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शिवराज-'महाराज' को राहतः HC में 14 मंत्रियों के खिलाफ लगी दल-बदल की याचिका खारिज - जबलपुर न्यूज

शिवराज सरकार को जबलपुर हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है.कोर्ट ने कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए विधायकों को मंत्री बनाने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है.

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शिवराज-'महाराज'
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Published : Feb 3, 2021, 2:59 AM IST

जबलपुर। शिवराज सरकार को हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है. जबलपुर हाईकोर्ट में उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें सिंधिया समर्थक मंत्रियों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करने की मांग की गई थी. मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई. इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता छिंदवाड़ा निवासी अधिवक्ता आराधना भार्गव की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा.

'अनुच्छेद 164 का हुआ उल्लंघन'

उन्होंने दलील दी कि मार्च, 2020 में कांग्रेस के 22 विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. विधायक पद से इस्तीफा देने वाले तुलसीराम सिलावट, बिसाहूलाल सिंह, एंदल सिंह कंषाना, गोविंद सिंह राजपूत, इमरती देवी, डॉ प्रभुराम चौधरी, डॉ महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, हरदीप सिंह डंग, राज्यवर्धन सिंह, बृजेंद्र सिंह यादव, गिर्राज दंडोतिया, सुरेश धाकड़ व ओपीएस भदौरिया को मंत्री बना दिया गया. इसमें संविधान के अनुच्छेद 164 का उल्लंघन हुआ है.

अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने बेंच के सामने तर्क रखा कि संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत मंत्री बनाए जाने के लिए विधायक होना जरूरी है. लेकिन उक्त 14 मंत्रियों में से कोई भी विधायक नहीं रहा. विशेष परिस्थितियों में मुख्यमंत्री किसी विद्वान, किसी विषय विशेष के विशेषज्ञ या ऐसे किसी व्यक्ति को जिसे मंत्री बनाया जाना आवश्यक हो, मंत्री नियुक्त कर सकता है. लेकिन प्रदेश में ऐसी परिस्थितियां न होने के बावजूद मनमानी तरीके से उक्त 14 लोगों को विधायक न होते हुए भी मंत्री बना दिया गया. जिन लोगों ने खुद विधायक रहना नहीं चाहा और जनता के चुने हुए पद से इस्तीफा दे दिया, उन्हें मंत्री बनाया जाना संविधान के अनुच्छेद 164 का सीधा उल्लंघन है. विशेष परिस्थितियां भी एक या दो लोगों के लिए हो सकती हैं, 14 लोगों के लिए एक साथ नहीं.

'जनहित याचिका का कोई औचित्यहीन नहीं'

राज्य सरकार की तरफ से उप महाधिवक्ता स्वप्निल गांगुली ने तर्क दिया कि प्रदेश में नए चुनाव हो चुके हैं. इसलिए अब जनहित याचिका का कोई औचित्य नहीं है. सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने साफ किया कि इस्तीफा देने वाले 14 पूर्व विधायकों ने चुनाव जीतकर नए सिरे से मंत्री पद की शपथ ले ली है. जबकि चुनाव हारने वाले मंत्री पद छोड़ चुके हैं. लिहाजा, जनहित याचिका औचित्यहीन हो चुकी है. अब इस पर आगे सुनवाई की जरूरत न समझते हुए इसका पटाक्षेप किया जाता है.

'कांग्रेस अरमानों पर फिरा पानी'

हाईकोर्ट के इस निर्णय से जहां शिवराज सरकार ने चैन की सांस ली है. वहीं कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. कुछ दिन पहले ही जीतू पटवारी ने इसी मामला का हवाला देकर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का संकेत दिया था. बीजेपी में महाकौशल और विंध्य में कुछ विधायकों की नाराजगी और दल-बदल करने वाले विधायकों के प्रकरण में उनके खिलाफ फैसला आने पर कांग्रेस आस लगाए बैठी थी.

जबलपुर। शिवराज सरकार को हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है. जबलपुर हाईकोर्ट में उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें सिंधिया समर्थक मंत्रियों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करने की मांग की गई थी. मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई. इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता छिंदवाड़ा निवासी अधिवक्ता आराधना भार्गव की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा.

'अनुच्छेद 164 का हुआ उल्लंघन'

उन्होंने दलील दी कि मार्च, 2020 में कांग्रेस के 22 विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. विधायक पद से इस्तीफा देने वाले तुलसीराम सिलावट, बिसाहूलाल सिंह, एंदल सिंह कंषाना, गोविंद सिंह राजपूत, इमरती देवी, डॉ प्रभुराम चौधरी, डॉ महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, हरदीप सिंह डंग, राज्यवर्धन सिंह, बृजेंद्र सिंह यादव, गिर्राज दंडोतिया, सुरेश धाकड़ व ओपीएस भदौरिया को मंत्री बना दिया गया. इसमें संविधान के अनुच्छेद 164 का उल्लंघन हुआ है.

अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने बेंच के सामने तर्क रखा कि संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत मंत्री बनाए जाने के लिए विधायक होना जरूरी है. लेकिन उक्त 14 मंत्रियों में से कोई भी विधायक नहीं रहा. विशेष परिस्थितियों में मुख्यमंत्री किसी विद्वान, किसी विषय विशेष के विशेषज्ञ या ऐसे किसी व्यक्ति को जिसे मंत्री बनाया जाना आवश्यक हो, मंत्री नियुक्त कर सकता है. लेकिन प्रदेश में ऐसी परिस्थितियां न होने के बावजूद मनमानी तरीके से उक्त 14 लोगों को विधायक न होते हुए भी मंत्री बना दिया गया. जिन लोगों ने खुद विधायक रहना नहीं चाहा और जनता के चुने हुए पद से इस्तीफा दे दिया, उन्हें मंत्री बनाया जाना संविधान के अनुच्छेद 164 का सीधा उल्लंघन है. विशेष परिस्थितियां भी एक या दो लोगों के लिए हो सकती हैं, 14 लोगों के लिए एक साथ नहीं.

'जनहित याचिका का कोई औचित्यहीन नहीं'

राज्य सरकार की तरफ से उप महाधिवक्ता स्वप्निल गांगुली ने तर्क दिया कि प्रदेश में नए चुनाव हो चुके हैं. इसलिए अब जनहित याचिका का कोई औचित्य नहीं है. सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने साफ किया कि इस्तीफा देने वाले 14 पूर्व विधायकों ने चुनाव जीतकर नए सिरे से मंत्री पद की शपथ ले ली है. जबकि चुनाव हारने वाले मंत्री पद छोड़ चुके हैं. लिहाजा, जनहित याचिका औचित्यहीन हो चुकी है. अब इस पर आगे सुनवाई की जरूरत न समझते हुए इसका पटाक्षेप किया जाता है.

'कांग्रेस अरमानों पर फिरा पानी'

हाईकोर्ट के इस निर्णय से जहां शिवराज सरकार ने चैन की सांस ली है. वहीं कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. कुछ दिन पहले ही जीतू पटवारी ने इसी मामला का हवाला देकर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का संकेत दिया था. बीजेपी में महाकौशल और विंध्य में कुछ विधायकों की नाराजगी और दल-बदल करने वाले विधायकों के प्रकरण में उनके खिलाफ फैसला आने पर कांग्रेस आस लगाए बैठी थी.

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