भोपाल। क्या है कांग्रेस का फार्मूला 66. एमपी की 230 विधानसभा सीटों के बजाए क्यों 66 सीटों पर कांग्रेस पूरी ताकत लगा रही है (Congress 66 Formula). क्या दशकों से हार रही सीटों का समीकरण बदल पाना इतना आसान होगा. इन सीटों पर कांग्रेस की हताशा और हार का उपसंहार बदलने दिग्विजय सिंह के धुआंधार दौरे कितना और क्या असर दिखा पाएंगे. हाथ से फिसलती रही सीटों पर पहुंचे ऑब्जर्वर क्या कांग्रेस को राईट च्वाइस दे पाएंगे. इन 66 सीटों पर दिग्विजय सिंह टीम कौन सी नई रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं.
230 पर जीत से पहले कांग्रेस का फार्मूला 66: साल 2023 के चुनाव में कई फार्मूलों पर चल रही कांग्रेस में चुनाव से पहले जनता के लिए पांच गारंटी का प्रयोग ही नहीं किया जा रहा. चुनावी साल शुरू होते ही पार्टी में उन 66 सीटों पर मेहनत शुरू हो गई है. जो कांग्रेस के हाथ से फिसलती रही है. कांग्रेस का हाथ छोड़ती रही इन सीटों को कांग्रेस के साथ लाना क्या इतना आसान होगा. 2018 के विधानसभा चुनाव में संगत में पंगत के प्रयोग से कांग्रेस संगठन को मजबूत कर चुके दिग्विजय सिंह अब इन 66 सीटों की नब्ज तलाशने दौरे कर चुके हैं. पार्टी के लीकेज सुधारने के साथ इस मकसद से किए गए ये दौरे कि आखिर चूक हो कहां रही है. दिग्विजय सिंह का पिछली बार संगत में पंगत का प्रयोग सफल रहा था, लेकिन क्या इस बार जामवंत बनकर कार्यकर्ता को उनकी ताकत याद दिलाने गए दिग्विजय तस्वीर बदल पाएंगे. जानकारी के मुताबिक दिग्विजय सिंह जिन विधानसभा क्षेत्रों के दौरे पर होते हैं, वहां उनकी टीम पहले पहुंचती है. जो पार्टी के जमीनी हालात कार्यकर्ताओं की नाराजगी को भांपने के साथ बीजेपी के असर और विधायक की स्थिति की पूरी डिटेल रिपोर्ट तैयार करती है. दिग्विजय सिंह यहां कार्यकर्ता सम्मेलन में इस फीडबैक का भी इस्तेमाल करते हैं.
66 सीटों का सीन बदलकर कैसे होगी जीत पक्की: कांग्रेस ने शुरुआत से उन 66 सीटों पर फोकस इसलिए जमाया है, क्योंकि ये सीटें दशकों से बीजेपी का मजबूत गढ़ बन चुकी है. इनमें गोपाल भार्गव की सीट रहली से लेकर कैलाश विजयवर्गीय के प्रभाव वाली इंदौर 2 सी इसके अलावा मंदसौर, महू, जबलपुर कैंट से लेकर सिवनी, मालवा शिवराज सिंह चौहान की बुधनी से लेकर सीहोर सीट. देवास खातेगांव के साथ कैलाश जोशी का इलाका बागली. हिम्मत कोठारी का रतलाम नीमच जावद ये वो सीटे हैं, जहां बीजेपी के दिग्गज दशकों से जमे हुए हैं. इनमें भोपाल की गोविंदपुरा और बैरसिया सीट भी है. बीजेपी के लिए अगर ये सीटें जीत की गारंटी है, तो कांग्रेस के लिए इन्हीं सीटों पर सबसे बड़ा इम्तेहान है. असल में काग्रेस की रणनीति ये है कि लगातार कांग्रेस के हाथ से फिसलती रही इन सीटों का सियासी मिजाज अगर पार्टी ने बदल दिया तो एमपी में कांग्रेस की जीत उतनी ही मजबूत और आसान हो जाएगी. वजह ये है कि इन सीटों पर जीत के मायने हैं बीजेपी के किले में पक्की सेंध. कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक पार्टी लक्ष्य लेकर चल रही है कि अगर 66 सीटों में से आधी सीटों पर भी कांग्रेस की जीत दर्ज होती है तो एमपी में कांग्रेस की सत्ता में वापसी बेहद आसान हो जाएगी. (Know What is 66 Formula)
66 सीटों पर उम्मीदवार के लिए कई दौर का मंथन: कांग्रेस में यूं तो 230 सीटों पर उम्मीदवारी तय सर्वे के बाद होगी, लेकिन इन 66 सीटों को लेकर तो पार्टी ने काफी पहले ही ऑब्जर्वर तैनात कर दिए हैं. (MP Chunav 2023) दिल्ली से लेकर गुजरात और पार्टी के उत्तराखंड के नेताओं को ये जवाबदारी दी गई है. ताकि पार्टी के किलेदारों का टिकट बंटवारे में दखल पूरी तरह से खत्म हो सके. भोपाल और होशंगाबाद इलाके की सीटें दिल्ली से आए कांग्रेस नेता सुभाष चोपड़ा संभाले हैं. सिंधिया के झटके के बाद ग्वालियर चंबल भी बड़ी चुनौती है, यहां हिमाचल के कांग्रेस नेता कुलदीप राटौर बतौर पर्यवेक्षक जमीन देख रहे हैं. महाकौशल और विंध्य में उत्तराखंड के नेता प्रदीप टम्ट मोर्चा संभाले हैं. गुजरात से आए कांग्रेस नेता अर्जुन माढवाडाय को मालवा निमाड़ का मोर्चा संभालने कहा गया है.
66 में से आधी सीट भी जीतीं तो कांग्रेस फायदे में: कांग्रेस विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने कहा है ये 66 वो सीटें हैं, जो बीजेपी का मजबूत गढ़ रही हैं. लेकिन यहां का वोटर अब बदलाव चाहता है, ये महसूस हो रहा है. पीसीसी चीफ कमलनाथ के छाते के नीचे पूरी कांग्रेस मेहनत कर रही है और खुद दिग्विजय सिंह इन 66 सीटों पर पहुंच रहे हैं. असल में इन 66 सीटों का गणित ये है कि अगर इसमें से आधी सीटें भी अगर कांग्रेस जीत लेती है तो पार्टी के खाते में ये बड़ा गेन होगा.