भोपाल। राजकुंवर से राजनेता और फिर एक साधारण कार्यकर्ता.... ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीते 3 साल उनकी 23 साल के सियासी सफर के वो बरस रहे, जिन्हें टर्निंग पाइंट कहा जा सकता है. 2020 में बीजेपी की नैया पर सवार सिंधिया के लिए असल इम्तेहान 2024 का है. नए साल की शुरुआत के पहले ही दिन अपनी सालगिरह मना रहे सिंधिया के लिए 2024 की चुनौती क्या हैं और उनके राजनीतिक जीवन में आए बदलाव क्या हैं. इसके अलावा सियासत में संयम और संभाल के साथ सधी हुई पारी खेल रहे सिंधिया बीजेपी के कितने मजबूत खिलाड़ी साबित होंगे, ये देखने लायक होगा. कहा जाए कि 2020 में अपनी राजनीतिक पारी का सबसे बड़ा बदलाव करने वाले सिंधिया के लिए 2024 का साल बताएगा कि बदलाव कितना मुफीद रहा.
सिंधिया की सालगिरह और 24 की चुनौती: आज अपनी 53वीं सालगिरह मना रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए 2024 का बरस बेहद खास है, ये किसी ज्योतिष की भविष्य वाणी नहीं बल्कि चुनावी साल के हिसाब से राजनीतिक जानकारों का पूर्वानुमान है. 2020 में कांग्रेस को अलविदा कहकर बीजेपी की नाव में सवार हुए सिंधिया केंद्रीय मंत्री के ओहदे तक पहुंच गए, लेकिन अब चुनौती इस पारी को उसी मजबूती के साथ बरकरार रखने की है. राज्यसभा के रास्ते केंद्रीय मंत्री बने सिंधिया को अब 2019 के बाद लोकसभा चुनाव असल इम्तेहान है.
चार महीने बाद ही चुनाव यानि इम्तेहान के साथ आ रहा ये 2024 तय करेगा कि सिंधिया की बीजेपी में सियासी पारी आगे कितनी मजबूत रहने वाली है. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता कहते हैं कि "सिंधिया ने अपना अंदाज बदला है, उनके बयानों से लेकर उनकी सियासत तक वे अब बीजेपी में पूरी तरह से रच बस गए हैं. बीते 3 साल देखिए तो कोई विवाद सिंधिया से जुड़ा ऐसा दिखाई नहीं देता, जिसकी वजह से बीजेपी हाईकमान को दिक्कत महसूस हुई हो. सिंधिया लो प्रोफाईल रहकर खामोशी से चले, संघ की शाखाओं से निकली बीजेपी को गहराई से समझते हुए चसे, लेकिर फिर भी उन्होंने ग्वालियर चंबल से अपना फोकस कभी शिफ्ट नहीं किया. लोकसभा में यही उनकी जमीन है. सिंधिया का दलबदल का जो मुददा था, कांग्रेस जिसके सहारे उन्हें घेर रही थी तो ये बात तो उन्होंने पहले उपचुनाव 2020 और अब 2023 के विधानसभा चुनाव में साबित कर दिया कि उनको लेकर ये मुद्दा पूरी तरह बेअसर रहा है."
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2002 से 2024 सिंधिया की सियासत में सांप सीढ़ी: 2020 में कांग्रेस छोड़ने वाले सिंधिया को लेकर कमलनाथ ने कहा था कि "वे(सिंधिया) सड़क पर उतर आएं" और पूरी कांग्रेस चंद महीनों बाद सत्ता से बाहर हो गई. सिधिया राजघराने से पहले हैं जो किसी गैर कांग्रेसी सरकार में केंद्रीय मंत्री बने. 2002 में सिंधिया ने गुना सीट से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा और सांसद बने, इसके बाद वे गुना सीट से लगातार 4 बार चुनाव जीतकर सांसद बनें. लेकिन 2019 का चुनाव सिंधिया हार गए, हांलाकि सत्ता की सियासत में सिंधिया की एंट्री बहुत कम वक्त में ही हो गई थी. 2002 में कांग्रेस से चुनाव लड़ने के साथ ही 2007 में मनहमोहन सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री भी बन गए थे, 2019 में गुना सीट से पहली बार चुनाव हारे सिंधिया और 10 मार्च 2020 वो तारीख जब सिंधिया ने सियासत में सबसे बड़ा जोखिम लिया. 22 समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़ कर एमपी की सियासत में दलबदल का इतिहास रच दिया. बीजेपी की ओर से जुलाई 2020 में राज्यसभा भेजे गए और फिर केंद्रीय मंत्री बनें.