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11 जून को है करवीर व्रत: सूर्य उपासना करने से संकट से मिलती है मुक्ति, बढ़ता है मान-सम्मान - शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा

हमारे शास्त्रों में एक ऐसे व्रत का भी जिक्र है जिसे करने से मान, सम्मान और यश की प्राप्ति होती है. इसे करवीर व्रत कहते हैं. भगवान सूर्य की अराधना का दिन होता है ये. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को रखा जाता है. इस बार ये 11 जून को है.

karveer vrat 2021
करवीर व्रत 2021
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Published : Jun 11, 2021, 12:06 AM IST

भोपाल। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान भास्कर ही मात्र ऐसे देव हैं जो साक्षात दिखाई देते हैं. इनकी अराधना बिगड़े काम बनाती है. मान, सम्मान और यश की प्राप्ति होती है. 11 जून को इन्हीं सूर्य देव की पूजा अर्चना का लाभ उठाया जा सकता है क्योंकि इस दिन है करवीर व्रत. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को करवीर व्रत मनाया जाता है। इस दिन सूर्योपासना के लिए विशेष उपयुक्त माना जाता है.

क्यों कहते हैं करवीर?

करवीर- कनेर को कहते हैं. तीन रंगों में इसके फूल होते हैं, लेकिन इस व्रत के दिन पीले रंग का इस्तेमाल किया जाता है. शास्त्रों के आधार पर ही करवीर व्रत के दिन सूर्य की विशेष पूजा कनेर के फूल से की जाती है. इस दिन व्रत रखने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और यश की भी प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म में सूर्य देव को पंच देवों में से एक माना गया है. इस व्रत के करने से कुंडली में सूर्य की स्थिति भी मजबूत होती है.

सूर्यग्रहण 2021: अद्भुत संयोग की साक्षी बनेगी दुनिया. ग्रहण और वट सावित्रि व्रत को लेकर क्या करें क्या ना करें?

समयानुसार अर्पण करें फूल

सूरज देव के निमित्त पूजन करना फलदायी होता है. शास्त्रानुसार इस व्रत को सावित्री, दमयंती, सत्याभामा, सरस्वती आदि ने किया था. भविष्य पुराण के अनुसार सूर्य भगवान को यदि आक (मदार) का फूल अर्पण किया जाए तो वो सोने की दस अशर्फियां चढ़ाने का फल देता है. भगवान आदित्य को चढ़ाने योग्य कुछ फलों का उल्लेख वीर मित्रोदय, पूजा प्रकाश (पृ 257) में है. रात्रि में कदम्ब के फूल और मुकुर को अर्पित किया जाता है और दिन में अन्य फूल चढ़ाने की परम्परा है. बेला दिन-रात दोनों में चढ़ाया जा सकता है. निषिद्ध फूल- गुंजा, धतूरा, अपराजिता, भटकटैया, तगर इत्यादि. इसके अलावा इस व्रत में कनेर के वृक्ष की भी पूजा की जाती है.

पूजन की विधि

सर्वप्रथम पेड़ को लाल कपड़ा उढ़ा कर लाल मौली बांधें. फिर जल अर्पित करें. इसके बाद गंध, फूल, धूप, दीप, प्रसाद, भोग सहित यथाशक्ति पूजा की जाती है. इसके साथ ही भगवान सूर्य की भी पूजा, आराधना की जाती है. तत्पश्चात एक टोकरी में सप्तधान्य डालकर इस मंत्र का जाप करें.

(सूर्य वैदिक मंत्र)

ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।

हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।

फिर सभी चढ़ाई गई सामग्री को जनेऊ धारी ब्राह्मण को दान करने की बात उल्लेखित है. कहा जाता है कि इस मंत्र और विधि से पूजा पाठ करने से मनुष्य सब बाधाओं से मुक्त हो मरणोपरांत सूर्य लोक को जाता है.

भोपाल। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान भास्कर ही मात्र ऐसे देव हैं जो साक्षात दिखाई देते हैं. इनकी अराधना बिगड़े काम बनाती है. मान, सम्मान और यश की प्राप्ति होती है. 11 जून को इन्हीं सूर्य देव की पूजा अर्चना का लाभ उठाया जा सकता है क्योंकि इस दिन है करवीर व्रत. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को करवीर व्रत मनाया जाता है। इस दिन सूर्योपासना के लिए विशेष उपयुक्त माना जाता है.

क्यों कहते हैं करवीर?

करवीर- कनेर को कहते हैं. तीन रंगों में इसके फूल होते हैं, लेकिन इस व्रत के दिन पीले रंग का इस्तेमाल किया जाता है. शास्त्रों के आधार पर ही करवीर व्रत के दिन सूर्य की विशेष पूजा कनेर के फूल से की जाती है. इस दिन व्रत रखने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और यश की भी प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म में सूर्य देव को पंच देवों में से एक माना गया है. इस व्रत के करने से कुंडली में सूर्य की स्थिति भी मजबूत होती है.

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समयानुसार अर्पण करें फूल

सूरज देव के निमित्त पूजन करना फलदायी होता है. शास्त्रानुसार इस व्रत को सावित्री, दमयंती, सत्याभामा, सरस्वती आदि ने किया था. भविष्य पुराण के अनुसार सूर्य भगवान को यदि आक (मदार) का फूल अर्पण किया जाए तो वो सोने की दस अशर्फियां चढ़ाने का फल देता है. भगवान आदित्य को चढ़ाने योग्य कुछ फलों का उल्लेख वीर मित्रोदय, पूजा प्रकाश (पृ 257) में है. रात्रि में कदम्ब के फूल और मुकुर को अर्पित किया जाता है और दिन में अन्य फूल चढ़ाने की परम्परा है. बेला दिन-रात दोनों में चढ़ाया जा सकता है. निषिद्ध फूल- गुंजा, धतूरा, अपराजिता, भटकटैया, तगर इत्यादि. इसके अलावा इस व्रत में कनेर के वृक्ष की भी पूजा की जाती है.

पूजन की विधि

सर्वप्रथम पेड़ को लाल कपड़ा उढ़ा कर लाल मौली बांधें. फिर जल अर्पित करें. इसके बाद गंध, फूल, धूप, दीप, प्रसाद, भोग सहित यथाशक्ति पूजा की जाती है. इसके साथ ही भगवान सूर्य की भी पूजा, आराधना की जाती है. तत्पश्चात एक टोकरी में सप्तधान्य डालकर इस मंत्र का जाप करें.

(सूर्य वैदिक मंत्र)

ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।

हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।

फिर सभी चढ़ाई गई सामग्री को जनेऊ धारी ब्राह्मण को दान करने की बात उल्लेखित है. कहा जाता है कि इस मंत्र और विधि से पूजा पाठ करने से मनुष्य सब बाधाओं से मुक्त हो मरणोपरांत सूर्य लोक को जाता है.

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