भोपाल। कोरोना संक्रमण के बीच प्रदेश के शासकीय स्कूलों में एडमिशन की प्रक्रिया जारी है. संक्रमण के खतरे के चलते पिछले 6 महीने से स्कूल बंद थे, ऐसे में छात्रों की परीक्षाएं 3 महीने देरी से शुरू हुईं. परीक्षा परिणाम भी देरी से आए और यही वजह है कि स्कूलों में एडमिशन भी देरी से शुरू हुए. ऐसे में जो एडमिशन जून महीने तक पूर्ण हो जाया करते थे, आज वो सितंबर के आखरी महीने तक जारी हैं. प्रदेश के शासकीय स्कूलों में अगस्त महीने में एडमिशन प्रक्रिया शुरू हुई, जो अब भी जारी है.
विभाग लगातार एडमिशन की तिथि बढ़ा रहा है, जिससे ज़्यादा से ज्यादा एडमिशन हो सकें. लेकिन बावजूद इसके कोरोना का असर एडमिशन पर देखने को मिल रहा है. प्रदेश के शासकीय स्कूलों में इस साल 30 फीसदी से अधिक एडमिशन की संख्या घटी है. हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में एडमिशन में बढ़ोतरी देखने को मिली है. लेकिन प्रदेशभर के स्कूलों की अगर हम बात करें, तो इस साल एडमिशन में गिरावट हुई है. पिछले साल प्रदेश के शासकीय स्कूलों में 24 लाख 65 हजार 225 एडमिशन हुए थे, तो वहीं इस साल यह संख्या घटकर 20 लाख 57 हजार 386 हो गई है.
प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में एडमिशन में बढ़ोतरी देखने को मिली है. इसकी एक वजह यह भी है कि कोरोना के चलते दूसरे राज्यो में रह रहे प्रवासी मजदूर अपने घरों की ओर लौट आये हैं और संक्रमण के कारण वो बच्चों को अपने ही क्षेत्र में पढ़ाने की ओर ध्यान दे रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के कई जिलों में ग्रामीण इलाकों में स्कूलों में एडमिशन में बढ़ोतरी देखी गई है. वहीं राजधानी भोपाल के आस पास के ग्रामीण इलाकों में भी एडमिशन में बढ़ोतरी देखी गई है. वहीं उत्कृष्ट विद्धालय जो शहर में हैं, उनमें यह संख्या घटी है.
हालांकि अभी स्कूलों में एडमिशन की प्रक्रिया जारी है. एमपी बोर्ड ने एडमिशन की तारीख बढ़ाकर 30 सितंबर कर दी है. लेकिन जो एडमिशन शुरुआत में आए उसके आधार पर आंकड़ों में यह देखा गया है कि ग्रामीण इलाकों में एडमिशन जंहा बढ़े हैं वहीं शहरी इलाकों में इसकी संख्या में गिरावट आई है और एमपी बोर्ड से संचालित सभी स्कूलों की अगर हम बात करें तो इस साल स्कूलों में एडमिशन की संख्या 30 फीसदी तक घट गई है.
राजधानी के जहांगीराबाद स्थित शासकीय कन्या शाला की प्राचार्य उषा खरे ने बताया कि उनका स्कूल शहर से दूर ग्रामीण इलाके में पड़ता है. यहां प्रतिवर्ष ऐसे बच्चे एडमिशन लेते हैं, जिनके माता पिता मजदूर हैं और बच्चे भी इसी माहौल से निकलकर आते हैं. अक्सर बच्चे एडमिशन तो लेते हैं, लेकिन सत्र खत्म होते होते ही बच्चे स्कूल से पलायन कर देते हैं, जिससे स्कूल में बच्चों की संख्या घट जाती है. प्राचार्य उषा खरे ने बताया कि इस साल 6 सालों का रिकॉर्ड टूटा है. 6 साल बाद स्कूल में बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और एडमिशन अब भी जारी है.
वहीं, सरोजनी नायडू के प्राचार्य सुरेश खांडेकर ने बताया कि उनके स्कूल में पिछले साल के मुकाबले इस साल कम एडमिशन हुए हैं. हालांकि अभी एडमिशन प्रक्रिया जारी है. उम्मीद है कि 30 सितंबर तक यह संख्या बढ़ेगी, सुरेश खांडेकर का कहना है कि कोरोना संक्रमण का असर एडमिशन पर देखने को मिला है. आम दिनों में उनके स्कूल में इस वक्त तक सीटें फुल हो जाती थीं, लेकिन इस साल एडमिशन की तारीख लगातार बढ़ रही है, लेकिन बच्चों की संख्या नहीं बढ़ रही.
प्रदेश के अलग-अलग जिलों की अगर हम बात करें तो भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन जैसे बड़े शहरों के शासकीय स्कूलों में एडमिशन कम हुए हैं. तो वहीं छोटे शहरों के शासकीय स्कूलों में एडमिशन में बढ़ोतरी देखी गई है.