भोपाल। गुजरात में हुए चुनावी नतीजों से मध्यप्रदेश बीजेपी को राहत मिलती दिखाई दे रही है. गुजरात में इस बार ट्राइबल वोट बैंक ने बीजेपी को चुना है. जिसका नतीजा रहा कि आदिवासी बाहुल्य 27 सीटों में से 23 में बीजेपी ने जीत हासिल की. यहां बीजेपी संगठन को भी लग रहा है कि जिस तरह से मोदी सरकार आदिवासियों के लिए काम कर रही है. उससे मध्यप्रदेश में 2023 के चुनावों में आदिवासी वोटर्स बीजेपी को चुनेंगे. हालांकि शिवराज सरकार का फोकस भी आदिवासी वोट बैंक हैं. जिस तरह से एमपी आदिवासी युवाओं के लिए रोजगार, उनके लिए वाहन लोन के साथ अन्य सुविधाएं और चुनाव के पहले आदिवासियों को और ताकतवर बनाने के लिए पेसा एक्ट लाया गया है. इन सबके बाद सत्ता और संगठन को लगने लगा है कि यहां का आदिवासी भी बीजेपी को वोट देगा.
गुजरात के नतीजों से भाजपा उत्साहितः पिछले दो दशक के चुनावी रुझान ये बता रहे हैं कि गुजरात के आदिवासियों का चुनावी रुझान मप्र की ट्राइबल सीटों से प्रभावित है. पिछली बार गुजरात में आदिवासी वोटर्स ने बीजेपी को उतने वोट नहीं डाले जितने इस बार डाले थे. उसी तरह का प्रभाव मप्र की सीटों पर पड़ा और आदिवासियों का वोट कांग्रेस को गया. 2018 में आदिवासियों में जनाधार खिसकने से ही भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था. ऐसे में गुजरात के नतीजों ने भाजपा को उत्साहित कर दिया है.
प्रदेश की 230 में से 47 सीटें आरक्षितः मध्यप्रदेश में सीधे और परोक्ष रूप से आदिवासी वोटर 88 सीटों को प्रभावित करता है. जिसमें से 47 सीटें तो पूरी तरह आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. इन सीटों पर यह वर्ग निर्णायक भूमिका अदा करता है. यही कारण है कि भाजपा पिछले डेढ़ साल से ट्राइबल वोटर्स को लुभाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.
गुजरात से सटी आदिवासी सीटो पर नजरः गुजरात में आदिवासी मतदाताओं के चुनावी ट्रेंड को देखते हुए मध्यप्रदेश भाजपा अपनी कवायद में जुट गई है. मध्यप्रदेश के झाबुआ-आलीराजपुर जिले की सीमा से लगने वाले गुजरात के दाहोद जिले की आरक्षित आदिवासी बहुल विधानसभा सीटें मप्र की सीमा से सटी हुई हैं. भौगोलिक रूप से उनके बीच राज्य की सीमा अलग-अलग है, लेकिन उनकी भाषा, परंपराएं और संस्कृति मिलती-जुलती है. इन जिलों के आदिवासियों में आपसी रिश्तेदारी भी है.इसपर बीजेपी ने काम करना शुरू कर दिया है.
जयस ने बीजेपी की चिंता बढ़ाईः मप्र में इस बार आदिवासी संगठन जयस की चुनौती को लेकर भी भाजपा सतर्क है. यहां ट्राइबल आबादी 22 फीसदी से अधिक है. आदिवासी अंचलों में भाजपा का वोट शेयर 2013 में सर्वाधिक 45.7 फीसदी था, जो कि 2018 में घटकर 41.5 रह गया. इस कारण भाजपा को 15 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 42.5 और 2008 में 37.6 प्रतिशत वोट मिले थे. भाजपा इस बार 57 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने के लिए पसीना बहा रही है. हालांकि जयस इस बार आदिवासी युवाओं को टिकट देकर 80 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली है. जयस गठबंधन करके चुनाव लड़ेगा जिसपर बीजेपी के साथ कांग्रेस की भी नजर है.
बीजेपी क्या सोचती हैः बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कहना है की बीजेपी सरकार ने आदिवासियों के लिए काफी कुछ सोचा है. उनके लिए कई योजनाएं बनाई और पेसा एक्ट, जो कि उनके हकों को दिलाएगा उसे लागू करने जा रही है. कांग्रेस ने आदिवासियों को सिर्फ वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया है. उनके समाज के लिए कुछ भी नहीं किया.
कांग्रेस की क्या है रणनीतिः कांग्रेस का भरोसा कमलनाथ पर है. आदिवासियों का विश्वास जीतने में कमलनाथ सफल रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि आदिवासियों के लिए कमलनाथ ने बहुत किया है और उनके उत्थान के लिए जमीनी स्तर पर काम किया है. जिसका नतीजा ये रहा की 15 साल की बीजेपी सरकार को आदिवासियों ने नकार दिया और अब फिर आदिवासी कांग्रेस को ही चुनेंगे.