भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा का कोरोना महामारी के कारण पिछले एक साल से वास्तविक सत्र का आयोजन नहीं हो सका है. पिछला एकदिवसीय सत्र 21 सितम्बर 2020 में आयोजित हुआ था. उसके बाद दिसंबर में तीन दिवसीय सत्र आयोजित होना था, लेकिन कोरोना के कारण सत्र टाल दिया गया. लेकिन अब आगामी सत्र को लेकर सरकार मजबूर नजर आ रही है. पहली वजह ये है कि पहले विधानसभा सत्र और दूसरे सत्र के बीच 6 माह से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए. वहीं आगामी वित्तीय वर्ष के लिए बिना सत्र बुलाए बजट पारित नहीं किया जा सकता है. पूर्व मंत्री पीसी शर्मा का आरोप है कि जनता से जुड़े सवालों और स्पीकर के चुनाव में बीजेपी में असंतोष ना भड़क जाए, इसलिए सत्ताधारी दल सत्र से बच रहा है. संसदीय कार्य मंत्री वास्तविक सत्र के आहूत होने की संभावना तो जता रहे है, लेकिन खुलकर बात नहीं करना चाहते हैं. कानून के जानकारों का कहना है कि सरकार को बजट पारित कराने के लिए 21 मार्च के पहले सत्र आहूत करना ही होगा.
कोरोना के कारण टल गया था शीतकालीन सत्र
विधानसभा का एक दिवसीय सत्र 21 सितंबर को आयोजित किया गया था. इस सत्र के बाद 28, 29 और 30 दिसंबर को विधानसभा का शीतकालीन सत्र आयोजित होने की बात कही गई थी. लेकिन विधानसभा के कर्मचारियों और कुछ विधायकों को कोरोना हो जाने के कारण सत्र स्थगित कर दिया गया था. ऐसी स्थिति में 3 माह 24 दिन पिछला सत्र आयोजित हुए समय बीत गया है.
6 महीने के अंदर आयोजित करना होता है विधानसभा का सत्र
संविधान के अनुच्छेद 174 के अनुसार 6 महीने के अंदर सत्र बुलाना अनिवार्य है. अगर पिछला सत्र सितंबर में आयोजित हुआ था, तो मार्च तक उस तारीख में जब 6 महीने पूरे हो रहे हैं, उसके पहले सत्र बुलाना होगा.
बजट पारित कराने के लिए सत्र बुलाना जरूरी
वही किसी भी राज्य के बजट को पारित कराने के लिए विधानसभा का सत्र आहूत कराना जरूरी होता है. बजट की प्रक्रिया के तहत बजट को पहले पेश किया जाता है, फिर उस पर चर्चा होती है और उसके बाद वोटिंग के जरिए बजट पारित किया जाता है. बजट विधानसभा में ही पारित हो सकता है, उसको अध्यादेश के माध्यम से पारित नहीं किया जा सकता है.
लोकतंत्र का गला घोंट रही है भाजपा- कांग्रेस
पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि निश्चित तौर पर भाजपा प्रजातंत्र का गला घोट रही है. जनता के सवालों का जवाब सरकार के पास नहीं है. विधायक जनता के सवाल उठाते हैं. सरकार दिवालिया हो गई है, फिर भी एक पर एक कर्ज ले रही है. इसके पहले हजारों करोड़ कर ले चुकी है. कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है. ठेकेदारों को भुगताननहीं हो रहा है, काम कुछ भी नहीं हो रहा है. मुख्यमंत्री केवल घोषणाएं कर रहे हैं, कि 'टांग दूंगा, उल्टा कर दूंगा' आप देखिए जहरीली शराब का तीसरा मामला मुरैना में सामने आ गया.
पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि सरकार इसलिए सत्र नहीं बुलाना चाहते हैं, अध्यक्ष बनाएंगे, तो इसमें विरोध है कि विंध्य का बने या महाकौशल का बने या फिर यही प्रोटेम स्पीकर बने रहें. वर्ल्ड रिकॉर्ड बन गया है कि इतने लंबे समय तक कोई प्रोटेम स्पीकर नहीं रहा है. 28 लोगों को शपथ दिलाई, तो एक कमरे में दिला दी. लेकिन विधानसभा इतनी बड़ी है. विधानसभा बुलाने तैयार नहीं हैं. कुल मिलाकर ही टाइम पास कर रहे हैं. ना जनता के सवालों का जवाब देना चाहते हैं और ना ही विधायकों के सवाल का जवाब देना चाहते हैं.
धीरे-धीरे कोरोना का भय समाप्त हो रहा है
गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने विधानसभा सत्र को लेकर कहा कि मैं मानता हूं कि विधानसभा सत्र एक्चुअल ही होगा. अगली कैबिनेट हमारी मान्यता है कि एक्चुअल ही होगी. धीरे-धीरे कोरोना का प्रभाव, कोरोना का दबाव और कोरोना का भय सब कम हो रहा है. वैक्सीन आने से लोगों में जागरूकता के साथ मनोबल भी बढ़ रहा है. मोदी जी ने जो सफल काम किया है. उसकी पीड़ा आपको अखिलेश के बयान में दिखी, दिग्विजय सिंह और शशि थरूर के ट्वीट में भी पीड़ा दिखी.
बजट के लिए तो सत्र बुलाना होगा
सुप्रीम कोर्ट के वकील शांतनु सक्सेना का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 174 तय करता है कि 6 महीने के अंदर इनको सत्र बुलाना है. अगर पिछला सत्र सितंबर में हुआ था, तो मार्च तक उस तारीख तक जहां 6 महीने हो रहे हैं, तो दूसरा सत्र उसके पहले राज्यपाल को बुलाना पड़ेगा. जहां तक बजट का सवाल है, तो राज्यपाल को सभी व्यय और रिपोर्ट भी सदन में पेश करवानी पड़ेगी, उन पर बहस भी होना चाहिए, वह भी एक जरुरत है, तो इसलिए बजट सत्र बुलाना पड़ेगा, जहां तक कोरोना काल की बात है, तो सब चीज है चल रही हैं, तो मुझे नहीं लगता है कि सत्र नहीं बुलाया जाएगा.