भोपाल। बीजेपी में कार्यकर्ता संवाद आखिरी बार कब हुआ था. आखिरी बार कब बंद कमरे बैठक में नेताओं की फटकार मिली लेकिन कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हुई. क्या अब बीजेपी भी वनवे कम्युनिकेशन की बीमारी से संक्रमित हो रही है. पूर्व मंत्री दीपक जोशी द्वारा बीजेपी संगठन पर लगाए गए आरोप कि उनकी गुहार ही नहीं सुनी गई. ग्वालियर-चंबल से बीजेपी नेता अनूप मिश्रा की समझाइश कि पार्टी को संवादहीनता खत्म करनी चाहिए और अब पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा का सवाल कि बीजेपी संगठन में संवाद की कमी आई है.
बीजेपी में उड़ा सेफ्टी वॉल्व : क्या बीजेपी कार्यकर्ता सफोकेशन में हैं. क्या बीजेपी के भीतर इतना दबाव बढ़ गया है. अमूमन पार्टी छोड़ने के बजाए निष्क्रिय हो जाने वाला बीजेपी के कार्यकर्ता की बगावत की बड़ी वजह ये है कि संवाद का कोई सूत्र बाकी नहीं रहा. जिस पार्टी में कार्यकर्ता सबसे कीमती हो, वहां पार्टी से बागी तेवर दिखाने के बाद भी कार्यकर्ता की देखभाल नहीं हो रही. पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा कहते हैं "पांच प्रभावशाली प्रभारी होकर भी संगठन को ठीक ढंग से नहीं चला पा रहे हैं. इसीलिए पार्टी की ये दुर्दशा हो रही है. पार्टी में संवादहीनता की स्थिति पैदा हो रही है. वरना ये स्थितियां नहीं बनती."
कार्यकर्ता की सुनने वाला कोई नहीं : रघुनंदन शर्मा का कहना है कि प्यारेलाल खंडेलवाल और कुशाभाऊ ठाकरे के समय कार्यकर्ता की सुनी जाती थी. अब कार्यकर्ता की सुनने वाला कोई नहीं है. दीपक जोशी को लेकर रघुनंदन शर्मा का कहना है कि अगर कार्यकर्ता या नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं तो उसके पीछे भी संवादहीनता ही है. उन्होंने कहा कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भी इसी संवादहीनता के कारण बीजेपी चुनाव हारी थी. अभी भी समय है अगर कार्यकर्ताओं को सुना गया. उनकी समस्या सुलझाई गई तो स्थिति संभल सकती है.
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क्या ये वीडी शर्मा की नेतृत्व पर सवाल हैं : यूं तो बीजेपी पूरे साल ही इलेक्शन मोड में रहती है लेकिन अब तक बीजेपी में ये परिपाटी नहीं थी कि एन चुनाव के पहले पार्टी ऐसे झटकों से गुजरे. दीपक जोशी के बाद माना जा रहा है ग्वालियर चंबल के साथ महाकौशल में भी पार्टी के कुछ नेता इसी मानसिकता में आ चुके हैं. सियासी गलियारों में सवाल उठ रहा है कि क्या वीडी शर्मा की कार्यशैली ने इस बगावत को जमीन दी है. क्या वाकई टीम वीडी रूठों की छूटने से पहले संभाल नहीं पा रहे हैं. चर्चा तो ये भी है कि चुनाव के पहले पार्टी संगठन में भी ब़ड़े बदलाव कर सकती है.