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स्ट्रीट डॉग एंबुलेंस के नाम से जाने जाते हैं ये युवक, लोन लेकर बनाया शेल्टर होम

भोपाल में स्ट्रीट डॉग के लिए दो दोस्तों ने मिलकर लोन लेकर एक शेल्टर होम खोला है. साथ ही ये दोनों दोस्त, शहर में करीब 200 स्ट्रीट डॉग्स को रोज खाना खिलाते हैं.

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स्ट्रीट डॉग एंबुलेंस के नाम से जाने जाते हैं ये युवक
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Published : Dec 29, 2019, 7:34 PM IST

भोपाल। जानवरों हमदर्दी रखने वालों के बारे में तो कई बार सुना होगा. लेकिन ऐसी दीवानगी कम ही देखने को मिलती है. कुछ ऐसी ही कहानी है डॉग लवर नसरत और चित्रांशु की. जिन्होंने 4 लाख रुपए का लोन लेकर स्ट्रीट डॉग के लिए एक शेल्टर होम बना दिया है. शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक अपनी बाइक से घायल या बीमार कुत्तों को उठाकर डॉक्टर से उनका इलाज करवाते हैं. इन दोनों दोस्तों के इस काम की वजह से लोग इन्हें स्ट्रीट डॉग की 108 बुलाते हैं.

स्ट्रीट डॉग एंबुलेंस के नाम से जाने जाते हैं ये युवक

बेटे के नेक काम को देख पिता ने खुलवाया शेल्टर होम

नसरत को डॉग लविंग की हॉबी विरासत मे मिली है. उनके पिता और दादा दोनों डॉग ट्रेनर थे. बचपन से ही कुत्तों से ही नसरत का खास लगावा रहा है. वहीं कम्प्यूटर साइंस इंजीनियर चित्रांशु के अंदर ये जुनून जागा तो उन्होंने अपने घर में ही 20 कुत्ते इकट्ठे कर लिए. चित्रांशु के पिता ने बेटे के इस काम को सराहा और 4 लाख रुपए का लोन दिलवाकर एक शेल्टर होम बनवा दिया. अब इस शेल्टर होम में 80 कुत्तों के रहने की व्यवस्था है.

200 स्ट्रीट डॉग को रोज खिलाते हैं खाना

नसरत और चित्रांशु स्ट्रीट डॉग को रोज खाना खिलाते हैं. इसके लिए उन्होंने शहर के पांच अलग-अलग इलाकों को चुन कर रखा है. जिन्हें वे फीडिंग प्वाइंट कहते हैं. इन पांचों जगहों पर कुल मिलाकर लगभग 200 कुत्ते खाना खाते हैं.

खाने का मीन्यू भी फिक्स

इन कुत्तों को सुबह दूध और दलिया और शाम के वक्त रोटी दी जाती है. हर रविवार कुत्तों को नॉनवेज भी दिया जाता है. कुत्तों के लिए खाना नसरत के घर पर बनता है.

बीमार पड़ने पर कराते हैं इलाज

अगर ये कुत्ते बीमार पड़ जात हैं या फिर घायल होते हैं. ये दोनों दोस्त ऐसे डॉग को वेटनरी हॉस्पिटल ले भी जाते हैं. कई बार तो खुद ही उनकी ड्रेसिंग करते हैं. चित्रांशु कहते हैं कि भारतीय संस्कृति में पहली रोटी गाय और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए बनाई जाती है. यदि सभी लोग ऐसा करने लगें, तो कभी कोई डॉग भूख से नहीं मरेगा.

वहीं नसरत ने बताया कि कई बार स्ट्रीट डॉग को हॉस्पिटल तक पहुंचाने मे बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. एक्सीडेंटल केस में डॉग गंभीर रुप घायल होते है. ऐसे में बाइक पर हॉस्पिटल नहीं ले जा सकते. ऑटो वालों से बहुत रिक्वेस्ट करनी पड़ती है.

भोपाल। जानवरों हमदर्दी रखने वालों के बारे में तो कई बार सुना होगा. लेकिन ऐसी दीवानगी कम ही देखने को मिलती है. कुछ ऐसी ही कहानी है डॉग लवर नसरत और चित्रांशु की. जिन्होंने 4 लाख रुपए का लोन लेकर स्ट्रीट डॉग के लिए एक शेल्टर होम बना दिया है. शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक अपनी बाइक से घायल या बीमार कुत्तों को उठाकर डॉक्टर से उनका इलाज करवाते हैं. इन दोनों दोस्तों के इस काम की वजह से लोग इन्हें स्ट्रीट डॉग की 108 बुलाते हैं.

स्ट्रीट डॉग एंबुलेंस के नाम से जाने जाते हैं ये युवक

बेटे के नेक काम को देख पिता ने खुलवाया शेल्टर होम

नसरत को डॉग लविंग की हॉबी विरासत मे मिली है. उनके पिता और दादा दोनों डॉग ट्रेनर थे. बचपन से ही कुत्तों से ही नसरत का खास लगावा रहा है. वहीं कम्प्यूटर साइंस इंजीनियर चित्रांशु के अंदर ये जुनून जागा तो उन्होंने अपने घर में ही 20 कुत्ते इकट्ठे कर लिए. चित्रांशु के पिता ने बेटे के इस काम को सराहा और 4 लाख रुपए का लोन दिलवाकर एक शेल्टर होम बनवा दिया. अब इस शेल्टर होम में 80 कुत्तों के रहने की व्यवस्था है.

200 स्ट्रीट डॉग को रोज खिलाते हैं खाना

नसरत और चित्रांशु स्ट्रीट डॉग को रोज खाना खिलाते हैं. इसके लिए उन्होंने शहर के पांच अलग-अलग इलाकों को चुन कर रखा है. जिन्हें वे फीडिंग प्वाइंट कहते हैं. इन पांचों जगहों पर कुल मिलाकर लगभग 200 कुत्ते खाना खाते हैं.

खाने का मीन्यू भी फिक्स

इन कुत्तों को सुबह दूध और दलिया और शाम के वक्त रोटी दी जाती है. हर रविवार कुत्तों को नॉनवेज भी दिया जाता है. कुत्तों के लिए खाना नसरत के घर पर बनता है.

बीमार पड़ने पर कराते हैं इलाज

अगर ये कुत्ते बीमार पड़ जात हैं या फिर घायल होते हैं. ये दोनों दोस्त ऐसे डॉग को वेटनरी हॉस्पिटल ले भी जाते हैं. कई बार तो खुद ही उनकी ड्रेसिंग करते हैं. चित्रांशु कहते हैं कि भारतीय संस्कृति में पहली रोटी गाय और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए बनाई जाती है. यदि सभी लोग ऐसा करने लगें, तो कभी कोई डॉग भूख से नहीं मरेगा.

वहीं नसरत ने बताया कि कई बार स्ट्रीट डॉग को हॉस्पिटल तक पहुंचाने मे बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. एक्सीडेंटल केस में डॉग गंभीर रुप घायल होते है. ऐसे में बाइक पर हॉस्पिटल नहीं ले जा सकते. ऑटो वालों से बहुत रिक्वेस्ट करनी पड़ती है.

Intro:कुत्तों को शेल्टर देने चार लाख रुपए का लोन लिया।

हर दिन आते हैं 15 कॉल।

5 फीडिंग पॉइंट्स पर रोज़ाना 200 डॉग्स को खिलाते है खाना।




भोपाल। नसरत और चित्रांशु पढ़े लिखे युवा है। डॉग लवर इस हद के कि वे अपना घर द्वार और कैरियर सब कुछ भूल चुके हैं। 4 लाख रुपए का लोन लेकर उन्होंने स्ट्रीट डॉग के लिए एक शेल्टर होम बना दिया है। हर रोज उनके पास 10 से लेकर 15 कॉल आते है। वह शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक अपनी बाइक से घायल या बीमार कुत्तों तक पहुंचते हैं उनका इलाज कराते हैं जरूरत हो तो स्ट्रीट डॉग को शेल्टर होम ले जाते हैं। वेटनरी हॉस्पिटल लेजाकर वहां पूरा ट्रीटमेंट करने के बाद उन्हें वापस उसी जगह पर छोड़ जाते हैं। इन दोनों को स्ट्रीट डॉग की 108 कहा जाता है।

नसरत को डॉग लविंग विरासत मे मिली है उनके पिता और दादा दोनों डॉग ट्रेनर थे। बचपन से ही कुत्तों के प्रति नसरत को प्यार रहा और अब वह पिछले 2 साल से पूरी तरह स्ट्रीट डॉग के लिए समर्पित हो गए।Body:उनका दोस्त चित्रांशु सेन कंप्यूटर साइंस इंजीनियर है। नसरत की तरह जब चित्रांशु में स्ट्रीट डॉग के लिए जुनून जागा तो उसने अपने घर में एक साथ 20 कुत्ते इकट्ठे कर लिए। उसके पिता सरकारी कर्मचारी है उन्होंने बेटे के इस जुनून को देखते हुए 4 लाख रुपए का लोन दिलाया और एक शेल्टर होम बनवा दिया। शेल्टर होम में एक साथ 80 कुत्तों के रहने की व्यवस्था है। इसे शहर के बरखेड़ा पठानी इलाके में बनाया गया है। नसरत और चित्रांशु दोनों ने नगर निगम कार्यालय से लेकर शहर की कॉलोनी कॉलोनी में और सोशल मीडिया पर अपने नंबर पोस्ट कर रखें हैं।
लावारिस और स्ट्रीट डॉग को वे रोज दो बार खाना खिलाते हैं इसके लिए उन्होंने भोपाल शहर के पांच अलग-अलग इलाकों को चुन कर रखा है जिन्हें वे फीडिंग पॉइंट कहते है। इन पांचों जगहों पर कुल मिलाकर लगभग 200 कुत्ते खाना खाते हैं।

कुत्तों को सुबह दूध और दलिया और शाम के वक्त रोटी दी जाती है। हर रविवार कुत्तों को नॉनवेज भी दिया जाता है। कुत्तों के लिए खाना नसरत के घर पर बनता है और नसरत की अम्मी शकीला बी कुत्तों के लिए हर रोज रोटी बनाती हैं।

कुत्तों को दिए जाने वाले खाने के लिए शहर के कुछ डॉग लवर्स और ऑफिसर्स की पत्नियां उनकी मदद करती हैं। स्ट्रीट डॉग्स को खाना खिलाने के लिए नसरत सुबह 5 बजे ही घर से निकल जाते है।Conclusion:Byte - चित्रांशु सेन और नसरत अहमद (***नसरत अहमद की गोद में डॉग है)


नफरत और चित्रांशु कुत्तों को लेकर सरकारी अस्पताल भी ले जाते हैं उनका इलाज कराते हैं, ठीक होने पर उसी गली मोहल्ले में छोड़ कर आते हैं जहां से उन्हें लाया गया है लेकिन वे इन कुत्तों की नसबंदी कराना नहीं भूलते। यह दोनों युवक कुत्तों को अपनी बाइक से ही लाते ले जाते हैं और कई बार अपने हाथ से ही उनकी ड्रेसिंग आदि करते हैं। दोनों युवकों ने इस काम को सही तरीके से अंजाम देने के लिए अब इसे संस्था का रूप देना शुरू किया है और इस प्रोजेक्ट को प्रकृति नाम दिया है।

चित्रांशु कहते हैं कि भारतीय संस्कृति में पहली रोटी गाय की और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए बनाई जाती है यदि सभी लोग ऐसा करने लगे और स्ट्रीट डॉग को एक रोटी एक घर से देने लगे तो कोई भी स्ट्रीट डॉग कभी किसी को काटेगा नहीं। उनका कहना है कि अधिकांश कुत्ते भूखा रहने पर ही किसी पर हमला करते हैं।
नसरत ने बताया की कई बार स्ट्रीट डॉग को हॉस्पिटल तक पहुचाने मे बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक्सीडेंटल केस में डॉग ज़्यादा घायल होते है ऐसे में बाइक पर हॉस्पिटल नही लेकर जा सकते ऑटो वालो से बहुत रिक्वेस्ट करनी पड़ती है। वे कहते है कि लोगो की मदद से वैन खरीद कर उसे एम्बूलेंस की तरह इस्तेमाल करेंगे।
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