भोपाल। राज्यसभा की डगर कितनी मुश्किल है, किसको इसकी कितनी कीमत चुकानी होगी, इसका अंदाजा लगाने में बड़े-बड़े सियासी पंडित के भी पसीने छूट रहे हैं, राज्यसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद से ही सियासी ऊंट हर पल करवट बदल रहा है, पहले दिग्विजिय और सिंधिया की दावेदारी के बीच प्रियंका गांधी की एंट्री और अब हॉर्स ट्रेडिंग के आरोपों के बीच तख्तापलट की कोशिश महज इत्तेफाक नहीं हो सकता है.
सिंधिया की सड़क पर उतरने की चेतावनी, फिर सड़क पर दिग्विजय सिंह से मुलाकात और उसके बाद विधायकों की खरीद फरोख्त के आरोप के बाद बदली सियासी फिजा ने नया तूफान खड़ा कर दिया है. इस तूफान ने किसको किस किनारे पहुंचा दिया किसी को पता ही नहीं है, जब ये तूफान थमेगा तभी पता चलेगा कि इस तूफान का केंद्र कहां था. कौन किसके साथ था और कौन किसके खिलाफ.
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इस नाटकीय घटनाक्रम के पीछे दो वजह हो सकती है, पहली ये कि राज्यसभा पहुंचने के लिए ये साजिश रची गई है. जैसा कि प्रदेश के वन मंत्री उमंग सिंघार ने ट्वीट कर इशारा भी किया है. हालांकि, उन्होंने किसी का नाम नहीं लिखा है, जबकि दूसरा ये कि सरकार से असंतुष्ट विधायक या नेता विरोधी खेमे के साथ मिलकर अपनी मुराद पूरी करना चाहते हैं.
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अब राज्यसभा का गणित समझते हैं, मौजूदा समय में कांग्रेस के पास 114, बीजेपी के पास 107, बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायक के अलावा दो सीटें खाली हैं. राज्यसभा की एक सीट के लिए 58 विधायकों के वोटों की जरूरत पड़ती है, कांग्रेस के पास एक सीट जीतने के बाद 56 वोट बचेंगे, यानि दूसरी सीट जीतने के लिए दो विधायकों के समर्थन की जरुरत पड़ेगी. ऐसे में पार्टी ऐसे चेहरे पर दांव लगाना चाहती है, जिस पर सब राजी हो जाएं, वहीं बीजेपी के पास एक सीट जीतने के बाद 49 वोट बचेंगे, जबकि बीजेपी दो सीटें जीतने के दम के साथ ही तीसरे प्रत्याशी पर भी दांव लगा रही है.
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बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही ऐसे प्रत्याशी की तलाश कर रहे हैं, जिसे वोट करने के लिए विपक्षी विधायक भी राजी हो जाएं, जबकि दोनों ही दलों के प्रत्याशी राज्यसभा जाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. सियासी संकट के बीच कमलनाथ सरकार ने भी दावा किया है कि उसे किसी तरह का खतरा नहीं है, जबकि पिछले दो दिनों से चल रहे सियासी तूफान से हुई तबाही का अंदाजा लगाने के लिए इस तूफान के थमने तक इंतजार करना पड़ेगा.