भोपाल। ब्लैक फंगस के इलाज में फैल रही अव्यवस्थाएं पर सरकार की मुसीबतें ही बढ़ती जा रही हैं. बीमारी के इलाज के लिए शासन के दावे विफल नजर आ रहे हैं. जरूरत के हिसाब से मरीजों तक एंफोटरइसिन-बी इंजेक्शन नहीं पहुंच पा रहे हैं. इसके चलते अधिकारियों ने भी अब मरीज के परिजनों को साफ-साफ मना करना शुरू कर दिया है. एंफोटरइसिन-बी इंजेक्शन की मारामारी के बीच हालात ऐसे बनते जा रहे हैं. कि हमीदिया अस्पताल में हर दिन इसके लिए हंगामा होने लगा है.
डीन का घेराव
गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन ऑफिस के सामने एंफोटरइसिन-बी इंजेक्शन के लिए दिन भर मरीजों के परिजन परेशान होते रहे. दोपहर के बाद उनका सब्र जवाब दे गया, जैसे ही गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. जितेन शुक्ला ऑफिस से बाहर आए, पहले से जमा भीड़ ने उन्हें घेर लिया. डीन ऑफिस के गेट पर ही भीड़ उनसे सवाल करने लगी. इंजेक्शन की मारामारी को लेकर पब्लिक आक्रोशित थी. मामला गरमा देख मौके पर मौजूद पुलिस बल ने भीड़ को नियंत्रित किया लेकिन लोगों के सवाल जारी रहे. इस बीच डीन ने उनके सवालों का दो टूक जवाब देते हुए कहा कि हमारे पास इंजेक्शन नहीं है. इसलिए इंजेक्शन मिलना मुश्किल है जब हमारे पास उपलब्धता होगी तभी इंजेक्शन बांटे जाएंगे. यह सुनकर परिजनों में निराशा और बढ़ गई. देर रात तक लोग इंजेक्शन मिलने का इंतजार करते रहे.
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पुराने मरीजों को दे रहे इंजेक्शन
डीन ऑफिस के सामने जमा भीड़ ने बताया कि हमसे कहा जा रहा है कि इंजेक्शन नहीं है, जो स्टॉक मौजूद है उसे पहले से रजिस्टर्ड मरीजों को दिया जा रहा है. नए मरीजों को अभी इंजेक्शन नहीं मिल पाएंगे. परिजनों ने बताया कि सुबह से ही रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद भी इंजेक्शन बांटना शुरू नहीं हुआ है. कुछ लोगों के तो पैसे भी जमा हो चुके हैं लेकिन उन्हें भी इंजेक्शन नहीं मिल पा रहे हैं.
सरकारी सिस्टम की नाकामी
एमपी में अब तक में ब्लैक फंगस के 585 केस सामने आ चुके हैं, राजधानी भोपाल की बात की जाए तो पिछले 27 दिनों में 239 मरीज ब्लैक फंगस की चपेट में आ चुके हैं. इनमें से 10 मरीजों की मौत हो चुकी है. ये बीमारी कोरोना संक्रमित और पोस्ट कोविड लोगों को अपना शिकार बना रही है. सरकारी आंकड़ों की बात की जाए तो भोपाल में अब तक 68 मरीज इस संक्रमण के चलते इलाज करवा रहे हैं. जबकि जानकारी के अनुसार भोपाल के अलग-अलग अस्पतालों में यह आंकड़ा 580 से ऊपर निकल चुका है. हमीदिया की बात की जाए तो यहां अभी तक 70 से अधिक मरीज ब्लैक फंगस का इलाज करा रहे हैं. इनमें से दो लोगों की मौत भी हो चुकी है. भर्ती मरीजों मैं से कुछ अपनी आंखों की रोशनी गवां चुके हैं और साथ ही सर्जरी के बाद जीवन भर के लिए उनका शरीर विकृत हो गया है.
सुबह से शाम तक इंतजार, फिर भी नहीं मिलता इंजेक्शन
भोपाल के सात मेडिकल कॉलेज और 40 निजी अस्पतालों में म्यूकर माय सोसिस यानी ब्लैक फंगस का इलाज करा रहे हैं. इनके इलाज के लिए सबसे जरूरी चीज तेजल एंडोस्कोपी सर्जरी है, जिससे प्राइमरी स्टेज पर ही इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है और सही दिशा में इलाज शुरू हो सकता है. इसके इलाज में कारगर एंटी फंगल इंजेक्शन, एंफोटरइसिन बी इंजेक्शन, की किल्लत सामने आ रही है. परिजन मरीज के इलाज के लिए इंजेक्शन लेने हमीदिया अस्पताल पहुंचते हैं. लेकिन इन्हें इंजेक्शन नहीं मिल रहा है. गांधी मेडिकल कॉलेज के परिसर में डीन ऑफिस के सामने दिन भर कतारें लगी रहती हैं. लोग इंजेक्शन के इंतजार में सुबह से शाम तक बैठे रहते हैं. लेकिन उन्हें इंजेक्शन मायूस होकर लौटना पड़ रहा है, यहां पर पिछले 5 दिन से यही हालात बने हुए हैं.
राज्य सरकार के दावे 'खोखले'
शुरुआत में प्रबंधन द्वारा 2 से 4 एंफोटरइसिन बी इंजेक्शन बांटे थे लेकिन अब यह भी उपलब्ध नहीं है. हर दिन यहां मरीज के परिजन निराश हो रहे हैं. विवाद की स्थिति बन रही है यहां तक की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस भी लगाई जा रही है. शासन के अधिकारी जवाब देने से बच रहे हैं. ऐसे में मरीज के परिजनों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इंजेक्शन मिलने का इंतजार कर रहे लोगों का कहना है कि तीन से चार दिन होने के बाद भी उन्हें एक भी इंजेक्शन नहीं मिल रहा है. अधिकारियों से बात करने पर निराशा होती है. उनका कहना है, जब हमारे पास इंजेक्शन उपलब्ध होंगे. तभी हम दे पाएंगे ऐसे में मरीजों के इलाज पर संकट आ गया है. परिजनों का कहना है कि अगर इंजेक्शन नहीं मिले तो उनके मरीज जान गंवा बैठेंगे.
प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने भी यह बात स्वीकार की है कि ब्लैक फंगस के इलाज को लेकर सरकार जो भी कमियां हैं. उन्हें दूर करने का प्रयास कर रही है. इंजेक्शन आपूर्ति के लिहाज से कम है, लेकिन कुछ दिन में हालात ठीक हो जाएंगे, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ब्लैक फंगस आम आदमी से लेकर सरकार की गले की फांस बनी हुई है. अब देखना यह होगा यह तस्वीर कब बदलती है जरूरतमंद मरीजों को इलाज के हिसाब से इंजेक्शन कब तक नसीब होते है.