भोपाल। मध्य प्रदेश के धार जिले में डायनासोर के अंडों की खोज की गई है. यहां कई डायनासोर के अंडे मिले हैं. जिसके बाद से एक बार फिर डायनासोर के प्रजनन और उनकी उत्पत्ति आदि से पर्दा हट सकता है. इन सभी अंडों को भोपाल में चल रहे साइंस फेस्टिवल में प्रदर्शित किया गया है. यहां मौजूद धार जिले के विद्यालय में कार्यरत विशाल वर्मा ने बताया मध्य प्रदेश के धार जिले में डायनासोर के ढाई सौ से अधिक जीवाश्म अंडे और उसकी पैर की हड्डी का पता चला था. यह सभी अंडे बड़े डायनासोरों में से एक माने जाने वाले टाइटनोसौर के है. इनमें से कई अंडे मल्टीशेल हैं. जिसमें अंडे के अंदर अंडा होता है. जो पूरे विश्व में इस तरह का पहला अंडा माना गया है.
डायनासोर का जीवन: विशाल वर्मा बताते हैं कि, टाइटनोसौर से संबंधित जीवाश्म अंडों ओर घोसलों का पता चला था. घोंसले और अंडे लंबी गर्दन वाले डायनासोर के जीवन के बारे में जानकारी देते हैं, जो 66 मिलियन वर्ष से भी पहले नर्मदा घाटी क्षेत्र में घूमा करते होंगे. 2017 और 2020 के बीच क्षेत्र की जांच के दौरान पाया गया कि, धार जिले के बाग और कुक्षी क्षेत्र में डायनासोर की व्यापक हैचरी थी.
अंडे काफी भारी: डायनासोर के इन अंडो का वजन लगभग 10 से 15 किलो के आसपास है. ईटीवी ने इन्हें देखा तो पाया कि अंडे काफी भारी थे. थोड़ी देर ही रखो पाने के बाद इन्हें वापस इनके सुरक्षित स्थान पर रख दिया गया. वर्मा बताते हैं कि अंडे 15 सेंटीमीटर और 17 सेंटीमीटर के बीच के हैं. जो संभवत कई डायनासोर प्रजातियों के है. मध्यप्रदेश के धार में मिले मल्टीसेल अंडों के पीछे के कारण अंडे देने के लिए अनुकूल परिस्थितियों को खोजने में डायनासोर मां की अक्षमता हो सकती है.
नर्मदा घाटी में पाए गए घोंसले: धार जिले के उच्च माध्यमिक विद्यालय, बाकानेर में कार्यरत विशाल वर्मा ने बताया कि अंडे उस मुहाने से पाए गए थे. जहां टेथिस सागर का नर्मदा में विलय हुआ था. जब सेशेल्स भारतीय प्लेट से अलग हो गया था. सेशेल्स के अलग होने के कारण नर्मदा घाटी में 400 किलोमीटर अंदर टेथिस सागर घुस आया था. उन्होंने कहा कि नर्मदा घाटी में पाए गए घोंसले एक-दूसरे के करीब थे. आम तौर पर घोंसले एक दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित होते हैं.
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प्रजनन का रहस्य: इन्होंने बताया की विशेष रूप से अखाड़ा, ढोलिया रायपुरिया, झाबा, जमनियापुरा और पदल्या गांवों में इस रिसर्च को नर्मदा घाटी के लामेटा फॉर्मेशन में किया गया था. वर्मा बताते हैं कि इन अंडों की खोज के माध्यम से डायनासोर के प्रजनन के रहस्य से पर्दा उठ सकेगा. साथ ही यह भी पता चल सकेगा की डायनासोर की रीप्रोडक्टिव बायोलॉजी छिपकली, मगरमच्छ, कछुए या अन्य पक्षियों के समान थी.