भोपाल। साल 2018 के अंत में मध्यप्रदेश में सरकार बदली, तब रेत नीति बदली, फिर सरकार बदली और फिर रेत नीति में आमूल-चूल परिवर्तन किया गया, लेकिन 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले जो लोग अवैध खनन पर खूब शोर-शराबा करते थे, वो सरकार बदलते ही खामोश हो गए और जो अवैध खनन पर खामोश थे, वो शोर-शराबा करने लगे, पर वक्त ने पासा पलटा और फिर सरकार बदल गई, इसके बाद अचानक अवैध खनन पर फिर खामोशी टूटी और सत्ता जाते ही कांग्रेस अवैध खनन के मुद्दे पर मुखर हो गई. यानि सरकार किसी की भी रहे, पर अवैध खनन जारी रहेगा!
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार अवैध खनन को संरक्षण दे रही है या उसके नुमाइंदे खनन माफिया की पैरोकारी कर रहे हैं. ये सवाल उठना लाजिमी है क्योंकि बिना राजनीतिक संरक्षण के इतनी बड़ी मात्रा में अवैध खनन होना और रोकने पर पुलिस-प्रशासन तक पर जानलेवा हमला करना कमोबेश इसी तरफ इशारा करता है.
मध्यप्रदेश के रेत माफिया दिन-दूना रात चौगुना तरक्की कर रहे हैं, ऐसी स्थिति तब है, जब खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान माफियाओं पर नकेल कसने के लिए अधिकारियों को खुली छूट दे चुके हैं, चार माह पहले सीएम के दिए इस निर्देश पर हुई कार्रवाई के बाद करीब 26 जिलों के ठेकेदारों ने अपने लाइसेंस सरेंडर कर दिए, जिससे करीब 550 करोड़ रुपए राजस्व घाटा होने की संभावना है. अब सवाल उठ रहा है कि रेत के अवैध खनन का पैसा किसकी जेब में जा रहा है. उधर खनिज मंत्री दावा कर रहे हैं कि पहले के मुकाबले अवैध खनन काफी कम हुआ है, जबकि सरकार एक बार फिर खनिज नीति में संसोधन करने की तैयारी कर रही है.
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प्रदेश में वैध खनन बंद होने से अवैध खनन तेजी से बढ़ रहा है. यह स्थिति तब है, जब अवैध खनन को सख्ती से रोकने के मुख्यमंत्री तक निर्देश दे चुके हैं, इसके बाद भी न तो अवैध खनन रुका है और न ही इसे रोकने जाने वाले अमलों पर हमले रुके हैं. प्रदेश में सबसे ज्यादा अवैध खनन होशंगाबाद, नरसिंहपुर, रायसेन, विदिशा, छतरपुर, दतिया, मुरैना जिले में हो रहा है. बेखौफ माफिया धड़ल्ले से अवैध रेत खनन कर रहे हैं.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि खनन से बतौर राॅयल्टी मिलने वाला राजस्व सरकारी खजाने में न जाकर आखिर किसकी झोली में जा रहा है. उधर खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा है कि पिछले सालों की अपेक्षा अवैध खनन में काफी कमी आई है. राजस्व, पुलिस, वन और खनिज विभाग संयुक्त टीम बनाकर लगातार कार्रवाई कर रहा है, जबकि पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों के मुताबिक 2020 में अवैध रेत खनन-परिवहन के आरोप में कुल 3214 टैक्टर-ट्राॅली, 1320 डंपर और 112 बुल्डोजर जब्त किए गए हैं.
प्रदेश के 37 जिलों में से 26 जिलों के ठेकेदारों पर मई की राॅयल्टी का 68 करोड़ रुपए बकाया है, इसमें होशंगाबाद के रेत ठेकेदार आरके कंस्ट्रक्शन पर 23 करोड़ रुपए बकाया है, उधर छतरपुर जिले के ठेकेदार पर तीन माह का 26 करोड़ रुपए से ज्यादा का बकाया है. बताया जाता है कि ठेकेदार ने मार्च, अप्रैल और मई की किश्तें नहीं दी है. यही हाल रायसेन, विदिशा जैसे कई और जिलों का भी है, राॅयल्टी का पैसा जमा नहीं करने की वजह से करीब 26 जिलों में वैध रेत खनन बंद है.
मंदसौर, अलीराजपुर, उज्जैन, आगर-मालवा और रायसेन जिलों में कोरोना की वजह से रेत खदानों की नीलामी ही नहीं हो सकी. रायसेन, मंदसौर और अलीराजपुर की खदानों के ठेके राॅयल्टी की दूसरी किस्त जमा नहीं करने की वजह से करीब दो माह पहले ही निरस्त किए गए थे, जबकि पांच बार प्रयास करने के बावजूद उज्जैन और आगर मालवा में नीलामी लेने वाले ठेकेदार ही नहीं मिले, जिसके चलते इस बार करीब 550 करोड़ रुपए राजस्व नुकसान का अनुमान है. पिछले साल भी सरकार के खाते में सिर्फ 650 करोड़ रुपए ही आए थे, ये अलग बात है कि कमलनाथ सरकार के समय लाई गई रेत नीति के वक्त दावा किया गया था कि नई नीति से हर साल 1200 करोड़ रुपए राजस्व मिलेगा. उधर अवैध खनन को लेकर कांग्रेस हमलावर है. पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने मुख्यमंत्री और सरकार के संरक्षण में नर्मदा नदी में अवैध खनन होने का आरोप लगाया है.