौर पर इतना कमज़ोर कर दिया था कि लगता कि मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. फिर मैंने मार्शल आर्ट ज्वाइन किया ताकि मैं अपनी और अपने भाई की हिफाज़त कर सकूं. सेल्फ डिफेंस के इस खेल में मैंने कई मेडल जीते. बारहवीं पास करने के बाद मैंने घर के पास ही एक स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर की नौकरी ज्वाइन कर ली. मौसी के विरोध के बावजूद कॉलेज में भी दाखिला ले लिया. मौसी का मेरी मां की एफडी के पैसे को लेकर कई दिनों से दबाव था. गुस्सा बढ़ा तो उसने हमारे साथ मारपीट शुरू कर दी. मैंने तय कर लिया कि अब इस घर में नहीं रहूंगी. आसान तो नहीं थी जिंदगी. लेकिन मैंने अब खुद कराटे का प्रशिक्षण देना शुरू किया है. खिलाड़ियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाए और अपने भाई को दिया उसकी रक्षा का वचन. (MP Ki Bahadur Betiyan) (harda sisters security gang)
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मैं मनहूस नहीं, ताकत हूं परिवार की : जिज्ञासा ओनकर नाम है मेरा. बच्चों के दांत आने पर खुशी मनाई जाती है ना. लेकिन मेरे जन्म के साथ आया एक दांत मेरे लिए दुत्कार की वजह बन गया. एक दांत के साथ पैदा हुआ बच्चा अशुभ होता है. माता- पिता पर भारी होता है. इस डर में उस छोटी उम्र में माता- पिता ने मुझे खुद से दूर रखा. जिसे बुरे सपने से घबराकर पिता का स्नेह ना मिल पाया हो, उस लड़की के लिए सबसे जरूरी था हर उस डर से दो- दो हाथ करना जो लड़कियों की जिंदगी में हर दूसरे कदम पर हैं. खुद को बचाऊंगी कैसे ये सवाल कौंधता रहा और जवाब ढूंढते मैं खुद को कराटे क्लास में खड़ी मिली. एक दांत लेकर पैदा हुई कोई और जिज्ञासा लड़की मनहूस ना कहलाए. डर से हार ना जाए, इसलिए अपने गांव के नजदीक बुंदड़ा गांव में अब कई सारी लड़कियों को कराटे की ट्रेनिंग देती हूं. जब साइकिल से फर्राटा भरती गांव जाती हूं तो धूल के साथ अब डर भी उड़ जाता है.
गंदे अंकल को जवाब देना था : मेरा नाम राधिका है. कुछ यादें होती हैं ना जो बुरे साये की तरह दिमाग पर चस्पा हो जाती हैं. वो घटना भी मुझे नहीं भूलती. मम्मी ने मुझे उन अंकल जी के यहां कुछ सामान लेने भेजा था. उन्होंने कपड़े लेने के बहाने मुझे बुलाया और बैडटच करने की कोशिश की. मैंने उन्हें धक्का दिया और भाग आई वहां से. लेकिन उस दिन हुई घटना का डर नहीं निकला. घर आकर मैंने ये बात सबको बताई लेकिन किसी ने मेरा विश्वास नहीं किया. मेरे दिमाग से वो बात कभी नहीं निकली. मैंने पढ़ाई पर ध्यान देना शुरू कर दिया. उसी दौरान स्कूल में कराटे टीचर आए. मुझे एक ही बात दिमाग में आई कराटे सीख लिया होता तो उस दिन उन अंकलजी को सही हिसाब करती. मैंने कराटे सीखा और अपनी उम्र की बाकी लड़कियों को कराटे सिखाती हूं कि वो ऐसे गंदे अंकल को जवाब दे पाएं. (bhopal sisters rakhi resolution) (MP Ki Bahadur Betiyan) (harda sisters security gang)
![Harda special girls raksha bandhan](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/sisterprotectionbravegirls_05082022173026_0508f_1659700826_16.jpeg)
पिता के संघर्ष से तपकर 'कुंदन' बनी बेटियां, मध्यप्रदेश खेल अकादमी में मिला प्रवेश
अब मैं देती हूं रक्षा कवच : नंदिनी हूं मैं. नंदिनी चौहान पूरा नाम. 2018 का साल था वो. नौ दस बरस की उम्र रही होगी. दिवाली की छुट्टियों के बाद मैं स्कूल के लिए तैयार हुई. उस दौरान एक ऐसी घटना मेरे साथ हुई, जिसने मेरी पूरी जिंदगी को हिलाकर रख दिया. मेरे देहरी के बाहर पैर रखने पर भी पाबंदी थी. उस घटना के बाद इतनी बातें हुईं कि मेरा घर से निकलना बंद हो गया. मेरा और मेरी बहन का स्कूल जाना भी बंद. हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए. हर जगह किसी का साथ जरूरी. इतना डर बैठ गया था. मेरे भीतर एक ही सवाल बना रहता, क्या मैं बोझ बन गई हूं सब पर. 2019 में मेरी बड़ी बहन ने कराटे सीखना शुरू किया. और गोल्ड मेडल भी जीता. मेरे लिए ये केवल खेल नहीं था. मेरे लिए कराटे वो राह थी कि जिससे मैं आत्मनिर्भर बन सकूं. किसी को साथ लिए बगैर बेखौफ घर से निकल सकूं. कराटे क्लास में मैंने पहला कदम इसी उम्मीद में रखा था. गांव में सबसे बड़ा हौसला क्या है. यही कि कोई बिटिया शाम ढलने के बाद भी घर से बेखौफ निकल सके. मैं निकल सकती हूं. और कई लड़कियों को देती हूं कराटे का रक्षा कवच. (MP Ki Bahadur Betiyan) (Harda special girls raksha bandhan) (harda sisters security gang) (mp girls giving boys protection) (bhopal sisters rakhi resolution)