भोपाल। दशकों तक कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम रहा मध्यप्रदेश का भिंड इलाका. जहां बेटी का जन्म ही परिवार की नाक नीची हो जाने का सबब होता रहा है. इस जिले में लिंगानुपात भले कुछ बेहतर हुआ लेकिन सोच की खाई कितनी गहरी है, ये नारा इसकी तस्दीक है. बाकी ऐसे भद्दे नारों पर आपकी हंसी रोकने को ये आंकड़ा ही काफी है कि एमपी में 50 फीसदी से ज्यादा महिलाएं खून की कमी यानि एनीमिया की शिकार हैं. हर पांचवीं गर्भवती की मौत की वजह भी यही.
नारे में उतरी समाज की सोच : एक सामाजिक संगठन द्वारा नारी को अपमानित करते ऐसे नारे भिंड जिले की दीवारों पर दर्ज करवा दिए. नगर पालिका के सहयोग से ये सब हुआ. लेकिन गहराई में जाइए तो सामाजिक संगठन की जरिए जो दीवारों पर उतरा है, वो नारा भी तो यहां के समाज की सोच ही दिखाता है. हैरत की बात ये कि नगर पालिका के सहयोग से ये सब हुआ. बुंदेलखंड इलाके में महिलाओं के साथ भेदभाव और हिंसा के ऐसे मामलों को देख रहीं एडवोकेट उर्मिला प्रकाश कहती हैं "ये हद है समाज की. जो महिला अपने परिवार को बचाने के लिए और वंश को आगे बढ़ाने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा देती है. शर्मनाक है उस महिला पर इस तरह के स्लोगन. ये स्तरहीन और संवेदनहीन लोगों की सोच है."
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किशोरियों में भी खून की कमी : लेखक सुषमा त्रिपाठी कहती हैं "इस तरह के स्तरहीन स्लोगन लिखने और लगवाने वालों से करवाया जाए रक्तदान." बता दें कि एमपी मे करीब 50 फीसदी महिलाएं और करीब 30 फीसदी किशोरियों में खून की कमी है. आठ फीसदी के लगभग गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं. आंकड़ा ये भी है कि हर पांचवीं गर्भवती महिला की मौत एमपी में खून की कमी की वजह से हो जाती है. हालात इतने खराब हैं कि प्रसूता की सबसे ज्यादा मौतों के मामले में एमपी देश में दूसरे नंबर पर है. पहला नंबर असम का है. देश में प्रति एक लाख प्रसव पर 173 मौतें दर्ज हुई हैं.