हैदराबाद। भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के प्रवर्तक और स्वास्थ्य के संस्थापक देवता कहे जाते है. सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने जगत त्राण के लिए 24 अवतार धारण किए हैं. जिनमें भगवान धन्वंतरि 12वें अवतार हैं. भगवान धन्वंतरि की कथाओं का रोचक वृतान्त पुराणों में मिलता है. आइए हम आज जानते हैं भगवान विष्णु के 12वें अवतार भगवान धन्वंतरि से जुड़ी कथाओं के बारे में...
समुद्र मंथन में अमृत लेकर प्रकट हुए भगवान धन्वंतरि
एक समय अवसर पाकर असुरों ने देवताओं को सताना प्रारंभ कर दिया था. दुखी देवगण मदद के लिए अपने राजा इंद्र के पास पहुंचे. इंद्र प्रमुख देवताओं के साथ भगवान ब्रह्मा की शरण में पहुंच गए. ब्रह्मा ने उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने का परामर्श दिया. तब सभी देवगण भगवान विष्णु के समक्ष उपस्थित हुए और अपना दुख सुनाया. तब भगवान विष्णु ने असुरों के शमन और देवगणों के अमरत्व के लिए विचार-विमर्श किया. देवों और दानवों की सामयिक संधि कराकर समुद्र मंथन की योजना बनाई.
इसके बाद एतदर्थ मंदराचल पर्वत को मंथन दंड, हरि रूप कूर्म को दंड आधार तथा वासुकि नागराज को रस्सी तथा समुद्र को नवनीत पात्र बनाया. देवों और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया. जिसके फलस्वरूप 14 रत्न (लक्ष्मी, कौस्तुभ मणि, कल्प वृक्ष, मदिरा, अमृत कलश धारी भगवान धन्वन्तरि, अप्सरा, उच्चैश्रवा नामक घोड़ा, विष्णु का धनुष, पांचजन्य शंख, विष, कामधेनु, चंद्रमा और ऐरावत हाथी) निकले.
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इसमें सबसे आखरी में अमृत हाथ में रखे हुए रत्न आभूषण व वनमाला धारण किए हुए भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए. चालाक राक्षसों ने सुधा कुंभ (अमृत कलश) को झपट कर ले लिया. तब भगवान ने मोहिनी माया का स्वरूप धारण कर राक्षसों को मोहित करके मदिरा में ही आसक्त रखा और प्रजापालक देवताओं को अमृत का पान कराया जिससे वे अतुल शक्ति सम्पन्न व अमर होकर राक्षसों से सफल युद्ध कर विजयी बने.
इसलिए धनतेरस पर होती है भगवान धन्वंतरि की पूजा
अमृत कलश के बाद अन्य चार रत्न समुद्र में से और प्राप्त हुए. गरुड़ पुराण में भगवान धन्वंतरि के व्रत की कथा का वर्णन आया. कथा के अनुसार पृथ्वी एवं स्वर्ग में रोगों के कारण दुखी मानवों व देवों की दशा से आर्त होकर महायोगी नारद भगवान विष्णु के पास गए. अनेक बीमारियों से ग्रस्त प्राणियों के निरोग होने का उपाय पूछा. तब भगवान ने कहा कि मैं धन्वंतरि का अवतार ग्रहण कर तथा इंद्र से आयुर्वेद को प्राप्त करके सब लोकों को स्वस्थ बना दूंगा.
साथ ही भगवान बोले कि मैं कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी, वीरवार हस्त नक्षत्र के शुभ दिन बनारस में धन्वन्तरि के रूप में अवतार लेकर आयुर्वेद का उद्धार करूंगा. नारद जी ने भगवान धन्वंतरि की पूजा विधि, उसका फल, नियम व समय तथा पूर्व में किसने किया आदि प्रश्र पूछे. तब भगवान ने कहा कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन मैं प्रकट हुआ हूं अत: यह दिन धन-तेरस के नाम से विख्यात होगा. विधिवत् पूजन अक्षय फलप्रद होता है.