भोपाल। बंटवारे के समय कई रिफ्यूजी परिवारों ने पाकिस्तान से आकर भारत में शरण ली थी. वे अपना घर-बार, संपत्ती छोड़ यहां बस गए. ऐसे ही लोगों के संघर्ष के प्रति सम्मान जताने के लिए 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है. राजधानी भोपाल में भी 1949 में बंटवारे के दौरान सिंधी समाज के कई लोगों ने भारत में शरण ली थी.
भारत में शरण लेने वाले सिंधी समाज के कई परिवारों में एक परिवार था किशनलाल रायचंदानी का. रायचंदानी का कहना है कि 10 साल की उम्र में वे अपने परिवार के साथ हैदराबाद के सिंध प्रांत से होते हुए भोपाल पहुंचे थे. वे भी दूसरे रिफ्यूजियों की तरह अपना सबकुछ छोड़कर भोपाल आए थे. उनके पिता चार भाई थे जो 600 एकड़ की जमीन में खेती करते हुए सुख शांती से अपना जीवन यापन करते थे, लेकिन बंटवारे के बाद एक हालात ऐसे हो गए, की वे एक रोटी के लिए भी तरसने लगे.
रिफ्यूजी कैंम्प में राशन के लिए लंबी-लंबी लाइन लगती थी. कुछ दिन भोपाल रेलवे स्टेशन के पास रहने के बाद उन्हें बैरागढ़ शिफ्ट किया गया. बता दे रिफ्युजियों की सुरक्षा को ध्य़ान में रखते हुए उन्हें रेलवे स्टेशन के नजदीक या आर्मी एरिया के नजदीक ही कैंपों में रखा जाता था.
सिर्फ रायचंदानी ही नहीं, ऐसे कई परिवार है जिन्होंने शरणार्थी होने के उस संघर्ष को झेला है. इन परिवारों को भोपाल के पास ही बैरागढ़ में रहने के लिए जगह दी और ये परिवार आज मेहनत-मजदूरी करते हुए व्यापार कर रहे है और अपना परिवार के साथ रह रहे है. सरकार की मदद से उन्हें रहने के लिए जमीन के पट्टे भी मिल गए.
आज भी कई परिवार ऐसे है जिनके पास भारत की नागरिकता नहीं है. वहीं सरकारे आती जाती रहती है और इन हमेशा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती रहती है.
राजधानी भोपाल में सिंधी समुदाय का बड़ा वोट बैंक है, जिसको लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही उन्हें साधने की कोशिश करते हैं. जब उनके हकों की बात आती है तो एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते नजर आते हैं. आज भी इन शरणार्थियों को उम्मीद है कि उनके उत्थान के लिए सरकार काम भी करेगी.