भोपाल। पांच राज्यों में चुनाव से पहले सरकारों की फ्री बी याने मुफ्त रेवड़ी बांटने की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट सख्ती दिखाई है. जनहित याचिका को लेकर सुप्रीम ने केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश सरकार, राजस्थान सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है, जिसका जवाब 4 हफ्ते में मांगा गया है. आचार संहिता के पहले मौजूदा सरकारों की कोशिश है कि बड़ी घोषणाएं कर दी जाएं. खासतौर पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ऐसा तेजी से हो रहा है, लगभग हर रोज ही सरकारें बड़ी घोषणाएं कर रही हैं.
लालच देने वाली योजनाओं के खिलाफ याचिका दायर: जनहित याचिका में कहा गया है कि "इन लोकलुभावन योजनाओं के जरिए एक तरह से वोटर्स को लालच दिया जा रहा है, सरकारें 5 साल काम नहीं करती हैंं और आखिरी में इस तरह जनता के टैक्स का पैसा लुटाकर वोट बटोरने की कोशिश की जाती है." जनहित याचिका के तहत मांग की गई है कि "सियासी दलों के घोषणा-पत्रों पर नजर रखी जाना चाहिए और नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि घोषणा-पत्र में किए गए बड़े-बड़े दावों को कैसे पूरा किया जाएगा."
शिवराज सरकार ने की 1 महीने हजारों करोड़ की घोषणाएं: सरकार के आंकड़े के मुताबिक एक दिन में शिवराज सिंह ने एक दिन में 53 हजार करोड़ के 14 हजार से अधिक विकास कार्यों का लोकार्पण, शिलान्यास किया. वहीं 12 हजार से अधिक विकास कार्यों का लोकार्पण है और 2 हजार कार्यों का भूमिपूजन किया गया. वहीं एक दिन में 12 हजार से ज्यादा लोकार्पण और करीब 2600 भूमिपूजन किए जा रहे हैं.
सरकार का तर्क- विकास काम कर रहे: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का कहना है कि "जो वंचित वर्ग है और जिन्हें जरूरत है उनको मुफ्त की सुविधाएं मिलना चाहिए. जिनके पास पैसा है, उनसे सरकार टैक्स लेती है और गरीबों को उस पैसे से सुविधाएं देती है."(CM Shivraj on freebies)
एमपी में हो रहा विकास का महायज्ञ: सीएम का कहना है कि "भारत सरकार कुछ मापदंड तय करती है कि कोई राज्य इतना कर्जा ले सकता है, वह कुल सकल घरेलू उत्पादन के 3 या 3.5% के आसपास होता है. इसलिए हमने कर्ज ले लिया, जबकि उससे कई गुना ज्यादा दूसरे राज्यों ने लिया है, हमने विकास के कामों पर खर्च किया है. विकास का महायज्ञ मध्य प्रदेश में जारी रहेगा और जनता के कल्याण की योजनाएं भी लगातार चलती रहेंगी."
एमपी में कई लोकलुभावन योजनाएं लाई सरकार: शिवराज सरकार चुनाव से पहले महिलाओं को रिझाने के लिए उनके खाते में 1250 और 450 रुपए में सिलेंडर दे रही हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1 करोड़ 33 लाख महिलाओं को ये मुफ्त दिया जा रहा है. 18 साल के युवाओं को लुभाने के लिए लैपटॉप और कॉलेज जानी वाली छात्राओं को स्कूटी देने का एलान भी मुफ्त रेवड़ी की श्रेणी में आता है.
वरिष्ठ पत्रकार रामजी श्रीवास्तव का कहना है कि "18 साल के युवा, वोटर हो जाता है. उनको योजनाओं का मुफ्त लाभ देने की घोषणा भी फ्री बी कल्चर की श्रेणी में आती हैं. सुप्रीम कोर्ट
ने चुनावी राज्यों से जवाब मांगा हैं, लेकिन सरकारें जानती है कि फिलहाल इस तरह की नकेल कसने के लिए कोई कानून नहीं है. लिहाजा बिना किसी की परवाह किए बैगर सरकारें घोषणा करती हैं."
चुनाव आयोग के पास कार्यवाही के लिए नहीं है कोई कानून: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि "फ्री बीज़ पर पार्टियां क्या पॉलिसी अपनाती हैं, उसे रेगुलेट करना चुनाव आयोग के अधिकार में नहीं है. चुनावों से पहले मुफ्त रेवड़ी का वादा करना या चुनाव के बाद उसे देना राजनीतिक पार्टियों का नीतिगत फैसला होता है, इस बारे में नियम बनाए बिना कोई कार्रवाई करना चुनाव आयोग की शक्तियों का दुरुपयोग करना होगा. कोर्ट ही तय करें कि फ्री स्कीम्स क्या है और क्या नहीं."
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा: याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि "चुनाव से पहले सरकारें नकदी बांटती हैं, इससे ज्यादा खराब और कुछ नहीं हो सकता. चुनावों में पैसा बांटने का सबसे ज्यादा बोझ करदाताओं पर पड़ता है, चुनावों के ठीक 6 महीने पहले मुफ्त चीजें जैसे स्कूटी, कंप्यूटर और टैब जैसी कई चीजें बांटी जाती है और राज्य सरकारों की ओर से इसे जनहित का नाम दे दिया जाता है." न्यायालय ने भट्टूलाल जैन की जनहित याचिका पर सुनवाई की.