भोपाल। प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर वोटिंग के बाद प्रदेश की शिवराज सरकार वित्तीय प्रबंधन में जुट गई है. राज्य सरकार ने लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग सहित आठ विभागों को ही बजट की स्वीकृत राशि खर्च करने की अनुमति दी है. इसके अलावा शेष 46 विभाग स्वीकृत बजट का दस फीसदी से ज्यादा खर्च नहीं कर सकेंगे.
कोरोना संक्रमण से बिगड़ी वित्तीय स्थिति
कोरोना संक्रमण का प्रदेश की आर्थिक सेहत पर बेहद बुरा असर पड़ा है. प्रदेश के राजस्व में कमी आई है. वहीं केंद्रीय करों से मिलने वाली राशि भी नहीं मिल पाई है. केन्द्रीय करों में राज्य के हिस्से और राज्य करों में होने वाली आमदानी को मिलाकर करीबन 15 हजार 815 करोड़ का प्रदेश को नुकसान हुआ है. इसका अनुमान वित्त सचिव ने बजट अनुमान वर्ष 2020-21 में जताई है. हालांकि इसकी भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने राज्य को दो प्रतिशत अतिरिक्त ऋण लेने की अनुमति दी है. एफआरबीएम के तहत मध्यप्रदेश जीडीपी से 3.5 फीसदी तक कर्ज ले सकती है. इस हिसाब से प्रदेश सरकार इस वित्तीय वर्ष में औसतन 34 हजार करोड़ रुपए का कर्जा ले सकती है.
कर्ज लेने की लगी छड़ी
नाजुक वित्तीय स्थिति के चलते राज्य सरकार को लगातार कर्जा लेना पड़ रहा है. हालात यह हैं कि सरकार को कर्मचारियों के वेतन बांटने तक के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. पिछले 30 दिनों में प्रदेश सरकार चार बार बाजार से कर्जा ले चुकी है, इसके बाद सरकार पर जनवरी से अब तक 22 हजार करोड़ का कर्जा बढ़ गया है. शिवराज सरकार सात माह के कार्यकाल में 10 बार कर्ज ले चुकी है. राज्य सरकार पर दो लाख 28 हजार करोड़ का कर्ज पहले से ही सिर पर है. इसमें एक लाख 15 हजार 532 करोड़ रुपए बाजार से, सात हजार 360 करोड़ बाॅन्ड्स से, 10 हजार 766 करोड़ वित्तीय संस्थाओं से 20 हजार 938 करोड़ केंद्र सरकार से एडवांस और लोन के रूप में लिया गया है.