19वीं सदी के मध्य में जब ट्रेन की शुरुआत भारत में हुई, तब ट्रेन में बैठना तो दूर उसे देखना भी लोगों का सपना हुआ करता था, तब आवागमन का सबसे सुपर क्लास (Super Class) साधन ट्रेन ही था, पर इसकी एक परेशानी ये थी कि इसे अपनी मर्जी से कोई कहीं ले नहीं जा सकता था, जैसा कि बाकी साधनों के साथ था. ट्रेन को कहीं तक ले जाने के लिए बड़ी रकम खर्च करने के साथ-साथ तमाम कानूनी प्रक्रिया को भी पूरा करना होता था, यही वजह है कि उस वक्त ट्रेन को यात्री (Train Passenger) से ज्यादा बतौर मालवाहक उपयोग किया जाता था.
19वीं सदी का रेलवे 21वीं सदी में पूरी तरह बदल चुका है, कोने-कोने तक रेल नेटवर्क पहुंच गया है. भारतीय रेल (Indian Railway) इस वक्त 108,706 किमी लंबे ट्रैक पर रोजाना दौड़ती है, जिसमें नैरोगेज ट्रैक 86526 किमी लंबा है, शुरूआत में यही ट्रैक हुआ करता था, जिसे अब खिलौने के तौर पर सहेजा जा रहा है. उसके बाद मीटर गेज ट्रैक के साथ रेलवे को अपडेट किया गया, इस वक्त 18529 किमी लंबे मीटर गेज ट्रैक पर ट्रेनें दौड़ रही हैं, इन दोनों ट्रैक को लगातार ब्रॉड गेज (Broad Gauge) में कनवर्ट किया जा रहा है.
रेलवे ट्रैक का कन्वर्जन वक्त की मांग है, आजकल ट्रेनों में आधुनिक सुविधाओं के साथ ही वक्त बचाने पर जोर है, जिसके लिए ट्रेनों की स्पीड बढ़ाना जरूरी है और हाई स्पीड झेल पाना मीटर और नैरो गेज (Narrow Gauge) के बस की बात नहीं है. साथ ही डीजल की खपत कम करना और प्रदूषण के बढ़ते दबाव से निपटने के लिए डीजल इंजन की जगह इलेक्ट्रिक और सोलर इंजन पर जोर दिया जा रहा है. अभी तक 16001 किमी लंबे रूट का विद्युतीकरण किया जा चुका है, जबकि 63028 किमी रूट पर आज भी धुआं देते डीजल इंजन (journey of Indian Railways) यात्रियों का बोझ खींच रहे हैं.
भारतीय रेल (Indian Railway) अमेरिका, चीन, रूस के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा (Largest Rail Network) रेल नेटवर्क है, यहां रोजाना 7000 यात्री ट्रेनें करीब 2.5 करोड़ यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती हैं, जबकि 4000 ट्रेनें रोजाना माल ढुलाई करती हैं. यानि कुल मिलाकर रोजाना 11000 ट्रेनें ट्रैक पर यात्रियों और माल का बोझ लेकर गुजरती हैं, जिन्हें खींचने के लिए 7566 डीजल इंजन हैं, बाकी इलेक्ट्रिक इंजन हैं. इन ट्रेनों के संचालन के लिए 6853 स्टेशन बनाए गए हैं, जहां से इन्हें नियंत्रित किया जाता है, जबकि 7000 यात्री ट्रेनों के लिए 37840 कोच हैं, जिन्हे वक्त और जरूरत के हिसाब से ट्रेनों के साथ जोड़ा जाता है. वहीं मालवाहक कोचों की संख्या 222,147 है, ट्रेनों की पार्किंग के लिए 300 रेलवे यार्ड बनाए गए हैं, जबकि 700 वर्कशॉप के जरिए इन ट्रेनों की मरम्मत की जाती है, वहीं रेलवे का खुद के 2300 गोदाम हैं.
भारत में ट्रेन की शुरूआत (History of Indian Railway) 16 अप्रैल 1853 को हुई, जब पहली बार मुंबई से थाणे के बीच 14 कोच वाली ट्रेन 400 यात्रियों को लेकर 21 मील की दूरी तय की थी, उसके बाद पूर्वी हिस्से में पहली ट्रेन 15 अगस्त 1854 को हावड़ा से हुगली के बीच चली और दक्षिण में एक जुलाई 1856 को व्यासरपंडी से आरकोट के बीच पहली ट्रेन चली थी, उत्तर में 3 मार्च 1859 को इलाहाबाद से कानपुर के बीच पहली ट्रेन दौड़ी थी, पर अब भारतीय रेल का नेटवर्क इतना फैल गया है कि इसके सटीक संचालन के लिए इसे 17 जोन में बांटना पड़ा है. वहीं यात्रियों और माल के साथ ही रेलवे की संपत्ति की सुरक्षा राजकीय रेलवे पुलिस और रेलवे सुरक्षा बल के द्वारा किया जाता है.
देश के पहले रेलवे स्टेशन से प्राइवेट स्टेशन तक, फर्श से 'फलक' पर भारतीय रेल
भारतीय रेलवे भर्ती (Railway Recruitment Board) बोर्ड अहमदाबाद, अजमेर, इलाहाबाद (प्रयागराज), बेंगलुरू, भोपाल, भुवनेश्वर, बिलासपुर, चंडीगढ़, चेन्नई, गोरखपुर, गुवाहटी, जम्मू, कोलकाता, मालदा, मुंबई, मुजफ्फरपुर, पटना, रांची, सिकंदराबाद, सिलीगुड़ी, त्रिवेंद्रम के जरिए अधिकारियों कर्मचारियों की नियुक्ति करता है क्योंकि 16 लाख कर्मचारियों के साथ ही रोजगार देने वाला सबसे बड़ा संस्थान है. वहीं (Railway Zone) मध्य रेलवे, पूर्व मध्य रेलवे, पूर्व कोस्ट रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे, उत्तर रेलवे, उत्तर पूर्व रेलवे, उत्तर पश्चिम रेलवे, मेट्रो रेलवे कोलकाता, पश्चिम रेलवे, पश्चिम मध्य रेलवे, दक्षिण रेलवे, दक्षिण पश्चिम रेलवे, पूर्वोत्तर फ्रंटियर रेलवे, उत्तर रेलवे, दक्षिण मध्य रेलवे, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे, दक्षिण पूर्वोत्तर रेलवे जैसे 17 जोन में बांटकर इसका रखरखाव करता है.