भोपाल। शिवराज की सियासत के अंदाज को उस बयान में पकड़िए जब वो चुनावी साल में अपनी सालगिरह को सेवा के नाम करते हुए उसे मनाए जाने से इंकार करते हैं. कार्यकर्ताओं से अपील करते हैं कि उनके जन्मदिन पर होर्डिंग बैनर ना लगवाए जाएं. 15 महीने की कांग्रेस सरकार का बीच का वक्फा छोड़ दिया जाए तो 16 साल पर पहुंच रही लंबी सत्ता के बाद भी जनता के लिए सुलभ और आसान बने रहना सबसे मुश्किल है. शिवराज इस मुश्किल को हल करते बीजेपी की सत्ता की राह आसान करते जाते हैं. ये सालगिरह शिवराज के लिए इसलिए भी खास है, क्योंकि ये बरस तय करेगा कि उनकी कुंडली के बारहखानों में सत्ता का योग प्रबल है या कमजोर. हांलाकि राजनीति की बिसात पर खुद को दोहराने के बावजूद शिवराज 'मामा' की छवि को और अधिक मांजते दिखाई दे रहे हैं.
सादगी सेवा और सियासत: चुनावी साल में जब लाड़ली बहना योजना की लांचिंग के साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान के जन्मदिन को एतिहासिक बनाए जाने की तैयारी चल रही हो. लाखों की तादात मे पौधारोपण का प्लान हो. तब शिवराज का ये संदेश कि वो अपनी सालगिरह नही मनाएंगे. वो सालगिरह को सेवा के नाम करते हुए कहते हैं कि उनके जन्मदिन पर पौधे लगाए जाएं, बैनर और होर्डिंग नहीं. चुनावी साल में मुद्दों को बनने से पहले मात देते शिवराज जानते हैं कि कौन सा समय किस बात के लिए मुफीद है. तो उनके इस फैसले को भी चुनावी साल में सोच समझकर खेले गए चुनावी दांव की तरह देखा जाए.
मामा की छवि में नया निखार: 2005 में मध्यप्रदेश की सत्ता संभालने के बाद पांव पांव वाले भैय्या शिवराज ने राजनीति में जो रिश्तों की जो नई इबारत लिखी. उसे बार बार लगातार दोहराना सियासी चूक भी हो सकती थी. ये भी हुआ कि कांग्रेस ने उसी छवि को टारगेट करते हुए शिवराज को निशाना बनाया. लेकिन शिवराज पांचवी पारी की तैयारी में भी उसी छवि को नए रंग रोगन के साथ पेश कर रहे हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर बहन और बेटियों से आस लगाई है. और फिर दांव पर शिवराज की भाई और मामा की छवि है. नई महिला वोटर के सथ ये उस वोट बैंक पर भरोसा है. 2013 से 2018 तक ईवीएम मशीन पर जिस महिला वोटर का वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है.
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शिवराज आउट ऑफ नेटवर्क नहीं: शिवराज की यूएसपी उनका सहज सरल गंवई अंदाज. बुद्धिजीवी चर्चाओं में भले कहा जाए कि शिवराज अब मोनोटोनस हो रहे हैं. लेकिन गांव में वो उसी शैली से भीड़ को मिकनातीस की तरह अपनी ओर खींचते हैं. शिवराज की काबिलियत ये कि इन पंद्रह सालों में उन्होंने मीडिया से भले उतनी सुगमता ना रखी हो. लेकिन जनता तक हमेशा ये संदेश पहुंचाया कि उनके प्रदेश का मुख्यमंत्री सहज सरल होने के साथ सुलभ भी है. और संवाद शैली भी ऐसी कि मुख्यमंत्री उन्हें अपने गांव कस्बे का दिखाई दे. शिवराज से जनता की कनेक्टिविटी की सबसे बड़ा फार्मूला यही है. शिवराज अब मध्यप्रदेश में उस लकीर पर खड़े हैं. विरोध और समर्थन हो सकता है लेकिन नजर अंदाज करने की कोई गुंजाइश नही हैं.