भोपाल। 2023 के विधानसभा चुनाव में टिकट के ऐलान के साथ चौंका रही बीजेपी अभी कुछ और झटके देने की तैयारी में है. उम्मीद से बिल्कुल उलट दांव खेल रही पार्टी क्या मध्य प्रदेश की चुनावी फिल्म को बगैर हीरो के हिट कराने का मूड बनाए बैठी है. क्या ये मान लिया जाए कि शिवराज सिंह चौहान से जनता के पहले पार्टी ऊब गई है. मध्य प्रदेश में लाडली बहन बेटियों के साथ परिवार खड़ा कर रहे शिवराज सिंह चौहान को एन चुनाव में दरकिनार कर पाना पार्टी के लिए इतना आसान होगा क्या. 230 में से 79 सीटों पर उम्मीवार का एलान कर चुकी पार्टी ने दूसरी सूची में जब दिग्गज उतारे, तब शिवराज का नाम उस सूची में क्यों नहीं था. सत्ता में फिर हम ही आएंगे के आत्मविश्वास से चलने वाले शिवराज के दरकिनार को क्या समझा जाए. क्या वाकई शिवराज सिंह चौहान की एमपी में रिकार्ड तोड़ पारी पर विराम लगने वाला है. (MP Assembly Election 2023)
जो नाम तारण हार...उसी से किनारा : 2006 में उपचुनाव जीतने के बाद से शिवराज लगातार बीजेपी के तारणहार ही बन गए. फिर 2008 के विधानसभा चुनाव में लाड़ली लक्ष्मी योजना के प्रयोग से पार्टी को मिली जीत और लगे-लगे 2013 के चुनाव में बीजेपी की हैट्रिक के कर्णधार बनें शिवराज. इसी पार्टी में वे कभी इस हैसियत में थे कि उनकी मर्जी से सत्ता और संगठन के फैसले होते थे. 2018 के चुनाव में जो डेंट बीजेपी को लगा भी, तो 2020 में पार्टी ने वापसी के लिए शिवराज की तरफ ही देखा. पार्टी के ट्रस्टेड और टेस्टेड शिवराज ही थे, जहां जीत की गारंटी थी. शिवराज ने 28 सीटों के उपचुनाव में इसे साबित भी कर दिया कि चेहरे कोई खड़े हो जाएं चुनाव में जनता मामा के चेहरे पर वोट देती है.
पीएम मोदी की जुबान से उतरा शिवराज का नाम : तो क्या वो मजबूरी थी पार्टी की. फिर अब जिस अंदाज में हाईकमान शिवराज से पेश आ रहा है, जिस तरह से जनआर्शीवाद यात्रा और फिर उनके नाम से भी परहेज किया जा रहा है क्या ये किनारा नहीं है. सवाल ये भी है कि मामा मैजिक को देख चुकी पार्टी बीच चुनाव में इतना बड़ा जोखिम लेने को तैयार होगी. बाकी पीएम मोदी की जुबान से उतरा शिवराज का नाम कांग्रेस के दिल्ली से आए नेताओं की जुबान पर चढ़ा हुआ है और इस अंदाज में कि कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता रागिनी नायक कह रही हैं कि जिन शिवराज के नाम से बीजेपी बच रही है उन पर जनता कैसे यकीन कर लेगी.
कार्यकर्ता में है शिवराज के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी : वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं "ये सही है कि कार्यकर्ता महाकुंभ में शिवराज सिंह चौहान, नहीं तो लाड़ली बहना योजना का जिक्र जरूरी किया जाना चाहिए था जो कि एमपी में गेम चैंजर के अंदाज में बीजेपी सरकार लाई है. लेकिन सवाल ये है कि क्या एमपी में शिवराज को माइनस कर पाना इतना आसान है. क्योंकि पीएम मोदी और योगी के बाद शिवराज वो चेहरा हैं जिनका खुद का वोट बैंक है. जिन्हें व्यक्तिगत रूप से लोग पसंद करते हैं. लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं कि शिवराज सिंह चौहान को एमपी में लंबा समय हो चुका है.
जनता में भले एंटी इन्कमबेंसी उनके नाम को लेकर न हो, लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच है. बीजेपी ने उसे ही खत्म करने के लिए उनके समकालीन और सीएम पद के दावेदार चुनाव मैदान में उतारे हैं ताकि पार्टी कार्यकर्ता को यकीन हो सके कि विकल्प हैं. असल में शिवराज सिंह चौहान की पूरी सरकार अधिकारियों के दम पर चली. कार्यकर्ता हाशिए पर रहे. राजनीतिक नियुक्तियां हुई नहीं. इस सबकी वजह से कार्यकर्ता नाराज हैं. जो अभी बीजेपी में दिखाई दे रहा है वो सारी कोशिश कार्यकर्ता की नाराजगी को कम करने की है.