भोपाल। कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए देश में ढाई महीने के लॉकडाउन ने लोगों की जिंदगी को बदल दिया है. देश में अचानक हुए इस लॉकडाउन से हर वर्ग आर्थिक तंगी का शिकार हो गया है. लोगों ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी के किसी मोड पर उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ेगा. भोपाल से 30 किलोमीटर दूर पाटनी गांव से भी एक ऐसी ही तस्वीर सामने आई, जहां एक पढ़ी-लिखी युवती मजदूर बनने को मजबूर हो गई.
लॉकडाउन ने किया मजदूरी करने को मजबूर
लॉकडाउन के दौरान देशभर से दिल को झकझोर देने वाली तस्वीरें सामने आईं. प्रवासी मजदूरों की दयनीय हालत किसी से छिपी नहीं है. पाटनी गांव की रहने वाली रवीना मनरेगा के तहत गांव में मजदूरी कर रही हैं. रवीना के साथ ही उसकी दो बहनें भी अपने परिवार का सहारा बनने के लिए मजदूरी कर रही हैं. अपने गांव-घर से दूर रहकर रवीना सरकारी नौकरी की तैयारी में जुटी थी. रवीना के पिता बीमार हैं और घर में लॉकडाउन में परिवार के पास घर चलाने के लिए भी पैसे नहीं बचे तो रवीना को वापस लौटना पड़ा.
ये भी पढ़ें- कपड़ा गरीबी की चादर ओढ़े जीने को है मजबूर, दो वक्त की रोटी के लिए झेल रहे गरीबी का सितम
रवीना ने बताया कि लॉकडाउन से पहले वह गांव से दूर रहकर सरकारी परीक्षा के लिए तैयारी कर रही थी. उस दौरान रवीना ने SSC की परीक्षा भी पास कर ली थी. लेकिन फिजिकल में समस्या आ गई. रवीना ने हार नहीं मानी. हौसले तब भी बुलंद रहे और रवीना ने अपनी सरकारी परीक्षा की तैयारी जारी रखी. मगर लॉकडाउन होने के बाद उसे अपने गांव वापस आना पड़ा.
ये भी पढ़ें- भूख-धूप-प्यास सब अच्छी है साहब... बस अब घर जाना है !
इन दो महीनों में घर की हालत ऐसी हो गई कि कई रातें बिना खाए-पिए गुजारनी पड़ी. रवीना के लिए अपने भाई-बहनों को ऐसी हालत में देख पाना मुश्किल था, इसलिए उसने गांव के सरपंच से काम मांगा. गांव में मनरेगा के तहत काम आया, जिसमें गांव की कई महिलाएं काम करने लगी. रवीना ने भी मनरेगा के तहत मजदूरी का काम शुरू कर दिया.
ITI भी नहीं आया काम
रवीना की मानें तो उसने ITI भी किया ताकि भविष्य में अच्छा काम मिल सके. लेकिन ITI में कोई वैकेंसी नहीं निकली. जिसके बाद उसने ओपन यूनिवर्सिटी से पढ़ाई शुरू की और सरकारी नौकरी की तैयारी करने गांव से बाहर चली गई. रवीना अभी फाइनल ईयर की छात्रा हैं, इस दौरान मजदूरी करना उसके लिए आसान नहीं है. लेकिन कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता. यही सोचकर रवीना अपने परिवार का सहारा बनने के लिए मजदूरी का काम कर रही हैं, साथ ही पढ़ाई भी.
पढ़ाई के चलते जो संघर्ष रवीना ने किया उसे बताते हुए उनकी छलक आते हैं. एक समय ऐसा था जब पढ़ने के लिए रवीना के पास किताब और पेन भी नहीं था. लेकिन पढ़ने औऱ कुछ कर गुजरने के जज्बे ने उसके सपनों को मरने नहीं दिया. रवीना अब B.A. फाइनल ईयर की छात्रा हैं.
ये भी पढ़ें- कभी रतलाम की प्यास बुझाती थीं ये बावड़ियां, आज लड़ रहीं अपने अस्तित्व की जंग
रवीना को उसके माता-पिता का पूरा सपोर्ट है. अभी घर में रवीना के पिता बीमार हैं, जिसके चलते रवीना को मजदूरी करनी पड़ रही है. लॉकडाउन में परिवार भूखा न रहे इसलिए रवीना मनरेगा की मजदूर बन चुकी हैं. साथ ही अगर किसी खेत में उसे काम मिल जाता है तो कुछ पैसे कमाने के लिए वह काम भी करती हैं. लॉकडाउन के दौरान मजदूरी का काम कर रही रवीना हर किसी के लिए एक उदाहरण हैं. रवीना का मानना है कि उसके हौसलों में जान है औ़र हालात कितने भी कठिन हों उससे वो लड़ेगी और जीतेगी भी.