भोपाल। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस द्वारा जीत के अपने-अपने दावे किए जा रहे हैं...लेकिन चुनाव मैदान में उतरे कई बागी कई सीटों पर दोनों ही पार्टियों की जीत-हार के गणित गड़बड़ा सकते हैं. प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के करीब 74 नेताओं ने बगावत की है. इनमें से कई बतौर निर्दलीय या फिर दूसरी पार्टी ने चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं. इनमें से एक दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटों पर यह बागी प्रत्याशी बीजेपी-कांग्रेस के लिए सिरदर्द बने हुए हैं.
बीजेपी कांग्रेस के करीबन 74 बाकी मैदान में: 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरने वाले कई नेताओं ने बीजेपी-कांग्रेस के आंकड़ों को गड़बड़ा दिया था. कई सीटों पर निर्दलीय बागी जीतकर भी आए. कमोवेश ऐसी ही स्थिति मौजूदा विधानसभा चुनाव में भी दिखाई दे रही है. टिकट न मिलने से नाराज होकर बगावत का रास्ता चुनने वाले 39 नेताओं को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखाया है. इसी तरह बीजेपी ने भी 35 नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया है. यह नेता अब चुनावी मैदान में हैं...कोई निर्दलीय चुनाव लड़ रहा है, तो कोई सपा, बसपा और आप जैसी पार्टियों से चुनाव मैदान में है. माना जा रहा है कि करीब एक दर्जन से ज्यादा नेता बीजेपी-कांग्रेस को सीधे तौर से नुकसान पहुंचा सकते हैं.
बीजेपी के यह नेता पार्टी के लिए बने चुनौती: बीजेपी से बगावत करने वाले आधा दर्जन से ज्यादा नेता बीजेपी का चुनावी गणित गड़बड़ा सकते हैं. इनमें बुरहानपुर, सीधी, मुरैना, भिंड, राजनगर, सतना जैसी सीटों पर बागियों ने चुनाव को चुनौतीपूर्ण बना दिया है. राजनगर विधानसभा से खजुराहो विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष घासीराम पटेल टिकट न मिलने से नाराज होकर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. उनके चुनाव मैदान में उतरने से चुनाव त्रिकोणीय हो गया है. बीजेपी से यहां अरविंद पटेरिया जबकि कांग्रेस से नाती राजा चुनाव मैदान में हैं. 2018 के चुनाव में कांग्रेस 732 वोटों से चुनाव जीती थी.
- सतना विधानसभा सीट से बीजेपी के पूर्व जिला उपाध्यक्ष रत्नाकर चतुर्वेदी बसपा से चुनाव मैदान में हैं. उनकी मौजूदगी से बीजेपी उम्मीदवार और चार बार के सांसद गणेश सिंह के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है.
- भिंड विधानसभा में टिकट न मिलने से बीजेपी विधायक संजीव सिंह बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं. यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. बीजेपी से नरेन्द्र कुशवाहा, जबकि कांग्रेस से राकेश सिंह चतुर्वेदी मैदान में है.
- मुरैना विधानसभा सीट से बीजेपी के पूर्व मंत्री रूस्तम सिंह के बेटे राकेश सिंह बागी होकर बसपा से उम्मीदवार हैं. उनकी मौजूदगी से बीजेपी के रघुराज कंसाना की मुश्किल बढ़ गई है.
- बुरहानपुर से बीजेपी उम्मीवार अर्चना चिटनिस 2018 की तरह फिर बागावत से मुश्किल में हैं. इस बार पांच बार के सासंद नंद कुमार चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह निर्दलीय मैदान में हैं. 2018 में कांग्रेस के बागी सुरेन्द्र सिंह शेरा ने बगाबत की थी और चुनाव जीते थे.
- सीधी विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला निर्दलीय मैदान में हैं. इससे चुनाव मैदान में उतरी सांसद रीति पाठक की परेशानी बढ़ गई है.
- भोपाल उत्तर विधानसभा सीट से कांग्रेस नेता नासिर इस्लाम और आमिर अकील निर्दलीय मैदान में उतरे हैं. इससे कांग्रेस के सामने अपनी परंपरागत सीट बचाना मुश्किल हो गई है. कांग्रेस नेताओं की बगावत से मुस्लिम बहुल इस सीट पर बीजेपी को जीत की उम्मीद जाग गई है.
- कटनी विधानसभा सीट से बड़वारा सीट से बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री मोती कश्यप निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. 2018 में वे चुनाव हार गए थे. बोहरीबंद सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे शंकर महतो ने टिकट के लिए बीजेपी फिर कांग्रेस में पहुंचे थे.
- नागौर विधानसभा सीट से कांग्रेस के पूर्व विधायक यादवेन्द्र सिंह बसपा से चुनाव मैदान में उतरे हैं. 2018 में वे 1133 वोटों से हारे थे. उनकी मौजूदगी से कांग्रेस की रश्मि सिंह की मुश्किल बढ़ सकती है.
- शिवपुरी की पोहरी विधानसभा सीट से कांग्रेस नेता प्रद्युम्न वर्मा बसपा से चुनाव मैदान में हैं. 2018 के चुनाव में इस सीट पर बसपा दूसरे नंबर पर रही थी.
- इनके अलावा सिवनी मालवा से ओम रघुवंशी, होशंगाबाद से भगवती चौरे, आलोट से प्रेमचंद्र गुड्डू, गोटेगांव से शेखर चौधरी, बड़नगर से राजेन्द्र सिंह सोलंकी, धार से कुलदीप सिंह बुंदेला, खरगापुर से कांग्रेस के अजय यादव, मल्हारगढ़ से श्यामलाल जोकचंद निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. जो बीजेपी कांग्रेस के लिए परेशान बन गए हैं.
क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार: राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस विधानसभा चुनाव में बागी होकर चुनाव मैदान में उतरे करीब 40 प्रत्याशी बीजेपी-कांग्रेस की जीत-हार का गणित बिगाड़ सकते हैं. राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल कहते हैं कि करीब 40 बागी उम्मीदवार ऐसे मैदान में हैं, जो दमदार हैं और वोट काटने की क्षमता रखते हैं. यदि इन्होंने 4 हजार वोट ही काट लिए तो नुकसान उसे होगा, जिसके वह बागी है. तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो बागी प्रत्याशी कांग्रेस के ज्यादा हैं. इस बार चुनाव पार्टी की विचारधारा, घोषणाओं के अलावा स्थानीय उम्मीदवार और बागी पर केन्द्रित होता रहा है.