भोपाल। 2023 के विधानसभा चुनाव में एमपी में सीधे 80 सीटों पर असर रखने वाला आदिवासी वोटर निर्णायक है और इस वोटर पर पकड़ रखने वाला जयस जैसा आदिवासी संगठन कांग्रेस और बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकता है. आदिवासियों के बीच किस रणनीति पर जयस अपनी चुनावी जमीन बना रहा है. आदिवासी की ताकत लिए जयस संगठन 2023 में किसकी ताकत बनेगा, हीरालाल अलावा की सामाजिक संगठनों के साथ छोटे दलों को एकजुट करने के पीछे की राजनीति क्या है. जयस के संरक्षक और विधायक डॉ हीरालाल अलावा से ईटीवी भारत ने कई मुद्दों पर बात की.
युवा आदिवासी के हाथ में सौंपेगे कमान: ईटीवी भारत से बातचीत में हीरालाल अलावा ने बताया कि जयस अब आदिवासियों के बीच युवा नेतृत्व तैयार कर रहा है. जयस प्रदेश में 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की जो तैयारी कर रहा है, उसमें भी आदिवासी समाज के पढ़े लखे नौजवानों को मौका दिया जाएगा. मकसद ये है कि आदिवासी समाज से भी राजनीति नेतृत्व खड़ा किया जा सके. हीरालाल अलावा कहते हैं जब आदिवासी समाज की राजनीतिक निर्णय में भागीदारी बढ़ेगी तब ही इस समाज की दशा बदलेगी, अब तक तो कांग्रेस हो या बीजेपी सब ने आदिवासियों को केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है. अलावा कहते हैं हमारी प्लानिंग ये है कि अगले विधानसभा चुनाव में हम ज्यादा से ज्यादा टिकट आदिवासी युवाओं को ही देंगे.
जयस ने ताकत बढ़ाने खेला कौन सा दांव: जयस ने आदिवासी समाज में पकड़ मजबूत करने के साथ छोटे समाजों को भी जोड़ने की कवायद शुरु कर दी है. अलग-अलग सामाजिक संगठनों का समर्थन हासिल करने में जुटे जयस की प्लानिंग ये है कि छोटे सामाजिक दलों को जोड़कर संगठन को तो मजबूती मिले ही, साथ ही एक बड़े प्लेटफार्म पर सब एक साथ आ सकें. अनुसूचित जनजाति के साथ अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग से जुड़े संगठनों को भी जोड़ रहा है जयस, हीरालाल अलावा कहते हैं हमारा प्रयास ये है कि समाज में दोयम दर्जे पर खड़ा हर समाज एक जुट हो अपनी ताकत पहचाने और मुखर हो. ताकि राजनीतिक नेतृत्व में आने के साथ उसकी सुनवाई हो सके . बीजेपी जहां पेसा एक्ट को भुनाने में लगी है वहीं जयस आदिवासियों के बीच जाकर ये बता रहा है कि अगर पेसा एक्ट के नियम सही ढंग से नीचे तक नहीं पहुंचे तो इसका कोई फायदा नहीं. अलावा आरोप लगाते हुए कहते हैं सबसे ज्यादा आदिवासी के नाम पर निकला फंड ही गायब होता है.
किसकी ताकत बनेगा जयस, नहीं खोले पत्ते: जयस के संरक्षक हीरालाल अलावा वेट एण्ड वॉच की राजनीति पर बढ़ रहे हैं. ये तय है कि जयस 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगा. जिसमें 47 तो सीधी आदिवासी सीटें हैं. बाकी 33 वो सीटें हैं जहां आदिवासी वोटर चुनाव नतीजे प्रभावित करने की स्थिती में है. जयस चुनाव अपने दम पर अकेले लड़ेगा ये कहना हीरालाल अलावा का है, लेकिन इस सवाल पर कि जयस किसकी ताकत बनेगा. वे कहते हैं आज की तारीख तक तो इस बारे में कुछ तय नहीं किया है. जयस एमपी में किस राजनीतिक दल को समर्थन देगा. अलावा जोड़ते है, जो आदिवासी को जल जंगल जमीन का पूरा हक दिलवाएगा जयस उसके साथ जाएगा ये विचार है हमारा वे कहते हैं फिलहाल तो कांग्रेस बीजेपी दोनों के ही लिए आदिवासी केवल वोट बैंक है.
वन अधिकार पट्टों के लिए धरने में शामिल हुए डॉ हीरालाल अलावा, जयस कार्यकर्ता कर रहे हैं प्रदर्शन
एमपी की राजनीति में आदिवासी क्यों बना ट्रम्प कार्ड: क्या वजह है कि एमपी की राजनीति में आदिवासी अब वो ट्रम्प कार्ड हो चुका है कि जिसके पास ये ताकत है वो बाजी पलट सकता है. विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें आदिवासी वर्ग से हैं और 2018 के चुनाव नतीजों ने य़े बता दिया कि आदिवासी वोटर ने अगर जनादेश बदला तो सत्ता भी पलट सकती है. 30 सीटें ऐसी भी हैं जहां जीत हार तय करने वाला अहम किरदार है आदिवासी.