भोपाल। रविवार को होने जा रहे है मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों के बाद मंत्री पद के दावेदार सक्रिय हो गए हैं. भोपाल से दिल्ली तक जोर लगा रहे हैं. जानकारी के मुताबिक सिंधिया समर्थक विधायक तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत रविवार को मंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. इसके अलावा अन्य दावेदार भी इस दौरान भोपाल से लेकर दिल्ली तक अपने अपने राजनीतिक गुरु की शरण में हैं.
दावेदारों ने लगाया जोर,मंत्री बनने के लिए पुरजोर कोशिश
उपचुनाव के नतीजों के बाद से ही एक बार फिर बीजेपी नेताओं ने मंत्री बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था. इसको लेकर हर संभव प्रयास यह नेता कर रहे हैं. खासतौर से जिस तरीके से प्रदेश में केंद्रीय नेतृत्व का दखल बढ़ा है. जिसके बाद से लगातार यह नेता दिल्ली में बैठे वरिष्ठ नेताओं से लगातार संपर्क कर रहे हैं. सत्ता में अपनी भागीदारी को लेकर जोर आजमाइश कर रहे हैं.
इसके साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अपने खास लोगों को मंत्री बनाने के लिए हर संभव कोशिश में हैं. जिनमें खासतौर से रामपाल सिंह, संजय पाठक और हरिशंकर खटीक शामिल हैं. इसके अलावा विंध्य क्षेत्र से पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल, नागेंद्र सिंह, केदार शुक्ला, गिरीश गौतम ,अजय विश्नोई, चेतन कश्यप और कैलाश विजयवर्गीय के खास माने जाने वाले रमेश मेंदोला इस मंत्री मंडल में दावेदार के रूप में नजर आ रहे हैं.
यह कांग्रेस नहीं बीजेपी है
इस बारे में बीजेपी प्रवक्ता नेहा बग्गा ने कहा कि मंत्रिमंडल विस्तार मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है, अभी तक उनकी तरफ से कुछ भी सामने नहीं आया है. वहीं पार्टी में लॉबिंग को लेकर नेहा ने कहा कि यह कांग्रेस नहीं बल्कि बीजेपी है, जहां कार्यकर्ताओं को पता है कि सीएम और केंद्रीय नेतृत्व जरूरत पड़ने पर उनकी कार्यकुशलता को लेगा.
एक व्यक्ति की चल रही दवाब की राजनीति
वहीं मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर कांग्रेस विधायक कुणाल चौधरी ने कहा कि बीजेपी में दवाब की राजनीति सिर्फ एक ही व्यक्ति की चल रही है. बीजेपी को कार्यकर्ताओं को जवाब देना चाहिए जो इतने सालों से पार्टी में हैं, कई बार विधायक बने उन्हें छोड़कर कुछ चुनिंदा लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल करने का काम किया जा रहा है. बीजेपी उन लोगों को मंत्री बना रहे हैं, जो एक बार विधायक बने और उनकी विचारधारा को भी शुरू से नहीं मानते थे. कांग्रेस विधायक ने कहा कि दवाब बस सिंधिया और जनसंघ का चल रहा है.
अब देखना यही होगा कि इन दावेदारों की जोर आजमाइश कितनी कामयाब हो पाती है, क्या दिल्ली में बैठे इनके आका इनको सत्ता का सुख दिलाने में कामयाब हो पाते हैं.