भोपाल। कोविड-19 की शुरुआत से ही विशेषज्ञों का यह कहना रहा है कि कोविड-19 की जितनी ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की जाएगी, उतनी जल्दी संक्रमण की चेन को तोड़ा जा सकेगा और संक्रमण से होने वाली मौतों को भी रोका जा सकेगा. मध्यप्रदेश में पहले तो कोविड-19 की जांच केवल बड़े शासकीय अस्पतालों तक ही सीमित थी. पर फिर धीरे-धीरे टेस्टिंग क्षमता को बढ़ाया गया और प्रदेश में कोविड 19 की जांच, सर्दी-जुखाम-बुखार की जांच के लिए फीवर क्लीनिक्स को खोला गया. राजधानी भोपाल में भी बड़े स्तर पर फीवर क्लीनिक्स खोली गई, इस समय भोपाल में 46 फीवर क्लीनिक्स संचालित किए जा रहे है.
फीवर क्लिनिक की अवधारणा
शुरुआत में कोरोना वायरस को लेकर लोगों में डर का माहौल था. लोग इसी डर के कारण जांच नहीं करवा रहे थे कि कहीं जांच के लिए अस्पताल जाने पर ही उन्हें संक्रमण ना हो जाए. इस स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने मिलकर फीवर क्लीनिक्स को बनाया जिससे लोगों को उनके घर के आस-पास ही कोविड-19 की जांच की सुविधा उपलब्ध हो सके. उन्हें बड़े शासकीय अस्पतालों में जाकर लाइन में न लगना पड़े. इसके साथ ही अगर किसी व्यक्ति को सामान्य सर्दी जुखाम बुखार है तो वह भी फीवर क्लीनिक में जाकर चिकित्सकीय परामर्श ले सकता है.
राजधानी के फीवर क्लीनिक्स के हाल
सरकार ने जोरों शोरों पर फीवर क्लिनिक्स के ढांचे को तो बना दिया, पर यहां पर भी कई तरह की अव्यवस्थाएं आए दिन देखने को मिलती है. शहर की कई ऐसी फीवर क्लिनिक है जो केवल लैब टेक्नीशियन के भरोसे संचालित हो रही है. तो कुछ ऐसी है, जहां बिजली तक की व्यवस्था नहीं है. शहर के बाबा नगर संजीवनी क्लीनिक में संचालित हो रही फीवर क्लीनिक में बिजली की व्यवस्था तक नहीं है. हालांकि यहां स्टॉफ मौजूद था पर वह भी अंधेरे में बैठकर काम करने को मजबूर है.
वहीं पंखे लाइट तो है पर कनेक्शन नहीं है. इसी तरह साईं बाबा नगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बनी फीवर क्लीनिक में वहां के नोडल ऑफिसर मौजूद नहीं थे. अन्ना नगर की फीवर क्लीनिक में पहले बिजली कनेक्शन नहीं था. फिर यहां भी अस्थाई तौर पर कनेक्शन किया गया. शहर में सबसे पहले खोली गई संजीवनी क्लीनिक में बनी फीवर ओपीडी का यह आलम है कि यह शाम 6 बजे ही बंद हो जाती है. जबकि बड़ी फीवर क्लीनिक के बन्द होने का समय रात 8 बजे है.
इसी तरह हाल-फिलहाल में जहांगीराबाद में बनी संजीवनी क्लीनिक में मरीज तो आते हैं पर ड्यूटी डॉक्टर नदारद रहते हैं.इलाज कराने आई रुबीना ने बताया कि हम यहां पहली बार इलाज कराने आए थे.पर दिन के 12 बजे भी यहां डॉक्टर नहीं मिले. डॉक्टर नहीं है तो हम कहां जाएंगे. अपने साथ मरीज को लेकर आए सुधीर ने बताया कि यहां डॉक्टर नहीं है या जो रिसेप्शन में बैठे हैं, वही नाम लिखकर दवाइयां दे रहे हैं.
अधिकारी का तर्क
फीवर क्लीनिक्स और संजीवनी क्लीनिक में व्याप्त अव्यवस्थाओं को लेकर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ प्रभाकर तिवारी का कहना है कि अगर किसी भी तरह की अव्यवस्थाओं की सूचना हमें मिलती है तो उसे तुरंत सुधारा जाएगा. जो भी जिम्मेदार व्यक्ति होगा उस पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी.
स्वास्थ्य विभाग के दावे फेल
वैसे तो स्वास्थ्य विभाग और स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर प्रभु राम चौधरी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की बेहतरी का दावा तो करते हैं, पर जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही है. राजधानी में बनी फीवर क्लीनिक में जब इतनी अव्यवस्थाएं हैं तो इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का क्या आलम होगा.