भोपाल। पंचांग के अनुसार सूर्य वृष राशि में अपनी यात्रा को पूर्ण कर, 15 जून, मंगलवार को मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे. इस राशि परिवर्तन को मिथुन संक्रांति के नाम से जाना जाता है. एक साल में 12 संक्रांति होती हैं जिनमें मिथुन संक्रांति (Mithun Sankranti) का महत्व ज्यादा होता है. शास्त्रों में सूर्य को एक प्रमुख देवता माना गया है, जो प्रकाश प्रदान करते हैं. प्रकाश से ही अंधकार को दूर किया जाता है. सूर्य अनुशासन का प्रतीक है. संक्रांति पर सूर्य की विशेष पूजा की जाती है.
पंचांग के अनुसार सूर्य का राशि परितर्वन ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी की तिथि को हो रहा है. इस दिन मंगलवार का दिन है. चंद्रमा इस दिन कर्क राशि में मंगल के साथ युति बनाए हुए है, जो की चंद्र मंगल योग बना रहे हैं. सभी नवग्रहों में सूर्य ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जो वक्री नहीं होता है. वर्तमान समय में बुध और शनि ग्रह वक्री अवस्था में हैं. 20 जून को देव गुरु बृहस्पति भी वक्री होने जा रहे हैं. सूर्य का राशि परिवर्तन सभी राशियों को प्रभावित करेगा.
मिथुन संक्रांति का मुहूर्त
पंचांग के अनुसार 15 जून, 2021 को प्रात: 05 बजकर 49 मिनट पर सूर्य का राशि परिवर्तन होगा. सूर्य देव मिथुन राशि में 16 जुलाई 2021 तक रहेंगे. मिथुन राशि में अपनी यात्रों को पूरा करने के बाद सूर्य देव कर्क राशि में आ जाएगें.
मिथुन संक्रांति का पुण्य काल
ज्योतिष गणना के अनुसार मिथुन संक्रांति का पुण्य काल 15 जून, मंगलवार को प्रात: 06 बजकर 17 मिनट से दोपहर के 01 बजकर 43 मिनट तक रहेगा.
पुण्य काल अवधि : 07 घंटे 27 मिनट
महापुण्य काल अवधि : 02 घंटे 20 मिनट
भास्कर की विशेष पूजा करें
मिथुन संक्रांति पर सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है. पिता भी सूर्य हैं. इस दिन पिता का आशीर्वाद लेना चाहिए. प्रात: काल उठकर स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए और सूर्य मंत्र, गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए. इस दिन दान और स्नान का भी विशेष महत्व है. मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे की भी घरों में पूजा की जाती है. मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे (Sil Batta) की पूजा की जाती है।
कैसे करें सिलबट्टा पूजन
पूजा करने से पहले दूध और पानी के साथ सिलबट्टे को स्नान करवाएं। इसके बाद सिलबट्टे पर चंदन, सिंदूर, फूल व हल्दी चढ़ाएं। फिर अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि (tribute) दें. इस दिन गुड़, नारियल, चावल के आटे व घी से बनी पोड़ा-पीठा मिठाई को भी बनाया जाता है। चावल का सेवन करना इस दिन वर्जित माना जाता है।
धरती मां से जुड़ी है कथा
ऐसा माना जाता है कि महिलाओं को जैसे मासिक धर्म (Periods/Mensuration) होता है वैसे ही भूदेवी या धरती मां को शुरुआत के तीन दिनों तक मासिक धर्म हुआ था. इसे धरती के विकास का प्रतीक माना जाता है. तीन दिनों तक भूदेवी मासिक धर्म में रहती हैं वहीं चौथे दिन में भूदेवी (जिसे सिलबट्टा भी कहते हैं) को स्नान कराया जाता है।
इस दिन धरती माता की पूजा की जाती है। ओडिशा (Odisha) के जगन्नाथ मंदिर (jagannath temple) में आज भी भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पत्नी भूदेवी की चांदी की प्रतिमा (Statue) विराजमान है।