वाराणसी: जन्माष्टमी की आधी रात हुआ था उनका जन्म. उन्हें बनारस के संगीत घराने की बड़ी विरासत माना जाता है. उन्हें तबला सम्राट के नाम से भी जाना जाता है. अब तो आप समझ गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं तबला मार्तंड पंडित किशन महाराज की जिन्होंने तबले की थाप को पूरी दुनिया में नए तरीके से प्रस्तुत किया है. पंडित किशन महाराज का जन्म 1923 में जन्म हुआ था. 2008 में वह इस दुनिया से विदा हो गया. 4 मई को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है. ऐसे में आज हम आपके सामने उनके जीवन के कुछ यादगार पलों को लेकर आए हैं जिसे पंडित जी अपने बनारसी अंदाज में जिया करते थे.
1923 में हुआ था पंडित जी का जन्म : पंडित किशन महाराज का जन्म वाराणसी के कबीर चौरा मोहल्ले में 1923 में एक संगीतज्ञ के परिवार में हुआ था. उनके पिताजी पंडित हरि महाराज शास्त्री संगीत के ज्ञाता थे. कृष्ण जन्माष्टमी पर आधी रात में पंडित जी का जन्म होने के कारण उनका नाम किशन रखा गया. प्रारंभिक वर्षों में वह अपने पिताजी से ही शास्त्र संगीत की शिक्षा लेते थे. उनके देहावसान के बाद उन्होंने पंडित कंठे महाराज से शिक्षा ग्रहण की. तबले की आरंभिक यात्रा में उन्होंने उस्ताद फैयाज खान, पंडित ओंकार ठाकुर, उस्ताद बड़े गुलाम अलीखान, पंडित भीमसेन जोशी, पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान जैसे कलाकारों के साथ संगत की और इस विधा को आगे बढ़ाया.
अब नई पीढ़ी सहेज रही विरासत : वर्तमान में उनकी पहली और दूसरी पीढ़ी उनके इस विधा को आगे लेकर जा रही है. दूसरी पीढ़ी में उनकी नन्ही पौत्री अवंतिका मिश्र हैं जो इन दिनों तबला सीख रहीं हैं. वह अपने बाबा की तरह ही बनना चाहतीं हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में अवंतिका ने बताया कि वह 5 वर्ष से तबला वादन सीख रही हैं. उन्हें तबला बजाना बेहद पसंद है. वह प्रतिदिन सुबह रियाज़ करतीं हैं.
ऐसी थी पंडित किशन महाराज की दिनचर्या : पंडित किशन महाराज के पुत्र और प्रख्यात तबला वादक पंडित पूरण महाराज बताते हैं कि उनके पिताजी को शुरू से ही तबला वादन का शौक था. बचपन में उन्हें उनके बाबा पंडित हरि महाराज शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देते थे. उसके बाद उन्होंने पंडित कंठे महाराज से तबला वादन की शिक्षा ग्रहण की. इस दौरान उन्हें गायन, नृत्य, वादन सभी विधाएं सिखाई जातीं थीं. वह सभी विधाओं में परिपूर्ण थे. उन्होंने बताया कि सुबह उठने के बाद वह रियाज किया करते थे. इसके बाद स्नान ध्यान करके संकट मोचन दरबार में मत्था टेकने प्रतिदिन साइकिल से जाया करते थे. इसके बाद दोस्तों से मुलाकात कर पान खाने के साथ घर आते थे. फिर रियाज करते थे. इसके बाद भोजन करने के बाद रात्रि विश्राम करते थे. उनकी यह दिनचर्या हमेशा रही हैं.
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युवाओं के लिए हैं प्रेरणा स्रोत : पंडित किशन महाराज युवाओं के लिए आज भी प्रेरणादाई हैं. उनके परिवार से जुड़े उनके पौत्र पंडित अंशुमन महाराज बताते हैं कि बाबा ने तबले को एक नई पहचान दी है. पहले तबला एक संगत के रूप में देखा जाता था और पीछे रखा जाता था. लेकिन आज तबला सोलो बजाया जाता है. इसे एकल वाद के रूप में भी जाना जाता है. इसका श्रेय उनके बाबा को जाता है. आज हम सभी युवा उन्हें प्रेरणा मानकर आगे बढ़ रहे हैं.
कई पुरस्कारों से नवाजे गए : पंडित किशन महाराज को 2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. वर्ष 1973 में उन्हें पद्मश्री, 1984 में केंद्रीय संगीत नाटक पुरस्कार, 1986 में उस्ताद इनायत अली खान पुरस्कार, दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, उत्तर प्रदेश रत्न, उत्तर प्रदेश गौरव भोजपुरी रत्न, भागीरथ सम्मान, लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान सहित अन्य कई अवार्ड से नवाजा गया है.