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आज हुआ था हबीब तनवीर का जन्म तो कारंत ने दुनिया को कहा था अलविदा - Habib Tanveer and Karant were famous directors

आज है नाट्य जगत के लिए खास दिन, आज हुआ था हबीब तनवीर का जन्म तो कारंत ने दुनिया को कहा था अलविदा.

Habib Tanveer and Karant
हबीब तनवीर और कारंत
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Published : Sep 1, 2020, 7:32 PM IST

भोपाल। दुनिया एक रंगमंच है और यहां हर कोई अपनी भूमिका निभाने आया है. बहुत से लोग अपनी भूमिका अच्छे से निभा पाते हैं और उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जाता है। इस रंगमंच के ऐसे ही एक फनकार थे हबीब तनवीर और कारंत. नाट्य जगत के क्षेत्र में आज बहुत ही खास है क्योंकि आज के दिन मशहूर रंग निर्देशक हबीब तनवीर का जन्मदिन है. वहीं प्रख्यात निर्देशक कारंत की पुण्यतिथि भी है.

मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय के निदेशक आलोक चटर्जी

मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय के निदेशक आलोक चटर्जी ने दोनों शख्सियतों के रंगकर्म के क्षेत्र में किए गए कार्यों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. आलोक चटर्जी ने स्वर्गीय हबीब तनवीर साहब को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि हबीब तनवीर एक अंतरराष्ट्रीय नाट्य निर्देशक थे. उन्होंने भारत के बाहर जाकर भारत कि रंगमंच क्षेत्र में पहचान बनाई उन्होंने विदेशों से शिक्षा लेने के बाद भी छत्तीसगढ़ की नाचा शैली को अपने नाटकों का आधार बनाया.

आलोक चटर्जी ने बताया कि हबीब शेक्सपियर से लेकर ब्रे ब्रेख्त के नाटक और कुछ संस्कृत के नाटक जैसे मृच्छकटिकम् को छत्तीसगढ़ में अनुवाद कर मंचन कराया. हबीब साहब शायर और लेखक भी थे उनकी शिक्षा-दीक्षा बहुत अच्छी हुई थी. उनकी हिंदी उर्दू और अंग्रेजी में तो अच्छी पकड़ थी ही कुछ-कुछ बंगला भी जानते थे. वह महानगरों की ओर कभी नहीं भागे वह महानगरों से गांव कस्बों और आए.

आलोक चटर्जी ने बताया हबीब तनवीर की तरह ही कारंत जी ने भी रंगमंच की सेवा की यात्रा की उन्होंने पाश्चात्य यथार्थवाद और उसकी ट्रेनिंग को भी नकारा. यहां तक कि उन्होंने जब शेक्सपियर को मंचित किया तो यक्षगान शैली में किया. आलोक चटर्जी ने बताया कि हबीब साहब और कारंत में सिर्फ इतना फर्क था कि हबीब साहब ने नाचा शैली में उसके संगीत में पकड़ बनाई वहीं कारंत ने बुंदेली इस्तेमाल किया. मालवी बोली में किया तो मालवा की संस्कृति उसमें दिखी जब वह आस्ट्रेलिया गए तो उन्होंने ऑस्ट्रेलियन फोक शैली में हयवदन का मंचन किया.

भोपाल। दुनिया एक रंगमंच है और यहां हर कोई अपनी भूमिका निभाने आया है. बहुत से लोग अपनी भूमिका अच्छे से निभा पाते हैं और उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जाता है। इस रंगमंच के ऐसे ही एक फनकार थे हबीब तनवीर और कारंत. नाट्य जगत के क्षेत्र में आज बहुत ही खास है क्योंकि आज के दिन मशहूर रंग निर्देशक हबीब तनवीर का जन्मदिन है. वहीं प्रख्यात निर्देशक कारंत की पुण्यतिथि भी है.

मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय के निदेशक आलोक चटर्जी

मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय के निदेशक आलोक चटर्जी ने दोनों शख्सियतों के रंगकर्म के क्षेत्र में किए गए कार्यों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. आलोक चटर्जी ने स्वर्गीय हबीब तनवीर साहब को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि हबीब तनवीर एक अंतरराष्ट्रीय नाट्य निर्देशक थे. उन्होंने भारत के बाहर जाकर भारत कि रंगमंच क्षेत्र में पहचान बनाई उन्होंने विदेशों से शिक्षा लेने के बाद भी छत्तीसगढ़ की नाचा शैली को अपने नाटकों का आधार बनाया.

आलोक चटर्जी ने बताया कि हबीब शेक्सपियर से लेकर ब्रे ब्रेख्त के नाटक और कुछ संस्कृत के नाटक जैसे मृच्छकटिकम् को छत्तीसगढ़ में अनुवाद कर मंचन कराया. हबीब साहब शायर और लेखक भी थे उनकी शिक्षा-दीक्षा बहुत अच्छी हुई थी. उनकी हिंदी उर्दू और अंग्रेजी में तो अच्छी पकड़ थी ही कुछ-कुछ बंगला भी जानते थे. वह महानगरों की ओर कभी नहीं भागे वह महानगरों से गांव कस्बों और आए.

आलोक चटर्जी ने बताया हबीब तनवीर की तरह ही कारंत जी ने भी रंगमंच की सेवा की यात्रा की उन्होंने पाश्चात्य यथार्थवाद और उसकी ट्रेनिंग को भी नकारा. यहां तक कि उन्होंने जब शेक्सपियर को मंचित किया तो यक्षगान शैली में किया. आलोक चटर्जी ने बताया कि हबीब साहब और कारंत में सिर्फ इतना फर्क था कि हबीब साहब ने नाचा शैली में उसके संगीत में पकड़ बनाई वहीं कारंत ने बुंदेली इस्तेमाल किया. मालवी बोली में किया तो मालवा की संस्कृति उसमें दिखी जब वह आस्ट्रेलिया गए तो उन्होंने ऑस्ट्रेलियन फोक शैली में हयवदन का मंचन किया.

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