भोपाल। जिस नीम के नीचे सुस्तातें होंगे... उस नीम के नीचे हाथों में डंडे और बंदूकें लहराते लोग... बच्चों के चीखने की आवाज़ें, मोड़ी मोड़ा अंदर हो जाओ, बंदूक से निकली गोली की आवाज और खून से लथपथ मिनिट भर में एक के बाद एक गिरती तीन लाशें...पान सिंह तोमर के गांव भिड़ोसा से लगा हुआ ये लेपा गांव का वीडियो इस बार फिल्म का हिस्सा नहीं है. लाइव शूट आउट है ये... आप जब रोमांच से भरे हुए इस वीडियो को देख रहे हैं तो आपके जहन में भी उठा होगा सवाल.. चंबल में बीहड़ भी वैसे ही हैं और बागी भी... दुनाली पर ही हो रहे हैं जमीन के निपटारे तो सवाल कानून कहां है... पुलिस है कानून से इंसाफ मिल रहा है तो बंदूक क्यों उठा रहे हैं लोग... चंबल में पान सिंह तोमर की कहानी क्यों अब भी खत्म नहीं हुई.
चंबल में बागी: सवाल सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के पटनायक का बताया जाता है. बरसों पहले उठा एक सवाल इस वीडियो में जिसका जवाब भी है. बताया जाता है कि जस्टिस एके पटनायक ने मुरैना जिला अभिभाषक संघ के कार्यक्रम में बरसों पहले एक साल पूछा था अगर पुलिस यहां सही काम कर रही है. कानून सही काम कर रहा है अदालतें सही काम कर रही हैं तो क्यों लेते हैं लोग यहां पर बदला. बताया जाता है कि जस्टिस पटनायक ने थ्योरी ऑफ रिवेंज पर रिसर्च की हुई थी. इस पर यही के एक सीनियर एडवोकेट का जवाब था कि पुलिस और कोर्ट ही चंबल में बागी पैदा करते आए हैं.
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चंबल में ना बीहड़ खत्म हुए ना बागी: वीडियो में पूरी दंबगई से बंदूक ताने खड़े उस शख्स को देखिए. लगेगा शोले फिल्म का कोई सीन है. कानून है क्या इसका दूर दूर तक कोई निशान नहीं दिखता. गोलियां चलती हैं और लाशें बिछती जाती हैं. चंबल में जमीन के लिए फिर खून बहता है. पान सिंह तोमर के गांव भिडोसा से सटे इस लेपा गांव में क्या बदल पाया. कागजों में खत्म हो गई बीहड़ बंदूक और बागी. जमीन पर तो खून भी है और गोलियां दागते बागी भी.
सेना का मशहूर एथलीट पान सिंह तोमर : मुरैना मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर भिडोसा गांव में 1 जनवरी 1932 को पान सिंह का जन्म हुआ था. सेना में जाने का समना लिए पान सिंह तोमर मेहनत के दम पर भर्ती भी हुए और वो अपनी लंबाई के कारण पूरे ग्रुप में काफी चर्चित थे. जल्द ही वे अच्छे सैनिक के साथ ही सेना के मशहूर एथलीट बन गए. 1950 और 1960 के दशक में सात बार राष्ट्रीय स्टीपलचेज के चैम्पियन बने. सेना से रिटायर होने के बाद पान सिंह सुकून की जिंदगी जीने के लिए फिर से अपने गांव भिडोसा आ गए.
ऐसे डाकू बना एक सैनिक पान सिंह: कुछ समय बाद जमीन के मामले में पान सिंह के साथ हुए अन्याय के बाद एक अनुशासित फौजी का कानून से भरोसा उठ गया. और यहीं से पैदा हुआ एक खतरनाक डकैत पान सिंह तोमर. 70 के दशक में चंबल के बीहड़ में डकैत पान सिंह तोमर का नाम गूंजता था. कई बार पुलिस की उससे मुठभेड़ हुई, लेकिन फौज की ट्रेनिंग ने उसे इतना शातिर बना दिया था, कि वो हर बार पुलिस पर भारी पड़ता. 1 अक्टूबर 1981 को इंस्पेक्टर एमपी सिंह और 500 से ज्यादा सुरक्षाबलों ने डकैत पान सिंह तोमर को चंबल में घेर लिया. दोनों तरफ से जोरदार गोलीबारी हुई. करीब 12 घंटे एनकाउंटर में पान सिंह तोमर और उसके कई साथी मारे गए.