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पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति ने CM को लिखा पत्र, प्रोटेम स्पीकर के अधिकार क्षेत्र पर उठाए सवाल

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Published : Aug 19, 2020, 4:46 PM IST

पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति ने विधानसभा की नामजद समितियों के गठन के पहले निर्वाचित समितियों का गठन करने और विधानसभा का सत्र बुलाकर अध्यक्ष का चुनाव और अन्य देशों का अनुमोदन कराने का अनुरोध करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिखा है.

पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र,
पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र,

भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति ने विधानसभा की नामजद समितियों के गठन के पहले निर्वाचित समितियों का गठन करने और विधानसभा का सत्र बुलाकर अध्यक्ष का चुनाव और अन्य देशों का अनुमोदन कराने का अनुरोध करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिखा है.

उन्होंने लिखा है कि कांग्रेस विधायक दल के नेता को विधानसभा की नामजद समितियों के लिए सदस्यों के नाम प्रस्तावित करने के लिए पत्र भेजा गया है. पत्र में यह कहीं भी उल्लेख नहीं है कि पूर्व परंपरा अनुसार इसके पहले निर्वाचित समितियों के चुनाव कराए जाएंगे. अपने पत्र में उन्होंने विधानसभा की परंपराओं को तोड़े जाने और प्रोटेम स्पीकर के अधिकार को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को अवगत कराया है और जल्द से जल्द सत्र बुलाने की मांग की है.

विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिखकर कहा है कि मुझे आपको यह बताने की कतई आवश्यकता नहीं है कि हर 2 वर्ष में पहले निर्वाचित समितियों के चुनाव होते हैं और फिर दलों के नाम लेकर नामजद समितियों का गठन किया जाता रहा है. यह आपको भी विदित है कि अमूमन सभी समितियों का 2 वर्षीय कार्यकाल मार्च महीने में समाप्त हो जाता है और उन दिनों बजट सत्र रहता है. अतः निर्वाचन और नामजदगी की प्रक्रिया इसी दौरान हो जाया करती है.

मुझे आपको यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि समितियों के निर्वाचन के लिए सत्र का रहना कतई जरूरी नहीं है. फिर प्रोटेम स्पीकर द्वारा सिर्फ समितियों की नामजदगी का निर्णय क्यों लिया गया, यह मेरी समझ से परे है. आपकी जानकारी में जरूर होगा कि वर्तमान प्रोटेम स्पीकर द्वारा कई नीतिगत निर्णय पूर्व परंपरा के खिलाफ लिए जा रहे हैं. यहां तक कि जब विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा है. विधानसभा की समितियां अस्तित्व में नहीं हैं. ऐसे में विधानसभा सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की संविदा नियुक्ति की गई है. जुलाई सत्र के सारे प्रश्न निरस्त कर दिए गए.

आप जानते हैं कि प्रोटेम स्पीकर एक कामचलाऊ पूर्णतया तदर्थ व्यवस्था है. प्रोटेम स्पीकर नामित यानी नामजद है, निर्वाचित नहीं है. नीतिगत और संवैधानिक निर्णय सिर्फ सभा द्वारा निर्वाचित अध्यक्ष ही ले सकता है. प्रोटेम स्पीकर का काम सदस्यों को शपथ दिलाकर नए अध्यक्ष के चुनाव कराने तक रहता है. अतीत में भी जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद रिक्त हुए हैं. तब भी प्रोटेम स्पीकर नीतिगत निर्णय उसे पूरी तरह परे रहे हैं और जल्द से जल्द अध्यक्ष के चुनाव भी हुए हैं.

प्रदेश के इतिहास में यह पहली बार है कि 24 मार्च से अभी तक सरकार अध्यक्ष का चुनाव नहीं करा पाई है. जबकि यह काम पहले सत्र अथवा 24 से 27 मार्च 2020 के दौरान किया जाना चाहिए था. तत्कालीन सभापति ने 24 मार्च 2020 को सभा की बैठक 27 मार्च 2020 तक के लिए स्थगित की थी. लेकिन 27 मार्च को सत्र बुलाकर अध्यक्ष का चुनाव कराने के बजाय 17 सत्रावसान की कार्रवाई की गई और गलत परंपरा डाली गई.

पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति ने लिखा है कि मैं आपको यह भी स्मरण कराऊंगा आपकी वर्तमान 15वीं विधानसभा के पहले सत्र में जब वर्ष 1993 में पहली बार निर्वाचित और कैबिनेट मंत्री रहे चौथी बार के विधायक दीपक सक्सेना को प्रोटेम स्पीकर मात्र 8 दिन के लिए बनाया गया. तब 7 जनवरी 2020 को आपने उनको कनिष्ट बताकर सदन में जोरदार आपत्ति दर्ज कराई थी. लेकिन फिर क्यों आपने दूसरी बार के ऐसे विधायक को प्रोटेम स्पीकर के लिए राज्यपाल के पास नामजद किया. जिसको सभा संचालन का कोई अनुभव नहीं था. आप ही बेहतर बता सकते हैं.

जब देश कोरोना के चलते अनलॉक होता जा रहा है. तो हमको भी मिसाल पेश कर सत्र आहूत करने के लिए नई व्यवस्था बनानी ही होगी. लंबे समय तक सत्र आहूत ना होना ना केवल संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है, वरन जनता में भी यह गलत संदेश दे रहा है कि देश के अनलॉक होने के बाद भी जनप्रतिनिधि जनसमस्याओं के प्रति उदासीनता बरतते हुए सत्र नहीं बुला रहे हैं. आप 23 मार्च 2020 से मुख्यमंत्री हैं, मार्च से अब तक मात्र 9 मिनट के लिए विधानसभा चली है.

आप मानेंगे मध्यप्रदेश के इतिहास में यह पहली बार है कि सरकार का बजट विधानसभा में पारित होने के बजाय दो बार अध्यादेश लाकर स्वीकृत हुआ है और सभी कानूनी अध्यादेश के जरिए बन रहे हैं. मेरा मानना है कि संसदीय लोकतंत्र की सेहत के लिए यह स्थिति बिल्कुल भी सही नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के प्रावधान के अनुसार 6 माह के भीतर सत्र आहूत करना संवैधानिक बाध्यता है. अतः मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि सत्र की बैठक बुलाकर अध्यक्ष का निर्वाचन और तदुपरांत समितियों का गठन शीघ्र कर नामजद समितियां गठित की जाएं.

भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति ने विधानसभा की नामजद समितियों के गठन के पहले निर्वाचित समितियों का गठन करने और विधानसभा का सत्र बुलाकर अध्यक्ष का चुनाव और अन्य देशों का अनुमोदन कराने का अनुरोध करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिखा है.

उन्होंने लिखा है कि कांग्रेस विधायक दल के नेता को विधानसभा की नामजद समितियों के लिए सदस्यों के नाम प्रस्तावित करने के लिए पत्र भेजा गया है. पत्र में यह कहीं भी उल्लेख नहीं है कि पूर्व परंपरा अनुसार इसके पहले निर्वाचित समितियों के चुनाव कराए जाएंगे. अपने पत्र में उन्होंने विधानसभा की परंपराओं को तोड़े जाने और प्रोटेम स्पीकर के अधिकार को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को अवगत कराया है और जल्द से जल्द सत्र बुलाने की मांग की है.

विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिखकर कहा है कि मुझे आपको यह बताने की कतई आवश्यकता नहीं है कि हर 2 वर्ष में पहले निर्वाचित समितियों के चुनाव होते हैं और फिर दलों के नाम लेकर नामजद समितियों का गठन किया जाता रहा है. यह आपको भी विदित है कि अमूमन सभी समितियों का 2 वर्षीय कार्यकाल मार्च महीने में समाप्त हो जाता है और उन दिनों बजट सत्र रहता है. अतः निर्वाचन और नामजदगी की प्रक्रिया इसी दौरान हो जाया करती है.

मुझे आपको यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि समितियों के निर्वाचन के लिए सत्र का रहना कतई जरूरी नहीं है. फिर प्रोटेम स्पीकर द्वारा सिर्फ समितियों की नामजदगी का निर्णय क्यों लिया गया, यह मेरी समझ से परे है. आपकी जानकारी में जरूर होगा कि वर्तमान प्रोटेम स्पीकर द्वारा कई नीतिगत निर्णय पूर्व परंपरा के खिलाफ लिए जा रहे हैं. यहां तक कि जब विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा है. विधानसभा की समितियां अस्तित्व में नहीं हैं. ऐसे में विधानसभा सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की संविदा नियुक्ति की गई है. जुलाई सत्र के सारे प्रश्न निरस्त कर दिए गए.

आप जानते हैं कि प्रोटेम स्पीकर एक कामचलाऊ पूर्णतया तदर्थ व्यवस्था है. प्रोटेम स्पीकर नामित यानी नामजद है, निर्वाचित नहीं है. नीतिगत और संवैधानिक निर्णय सिर्फ सभा द्वारा निर्वाचित अध्यक्ष ही ले सकता है. प्रोटेम स्पीकर का काम सदस्यों को शपथ दिलाकर नए अध्यक्ष के चुनाव कराने तक रहता है. अतीत में भी जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद रिक्त हुए हैं. तब भी प्रोटेम स्पीकर नीतिगत निर्णय उसे पूरी तरह परे रहे हैं और जल्द से जल्द अध्यक्ष के चुनाव भी हुए हैं.

प्रदेश के इतिहास में यह पहली बार है कि 24 मार्च से अभी तक सरकार अध्यक्ष का चुनाव नहीं करा पाई है. जबकि यह काम पहले सत्र अथवा 24 से 27 मार्च 2020 के दौरान किया जाना चाहिए था. तत्कालीन सभापति ने 24 मार्च 2020 को सभा की बैठक 27 मार्च 2020 तक के लिए स्थगित की थी. लेकिन 27 मार्च को सत्र बुलाकर अध्यक्ष का चुनाव कराने के बजाय 17 सत्रावसान की कार्रवाई की गई और गलत परंपरा डाली गई.

पूर्व स्पीकर एनपी प्रजापति ने लिखा है कि मैं आपको यह भी स्मरण कराऊंगा आपकी वर्तमान 15वीं विधानसभा के पहले सत्र में जब वर्ष 1993 में पहली बार निर्वाचित और कैबिनेट मंत्री रहे चौथी बार के विधायक दीपक सक्सेना को प्रोटेम स्पीकर मात्र 8 दिन के लिए बनाया गया. तब 7 जनवरी 2020 को आपने उनको कनिष्ट बताकर सदन में जोरदार आपत्ति दर्ज कराई थी. लेकिन फिर क्यों आपने दूसरी बार के ऐसे विधायक को प्रोटेम स्पीकर के लिए राज्यपाल के पास नामजद किया. जिसको सभा संचालन का कोई अनुभव नहीं था. आप ही बेहतर बता सकते हैं.

जब देश कोरोना के चलते अनलॉक होता जा रहा है. तो हमको भी मिसाल पेश कर सत्र आहूत करने के लिए नई व्यवस्था बनानी ही होगी. लंबे समय तक सत्र आहूत ना होना ना केवल संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है, वरन जनता में भी यह गलत संदेश दे रहा है कि देश के अनलॉक होने के बाद भी जनप्रतिनिधि जनसमस्याओं के प्रति उदासीनता बरतते हुए सत्र नहीं बुला रहे हैं. आप 23 मार्च 2020 से मुख्यमंत्री हैं, मार्च से अब तक मात्र 9 मिनट के लिए विधानसभा चली है.

आप मानेंगे मध्यप्रदेश के इतिहास में यह पहली बार है कि सरकार का बजट विधानसभा में पारित होने के बजाय दो बार अध्यादेश लाकर स्वीकृत हुआ है और सभी कानूनी अध्यादेश के जरिए बन रहे हैं. मेरा मानना है कि संसदीय लोकतंत्र की सेहत के लिए यह स्थिति बिल्कुल भी सही नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के प्रावधान के अनुसार 6 माह के भीतर सत्र आहूत करना संवैधानिक बाध्यता है. अतः मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि सत्र की बैठक बुलाकर अध्यक्ष का निर्वाचन और तदुपरांत समितियों का गठन शीघ्र कर नामजद समितियां गठित की जाएं.

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