भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एकबार फिर केदारनाथ धाम पहुंचे, जहां उन्होंने बाबा केदार का रुदाभिषेक किया. इसके साथ ही श्री आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण भी किया. ये मूर्ति 13 फीट लंबी है और इसका वजन 35 टन है. उल्लेखनीय है कि चार मठों की स्थापना करने के लिए आदि शंकराचार्य को जाना जाता है. उन्होंने ही केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था.
कौन थे आदि शंकराचार्य
शंकर आचार्य का जन्म 507-50 ई. पूर्व में केरल में कालपी 'काषल' नामक गांव में हुआ था. इनके पिता शिवगुरु भट्ट और माता सुभद्रा थी. बहुत दिन तक सपत्नीक शिव की आराधना करने के अनंतर शिवगुरु ने पुत्र-रत्न पाया था, अत: उसका नाम शंकर रखा. केरल में जन्मे आदि शंकराचार्य ईसा पूर्व 8वीं शताब्दी के भारतीय आध्यात्मिक धर्म गुरू थे. जब ये 3 ही साल के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया. 6 साल की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ साल की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था. 8वीं शताब्दी के दौरान उन्होंने भिन्न-भिन्न मतों में बंटे हिंदू धर्मों को जोड़ने का काम किया. धर्मगुरू श्री आदि शंकरचार्य ने भारतवर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी, जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं.
सात साल की उम्र में बने संन्यासी
आदि शंकराचार्य महज 7 साल की उम्र में ही घर से निकल संन्यास का कठिन रास्ता चुन लिया. जब वो 2 वर्ष के था तभी सारे वेदों, उपनिषद, रामायण, महाभारत उन्हे कंठस्थ थे. एक ऐसा संन्यासी जिसने गृहस्थ जीवन त्यागने के बावजूद अपनी मां का अंतिम संस्कार किया. आदि शंकराचार्य का जन्म सन 788 में दक्षिण भारत के राज्य केरल में हुआ. यहां के कालड़ी ग्राम में वो पैदा हुए. गुरू से शास्त्रों का ज्ञान लिया, ब्रह्मत्व का भी अनुभव किया. काशी जो अब वाराणसी है में रहकर आध्यात्मिक पक्ष और उसकी सत्यता का पहचाना.
महाज्ञानी ने की 100 से ज्यादा ग्रंथों की रचना
महज 16 साल की उम्र में उन्होने 100 से ज्यादा ग्रंथों की रचना की. अपनी मां से अनुमति लेकर वैराग्य को चुना. 32 साल की उम्र में केदारनाथ में उनकी मृत्यु हुई. शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए उस समय के भारतवर्ष के चारों तरफ 4 मठों की स्थापना की थी. यही मठ आज शंकराचार्य पीठ हैं और जिससे हिन्दू धर्म को नया रास्ता मिला.
हिन्दु धर्म में नए संप्रदाय को जन्म दिया
आदि शंकराचार्य ने 9वीं शताब्दी में अद्वैत वेदांत संप्रदाय की स्थापना की थी. शंकराचार्य ने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धान्तों को पुनर्जीवित किया. वो कहते थे कि जो लोग मायावी संसार को हकिकत समझते हैं और ईश्वर को नहीं मानते वो पूरी तरह अज्ञानी हैं. उन्होने संन्यासी समुदाय में सुधार लाया. भारत में चार मठ गोवर्धन पीठ: ऋग्वेद, शारदा पीठ: यजुर्वेद, द्वारका पीठ: साम वेद और ज्योतिर्मठ: अथर्ववेद की स्थापना की.
- ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम
- श्रृंगेरी पीठ
- द्वारिका शारदा पीठ
- और पुरी गोवर्धन पीठ
भारत को एक धागे में पिरोने की कोशिश
गौरतलब है कि ये चारों मठ भारत देश की चार दिशाओं में स्थित है. माना जाता है कि इन मठों की स्थापना करने के पीछे आदि शंकराचार्य का मकसद समस्त भारत के एक धागे में पिरोना था. उन्हें भगवान शंकर का अवतार भी माना जाता है. श्री आदि शंकरचार्य ने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है. आदि शंकरचार्य ने सनातन धर्म के वैभव को बचाने के लिए और सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.