जबलपुर: सनातन हिंदू एकता पदयात्रा को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. शारदा द्वारकापीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने इस यात्रा और इसके संदेश पर तीखा प्रहार किया है. शंकराचार्य ने हिंदू राष्ट्र की मांग को उचित ठहराया, लेकिन जात-पात को खत्म करने के विचार का कड़ा विरोध किया. उनका कहना है "जात-पात की व्यवस्था समाज में आदिकाल से चली आ रही है और इसे समाप्त करने की मांग वैदिक परंपरा के खिलाफ है."
जात-पात खत्म करने की मांग पर जताया कड़ा विरोध
शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने पदयात्रा के दौरान जात-पात खत्म करने के नारे पर सवाल उठाते हुए कहा "यदि जात-पात इतनी बड़ी समस्या है, तो धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री खुद अपने नाम के आगे "पंडित" क्यों लगाते हैं." उन्होंने स्पष्ट किया कि वर्ण व्यवस्था समाज की नींव है और इसे तोड़ने का कोई भी प्रयास अस्वीकार्य है. उनका कहना है कि हिंदू राष्ट्र बनाने की बात तो हो रही है, लेकिन इस राष्ट्र की संरचना और प्रक्रिया पर अब तक कोई स्पष्ट विचार सामने नहीं आया है.
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संविधान और हिंदू राष्ट्र पर सवाल
शंकराचार्य ने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर विचार करते हुए कहा "भारत का संविधान इस तरह की घोषणा नहीं कर सकता. उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू राष्ट्र के समर्थकों को यह बताना चाहिए कि इसे कैसे बनाया जाएगा."
शंकराचार्य ने सनातन बोर्ड का किया समर्थन
सनातन धर्म और धार्मिक स्थलों की रक्षा के लिए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने "सनातन बोर्ड" के गठन का समर्थन किया. उनका मानना है कि यह बोर्ड मंदिरों, तीर्थ स्थलों और छोटे धार्मिक स्थानों की देखभाल करेगा. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा "यदि तिरुपति मंदिर की व्यवस्था महात्माओं के हाथों में होती, तो वहां चर्बी जैसी अमर्यादित घटनाएं नहीं होतीं. सरकार बड़े मंदिरों पर ध्यान देती है, लेकिन हजारों साल पुराने छोटे मंदिर उपेक्षित रह जाते हैं. ऐसे में सनातन बोर्ड धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और सेवा में प्रमुख भूमिका निभा सकता है."
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर जताई चिंता
शंकराचार्य ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा "बांग्लादेश सरकार का दायित्व है कि वह अपने देश में रहने वाले हिंदुओं की रक्षा करे." उन्होंने यह भी कहा "जिस तरह दुनिया के कई देशों में मुसलमान रहते हैं, उसी प्रकार हिंदू भी अन्य देशों में निवास करते हैं. ऐसे में बांग्लादेश सरकार को यह सोचना चाहिए कि हिंदुओं पर अत्याचार का क्या संदेश जाएगा." सदानंद सरस्वती से पहले शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने भी धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की पदयात्रा का विरोध किया था. उन्होंने शास्त्री को सरकार का मोहरा बताते हुए उनकी मंशा पर सवाल उठाए थे.
शंकराचार्य सदानंद सरस्वती का बयान सनातन धर्म के भीतर आंतरिक मतभेदों को उजागर करता है. जात-पात, हिंदू राष्ट्र और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आ रहे हैं. सनातन बोर्ड जैसे प्रस्तावों के माध्यम से धर्म और परंपरा की रक्षा के प्रयास जारी हैं, लेकिन एकता के लिए साझा दृष्टिकोण की जरूरत है.