भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासत का केंद्र इस वक्त आदिवासी हैं. आदिवासी संगठन जयस ने बीजेपी और कांग्रेस के होश उड़ा दिए हैं. जयस संगठन के संरक्षक और विधायक हीरालाल अलावा ने 2023 में प्रदेश की 80 विधानसभा चुनावों में आदिवासी युवाओं को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया है. 2018 में कांग्रेस को आदिवासियों का खूब समर्थन मिला और जयस के समर्थन से कांग्रेस ने आदिवासियों का दिल जीता, लेकिन अब आदिवासियों युवा संगठन ने कांग्रेस से नाता तोड़ने का फैसला कर लिया है.
आदिवासी प्रभावित 80 सीटों पर प्रत्याशी उतारेगा जयसः 2023 के चुनाव जयस अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है जयस. खास तौर से जयस की नजर उन सीटों पर है जिन सीटों पर आदिवासियों का प्रभाव है. अभी अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. जयस ओबीसी महासभा, माझी समाज, एमआईएमआईएम सहित अन्य सामाजिक संगठनों के साथ बातचीत कर मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. जयस संरक्षक हीरालाल अलावा कहना है कि आदिवासी युवाओं को विधानसभा और लोकसभा में मौका दिया जाए. इसलिए ये फैसला लिया गया है कि विधानसभा की 80 सीटों पर जयस अपने प्रत्याशी उतारेगी. आदिवासी संगठन ने भोपाल में 10 दिसंबर को सभी संगठनों की बैठक बुलाई गई है, जिसमे आगे की रणनीति बनाई जाएगी.
कांग्रेस को अधिक होगा आदिवासी वोटरों का नुकसानः जयस के मैदान में आने से बीजेपी के बजाय कांग्रेस को ज्यादा खतरा है, क्योंकि आदिवासी वोट का नुकसान कांग्रेस को ज्यादा होगा. हालांकि बीजेपी को भी जयस से खतरा है, लेकिन फिलहाल चिंता उसे नहीं बल्कि कांग्रेस को ज्यादा है. कांग्रेस सीधे तौर पर जयस का विरोध नहीं कर रही है, लेकिन उसे लगता है आदिवासी युवा सजग है और वो अपना वोट का इस्तेमाल सोच समझ कर करेगा.
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भाजपा का मानना जयस से आदिवासियों भंग हो चुका है मोहः दूसरी ओर बीजेपी कहना है, कि जयस से अब आदिवासियों का मोह भंग हो गया है, बीजेपी महामंत्री भगवानदास सबनानी ने कहना है कि आदिवासियों के लिए पेसा एक्ट लागू किया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ-साथ मोदी सरकार की योजनाओं का लाभ भी आदिवासियों को मिल रहा है. वहीं कांग्रेस विधायक अशोक मर्सकोले कहना है कि उनकी पार्टी ने आदिवासियों पर ध्यान दिया है और आदिवासियों का साथ कांग्रेस के साथ है.
आदिवासियों की 89 सीटों पर निर्णायक भूमिकाः प्रदेश में आदिवासियों की बड़ी आबादी होने से 230 विधानसभा में से 89 सीटों पर उनका सीधा प्रभाव है. 2013 में इनमें से बीजेपी को 59 सीटों पर जीत मिली थी. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 84 में से 34 सीट पर जीत मिली थी. उसकी 25 सीटें कम हो गईं थीं. इस वजह से बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थी. वहीं, कांग्रेस के खाते में 15 सीट आईं थीं. 2018 के चुनाव में आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा सिर्फ 16 पर ही जीत दर्ज कर सकी. कांग्रेस ने 30 सीटें जीत मिली थीं.